Monday, September 5, 2016

लोगों की समझ ही उनकी समस्याओं का कारण है।

                लोगों की समझ ही उनकी समस्याओं का मुख्य कारण है और लोग पता नही किस हिसाब से प्रतिक्रिया करते हैं ? पिछले हफ्ते घटी दो घटनाओं ने मुझे ये लिखने के लिए मजबूर किया।
                 पहली घटना है सूरत में केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी का आगमन। सूरत कपड़ा उद्योग का बड़ा केंद्र है इसलिए कपड़ा उद्योग से सम्बन्धित सरकार के फैसलों और नीतियों का यहां के लोगों पर सीधा असर होता है। कपड़ा मंत्रालय सम्भालने के बाद श्रीमती स्मृति ईरानी की यह पहली सूरत यात्रा थी। यहां के उद्योगपति और व्यापारी उनसे बहुत उम्मीद लगाए हुए थे। इसलिए उनके कार्यक्रम में उनके लिए चापलूसी भरे व्यक्तव्यों की भरमार थी। लोगों ने कहा की नारी शक्ति का आगमन कपड़ा मंत्रालय में हुआ है इसलिए इस उद्योग को उसका फायदा जरूर मिलेगा। मुझे उनकी समझ पर आश्चर्य हो रहा था। उसके बाद उन्होंने मंत्री जी के सामने ये मांग रक्खी की कपड़ा उद्योग को GST के दायरे से बाहर रक्खा जाये। और GST को केवल यार्न के उत्पादन तक सिमित रखा जाये। जाहिर है की ये सम्भव नही था। सो मंत्री जी ने साफ कह दिया की किसी भी उद्योग को किसी भी स्तर पर टैक्स से छूट का प्रावधान GST में नही है। इस बिल का उद्देश्य और प्रारूप दोनों इस बात को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं की टैक्स का दायरा बढ़े और टैक्स की उगाही बढ़े। चूँकि इसमें सर्विस टैक्स और एक्साइज ड्यूटी भी शामिल है, इसलिए किसी उद्योग को इससे बाहर रखने का मतलब होगा उस उगाही को भी छोड़ देना जो अब तक हो रही थी। इसलिए मंत्री ने इसमें असमर्थता जाहिर कर दी। उसके बाद पुरे व्यापारी वर्ग में ये चर्चा थी की इस तरह तो सूरत कपड़ा उद्योग का भट्ठा बैठ जायेगा। जब हम GST का विरोध कर रहे थे तब ये पूरा समुदाय हमे देशद्रोही और विकास विरोधी बता रहा था। तब ये लोग GST को देश के विकास के लिए सबसे जरूरी कदम बता रहे थे। उसके समर्थन में सेमिनार और जलसे कर रहे थे। अब कह रहे हैं की हम पर मत लगाओ बाकि देश पर लगा दो। देश के विकास की जिम्मेदारी से हमे मुक्त रखो और ये काम दूसरों से करवा लो। कई लोग तो इसकी दुष्प्रभावों की आशंका से डरे हुए हैं। लेकिन जब इसका विरोध करने और इस पर विचार करने का समय था तब उनका पूरा व्यवहार भक्तों की तरह था। जो प्रभु कह रहे हैं वही सत्य है।
                       दूसरी घटना दो सितम्बर की हड़ताल से सम्बन्धित है। दो सितम्बर से कुछ दिन पहले मैं अपने बैंक में गया था। वहां हड़ताल से सम्बन्धित एक बैनर लगा हुआ था। मैंने बैंक के कर्मचारियों से उसके बारे में बात की। सभी लोग इस बात पर एकमत थे की निजीकरण और दूसरे फैसलों को रुकवाने के लिए हड़ताल बहुत जरूरी है। हर एक कर्मचारी के पास हड़ताल के लिए मजबूत तर्क थे। फिर मैंने उनसे पूछा की उनमे से किस किस ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी को वोट दिया था। उनमे से एक को छोड़कर सबने मोदी को वोट दिया था। तब मैंने उनसे पूछा की आप लोग एक ऐसी पार्टी और नेता को वोट देकर सत्ता में लेकर आ रहे हो जो निजीकरण का समर्थक है, मजदूरों को हासिल अधिकारों में कटौती का समर्थक है , सार्वजनिक क्षेत्र को समाप्त कर देने की नीति रखता है। बीजेपी और नरेन्द्र मोदी, दोनों की नीतियां इस मामले में एकदम साफ रही हैं और उनको छिपाया भी नही गया है। बीजेपी और नरेन्द्र मोदी दोनों प्राइवेट सैक्टर को विकास का इंजन मानते हैं और सार्वजनिक क्षेत्र को देश पर बोझ मानते हैं। सत्ता में आने के बाद जब वो अपनी नीतियों को आगे बढ़ाते हैं तो आप उसके विरोध में हड़ताल करते हैं। इससे क्या होगा। इस सरकार को आपने खुद चुना है। उनके पास इसका कोई जवाब नही था।
                        मैंने ये बहुत शिद्दत से महसूस किया है की लोग वोट देने का फैसला और हड़ताल पर जाने का फैसला भी बहुत ही सतही तरीके से करते हैं। और ज्यादा पढ़े लिखे कहे जाने वाले लोग ज्यादा कन्फ्यूज होते हैं।

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