Sunday, February 21, 2016

बीजेपी पूर्व सैनिकों के नाम पर फासिज्म को बढ़ावा दे रही है।

खबरी -- बीजेपी JNU के मामले को सैनिकों से क्यों जोड़ रही है ?

गप्पी -- फासिज्म की पहचान ही यही है की वो देशभक्ति का चोला ओढ़कर आता है। पूरा विश्व इतिहास इसका गवाह है। आरएसएस भारत में भी फासिज्म को तिरंगे में लपेट रही है। उस तिरंगे में, जिसको खुद उसने कभी अपने कार्यालयों पर नही फहराया। JNU की घटना का सैनिकों से या तिरंगे से कोई लेना देना नही है, लेकिन चूँकि पूरा देश सेना और सैनिकों का सम्मान करता है इसलिए आरएसएस इसे घुमा फ़िरा कर सेना से जोड़ने की कोशिश कर रही है। वरना पूरा देश जानता है की सेना के जवान जिन किसानो और मजदूरों के घरों से आते हैं उनके लिए बीजेपी सरकार ने क्या किया है। देश में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या बीजेपी के राज में दो गुनी हो गई है। जितना बदहाल किसान आज है उतना इससे पहले कभी नही था। यही किसान अपने एक बेटे को सरहद पर भेजता है। इसी सैनिक का उपयोग बीजेपी किसान के उस बेटे के खिलाफ करने की कोशिश कर रही है जो कालेज में पढ़ता है और सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत करता है।
               पहले एक मजाक बहुत प्रचलित था जिसमे एक छात्र जवाहरलाल पर निबंध याद करता है। उसके बाद परीक्षा में चाहे गुलाब पर निबंध लिखना हो या कोट पर, संसद पर लिखना हो या संविधान पर, वो उसे घुमा फ़िर कर जवाहरलाल पर ले आता है और हर बार वही लिख देता है। आरएसएस और बीजेपी का भी वही हाल है। मामला चाहे आदिवासियों का हो, छात्रों का हो, हथियारों में दलाली का हो या दिल्ली के वकीलों का हो, वो उसे घुमा फ़िर कर सैनिकों और शहीदों पर ले आती है और हल्ला कर देती है की देखो ये सब देशद्रोही हैं और शहीदों का अपमान कर रहे हैं।

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