हैडिंग की लाइने किसी दुसरे संदर्भ में लिखी गयी थी। लेकिन अभी देश की जो स्थिति है, उसमे ये एकदम फिट बैठती हैं। हमारे देश में एक बीमारी शुरू हो गयी है। ये बीमारी है बड़े और समर्थ लोगों से पलटकर सवाल पूछने की। इससे स्थिति बड़ी विकट हो जाती है। क्योंकि हमारे देश में बड़े लोगों को केवल सवाल पूछने की आदत है और जवाब देने की आदत तो बिलकुल नही है। जो काम उन्होंने सदियों से नही किया, वो उन्हें आज करने को कहा जायेगा तो मुश्किल तो होगी ही। लेकिन लोग हैं की इस बात को समझते ही नही हैं। अभी देखिये लोग पलटकर क्या क्या पूछ लेते हैं। -
अब दिल्ली के LG ने उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को तुरन्त फ़िनलैंड से वापिस दिल्ली आने को कहा ताकि उनके अनुसार दिल्ली की गम्भीर चिकनगुनिया की समस्या को सम्भाला जा सके। अब इस पर होना तो ये चाहिए था की सिसोदिया को तुरन्त जी जनाब कहते हुए वापिस आ जाना चाहिए था। लेकिन नही। वही खराब आदत। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री पूछ रहे हैं की जब हालत इतनी ही खराब है तो खुद LG विदेश में क्या कर रहे हैं ? कर लो बात। अब उन्हें कौन समझाये की LG का काम जवाब मांगना है, देना नही। अगर LG को इस तरह के सवालों के जवाब देने पड़े तो हो गयी गवर्नरी।
दूसरी तरफ लोगों ने मोदीजी जी को हलकान किया हुआ है। कुछ भी पूछ लेते हैं। 15 लाख वाली बात तो इतनी आम हो गयी है की बच्चा भी पूछ लेता है की कब तक आएंगे। अब ये कोई बात हुई। जब एक बार कह दिया की भाई ये जुमला था, तो अब तो पीछा छोड़ दो। कल मेरे पड़ोसी मुझसे कह रहे थे की जरा मोदीजी से पूछो की वो दस सिर और दाऊद कब आएंगे। मैं हैरान था। मैंने कहा की भाई तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैं और मोदीजी रोज शाम को इक्कठे बैठते हों। और दूसरी बात, तुम्हे क्या दस सिरों का अचार डालना है ? रही दाऊद की बात, तो तुम्हारी क्या उधार बाकि है उसकी तरफ जो इतनी बेसब्री से इंतजार कर रहे हो। अब इन सवालों के भला मोदीजी क्या जवाब दें और क्यों दें। प्रधानमंत्री जवाब देने के लिए होते हैं या राज करने के लिए ?
अब अमित शाह ने कह दिया की अच्छे दिन आने में तीस साल लगेंगे। कई लोग उखड़ गए। बोले, पहले तो पांच साल कहते थे। अब इस बात का क्या जवाब है ? भई, पहले पांच साल मिल जाएँ यही मुश्किल लग रहा था सो पांच साल कह दिया। अब जब राज मिल ही गया है तो जीवन भर वही रहने का जुगाड़ बिठा रहे हैं। मोदीजी 67 के हो गए, तीस साल बाद 100 के करीब हो जायेंगे सो हिसाब लगा कर तीस साल बोल दिया। अब इस पर भी पलटकर सवाल करोगे तो क्या जवाब दें ?
इसलिए मुझे लोगों की ये आदत खराब लग रही है। सवाल पूछने का अधिकार लोकतंत्र में लोगों को नही होता। लोकतंत्र का तो मतलब ही ये होता है की लोक हमेशा तन्त्र में फंसे रहते हैं। और उसके बावजूद भी अगर सवाल पूछने ही हैं तो ऐसे पूछो जैसे अर्णव गोस्वामी या IBN 7 के पत्रकार पूछ रहे थे। आप वो बात क्यूँ पूछते हैं जो बताने के काबिल नही है।
अब दिल्ली के LG ने उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को तुरन्त फ़िनलैंड से वापिस दिल्ली आने को कहा ताकि उनके अनुसार दिल्ली की गम्भीर चिकनगुनिया की समस्या को सम्भाला जा सके। अब इस पर होना तो ये चाहिए था की सिसोदिया को तुरन्त जी जनाब कहते हुए वापिस आ जाना चाहिए था। लेकिन नही। वही खराब आदत। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री पूछ रहे हैं की जब हालत इतनी ही खराब है तो खुद LG विदेश में क्या कर रहे हैं ? कर लो बात। अब उन्हें कौन समझाये की LG का काम जवाब मांगना है, देना नही। अगर LG को इस तरह के सवालों के जवाब देने पड़े तो हो गयी गवर्नरी।
दूसरी तरफ लोगों ने मोदीजी जी को हलकान किया हुआ है। कुछ भी पूछ लेते हैं। 15 लाख वाली बात तो इतनी आम हो गयी है की बच्चा भी पूछ लेता है की कब तक आएंगे। अब ये कोई बात हुई। जब एक बार कह दिया की भाई ये जुमला था, तो अब तो पीछा छोड़ दो। कल मेरे पड़ोसी मुझसे कह रहे थे की जरा मोदीजी से पूछो की वो दस सिर और दाऊद कब आएंगे। मैं हैरान था। मैंने कहा की भाई तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैं और मोदीजी रोज शाम को इक्कठे बैठते हों। और दूसरी बात, तुम्हे क्या दस सिरों का अचार डालना है ? रही दाऊद की बात, तो तुम्हारी क्या उधार बाकि है उसकी तरफ जो इतनी बेसब्री से इंतजार कर रहे हो। अब इन सवालों के भला मोदीजी क्या जवाब दें और क्यों दें। प्रधानमंत्री जवाब देने के लिए होते हैं या राज करने के लिए ?
अब अमित शाह ने कह दिया की अच्छे दिन आने में तीस साल लगेंगे। कई लोग उखड़ गए। बोले, पहले तो पांच साल कहते थे। अब इस बात का क्या जवाब है ? भई, पहले पांच साल मिल जाएँ यही मुश्किल लग रहा था सो पांच साल कह दिया। अब जब राज मिल ही गया है तो जीवन भर वही रहने का जुगाड़ बिठा रहे हैं। मोदीजी 67 के हो गए, तीस साल बाद 100 के करीब हो जायेंगे सो हिसाब लगा कर तीस साल बोल दिया। अब इस पर भी पलटकर सवाल करोगे तो क्या जवाब दें ?
इसलिए मुझे लोगों की ये आदत खराब लग रही है। सवाल पूछने का अधिकार लोकतंत्र में लोगों को नही होता। लोकतंत्र का तो मतलब ही ये होता है की लोक हमेशा तन्त्र में फंसे रहते हैं। और उसके बावजूद भी अगर सवाल पूछने ही हैं तो ऐसे पूछो जैसे अर्णव गोस्वामी या IBN 7 के पत्रकार पूछ रहे थे। आप वो बात क्यूँ पूछते हैं जो बताने के काबिल नही है।
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