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Thursday, September 15, 2016

Vyang -- चिकनगुनिया और कश्मीर समस्या।

                 पहले  मुझे भी चिकनगुनिया और कश्मीर समस्या में कोई समानता नजर नही आयी। लेकिन जैसे जैसे दोनों का अध्ययन आगे बढा तो पता चला की दोनों समस्याएं एकदम समान हैं। माने अगर एक का हल ढूंढ लिया जाये तो दूसरे का भी मिल सकता है। दोनों में निम्नलिखित समानताये हैं।
                 कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी की मिली जुली सरकार है। केंद्र में भी दोनों की सरकार है। अब कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन तेज हो रहा है तो दोनों सरकारों का कहना है की सारी समस्या की जड़ पाकिस्तान है। उसमे कश्मीर के अंदर हुर्रियत कांफ्रेंस के लोग हैं जो सरकार के अनुसार पैसा भारत सरकार से लेते हैं और सलाह पाकिस्तान से लेते हैं। हुर्रियत के लोग कश्मीर की भलाई से ज्यादा पाकिस्तान की भलाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं।
                     दूसरी तरफ दिल्ली की चिकनगुनिया की समस्या है। वहां कहने को तो अरविन्द केजरीवाल की सरकार है, लेकिन केंद्र से लेकर LG तक, और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कोई उसको सरकार मानने को तैयार नही है। केजरीवाल का कहना है की जिस तरह कश्मीर समस्या का कारण पाकिस्तान है उसी तरह चिकनगुनिया का कारण केंद्र और LG हैं। जिस तरह कश्मीर में हुर्रियत पैसा भारत से लेती है और सुर पाकिस्तान के साथ मिलाती है, तो दिल्ली में ये काम MCD करती है। जिसका बजट तो दिल्ली की केजरीवाल सरकार ( एक बार बातचीत के लिए सरकार मान लेते हैं ) से जाता है लेकिन वो सुर केंद्र सरकार के साथ मिलाती है। हुर्रियत महबूबा से सहयोग नही कर रही और MCD केजरीवाल से।
                      वहां केंद्र हुर्रियत के लोगों पर शिकंजा कस रही है और दिल्ली में केजरीवाल के विधायकों पर। लेकिन इससे न अलगाववाद कम हो रहा है और न चिकनगुनिया। मुझे लगता है की दोनों का हल एक साथ ढूँढना पड़ेगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह शांति और सहयोग की अपील कर रहे हैं। लेकिन MCD को सहयोग करने के लिए नही कह रहे और न LG को कह रहे हैं। इन हालात में हुर्रियत और पाकिस्तान से सहयोग की उम्मीद करना तो बेकार की बात है।

Sunday, February 21, 2016

बीजेपी पूर्व सैनिकों के नाम पर फासिज्म को बढ़ावा दे रही है।

खबरी -- बीजेपी JNU के मामले को सैनिकों से क्यों जोड़ रही है ?

गप्पी -- फासिज्म की पहचान ही यही है की वो देशभक्ति का चोला ओढ़कर आता है। पूरा विश्व इतिहास इसका गवाह है। आरएसएस भारत में भी फासिज्म को तिरंगे में लपेट रही है। उस तिरंगे में, जिसको खुद उसने कभी अपने कार्यालयों पर नही फहराया। JNU की घटना का सैनिकों से या तिरंगे से कोई लेना देना नही है, लेकिन चूँकि पूरा देश सेना और सैनिकों का सम्मान करता है इसलिए आरएसएस इसे घुमा फ़िरा कर सेना से जोड़ने की कोशिश कर रही है। वरना पूरा देश जानता है की सेना के जवान जिन किसानो और मजदूरों के घरों से आते हैं उनके लिए बीजेपी सरकार ने क्या किया है। देश में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बीजेपी के राज में दो गुनी हो गई है। जितना बदहाल किसान आज है उतना इससे पहले कभी नही था। यही किसान अपने एक बेटे को सरहद पर भेजता है। इसी सैनिक का उपयोग बीजेपी किसान के उस बेटे के खिलाफ करने की कोशिश कर रही है जो कालेज में पढ़ता है और सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत करता है।
               पहले एक मजाक बहुत प्रचलित था जिसमे एक छात्र जवाहरलाल पर निबंध याद करता है। उसके बाद परीक्षा में चाहे गुलाब पर निबंध लिखना हो या कोट पर, संसद पर लिखना हो या संविधान पर, वो उसे घुमा फ़िर कर जवाहरलाल पर ले आता है और हर बार वही लिख देता है। आरएसएस और बीजेपी का भी वही हाल है। मामला चाहे आदिवासियों का हो, छात्रों का हो, हथियारों में दलाली का हो या दिल्ली के वकीलों का हो, वो उसे घुमा फ़िर कर सैनिकों और शहीदों पर ले आती है और हल्ला कर देती है की देखो ये सब देशद्रोही हैं और शहीदों का अपमान कर रहे हैं।

Saturday, February 20, 2016

कश्मीर में अलगाववाद और बीजेपी का राष्ट्रवाद

खबरी -- सड़कों पर तिरंगा और राष्ट्रवादी नारे।

गप्पी -- जो लोग हाथों में तिरंगा लेकर और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए दिल्ली में और पुरे देश में हुड़दंग मचा रहे हैं उनसे एक निवेदन है -
            वो आरएसएस के नागपुर और दिल्ली स्थित संघ मुख्यालय पर तिरंगा फहराने की मांग करें।
            वो अपने घर  से एक सदस्य को सियाचिन जैसी जगहों पर सेना की नौकरी में भेंजे। देश के
            लिए जान देने का काम केवल किसानो और मजदूरों के बेटों का नही है।
            कश्मीर में पिछले साल से बीजेपी और पीडीपी  की सरकार थी। और अब वहां सीधे रूप में केंद्र
            यानि बीजेपी का शासन है तो वहां हररोज लगने वाले पाकिस्तान समर्थक नारों और ISIS के
             झंडे लहराने वालों पर पिछले एक साल में कोई भी कार्यवाही क्यों नही हुई।