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Friday, February 26, 2016

क्या ये दूसरा शम्बूक वध ( हत्या ) है ?

            
  हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की संस्थाकीय हत्या के बाद JNU की घटनाओं पर बीजेपी और आरएसएस का रुख ठीक उसी तरह है जिस तरह शम्बूक नामक शूद्र की ज्ञान प्राप्ति से घबराये हुए अयोध्या के ब्राह्मणो का था। रामायण में इस बात का जिक्र है की शम्बूक की ज्ञान प्राप्ति को रोकने के लिए उस समय अयोध्या के ब्राह्मणो के पास कोई उचित तर्क नही था। इसलिए उन्होंने एक ब्राह्मण के बालक की असामयिक मृत्यु को उसके साथ जोड़ दिया। और उस समय के राजा राम को उस नितान्त असंगत आधार पर भी शम्बूक की हत्या करने में कोई हिचक नही हुई। समाज में ऊपरी पायदान पर बैठा वर्ग हमेशा अपनी स्थिति के खो जाने की आशंका से भयभीत रहता है। और वो हमेशा इस स्थिति को बनाये रखने में कुतर्को और षड्यंत्रों का सहारा लेता रहा है। चाहे द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अंगूठा काटने की घटना हो या मौजूदा समय में उच्च शिक्षा में दलितों के प्रवेश को रोकने के लिए की गयी तिकड़में हों।
                JNU में छात्रवृति बंद करने के पीछे भी यही कारण था। उच्च शिक्षा से छात्रवृति बंद करना सीधे सीधे गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित किये जाने का मामला है जिनमे से बड़ा हिस्सा दलितों से आता है। इस निर्णय के विरोध में JNU छात्र यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया के नेतृत्व में छात्रों का संघर्ष और OCCUPAI  UGC  जैसे प्रोग्राम सामने आये। इन सब पर सरकार ने जो दमन चक्र चलाया उसके बाद सरकार इस  स्थिति में ही नही है की वो इससे इंकार कर सके।
                 उसके बाद संसद में और टीवी चैनलों पर बीजेपी और आरएसएस के प्रवक्ता इस बहस को दुर्गा और महिसासुर तक ले गए। इसे यहां तक लेकर जाना आरएसएस और बीजेपी के उस प्लान का ही हिस्सा है जो देश में एक साम्प्रदायिक और जातीय विभाजन खड़ा करने की कोशिश करता हैं। संसद की ये परम्परा रही है की किसी भी वर्ग समूह द्वारा किसी भी देवी देवता और ऐतिहासिक महापुरुषों के बारे में की गयी आपत्तिजनक टिप्पणी का मुद्दा यदि उठाया जाता है तो उन शब्दों का प्रयोग ज्यों का त्यों नही किया जाता जिन पर आपत्ति होती है। क्योंकि इससे किसी दूसरे समुदाय की भावनाएं आहत हो सकती हैं। लेकिन बीजेपी ने स्मृति ईरानी के नेतृत्त्व में ठीक उन्ही शब्दों का प्रयोग किया और पहले घटी हुई किसी घटना जिसमे बीजेपी के  मौजूदा सांसद उदित राज मुख्य वक्ता थे, उसके लिए राहुल गांधी को जवाब देने के लिए कहा। बीजेपी एक बार अपने सांसद उदित राज से तो पूछ लेती की उसका इस बारे में क्या विचार है। लेकिन उसने इसका राजनैतिक प्रयोग किया।
                 भारतीय समाज में देवी देवताओं और पूजा पध्दतियों के बारे में इतनी विविधतायें हैं जिनको आरएसएस और बीजेपी एक रूप देने की विफल कोशिश करती रही हैं। कुछ समुदाय महिसासुर और रावण की पूजा करते हैं। बिहार में जरासंध का जन्मदिन मनाया जाता है और उसमे बीजेपी के नेता शामिल होते हैं। धर्म की मान्यताएं हमेशा अकादमिक बहस का मुद्दा रही हैं। जिन्हे हम समाज सुधारक कहते है उन्होंने क्या किया था ? पहले चली आ रही मान्यताओं पर हमला करके उनके जन विरोधी चरित्र को उजागर किया था और उन्हें बदलने के लिए लोगों को तैयार किया था। इस तरह तो सबको देशद्रोही घोषित किया जा सकता है। बीजेपी के प्रवक्ता का ये कहना की हमे महिसासुर की पूजा से एतराज नही है बल्कि दुर्गा के चित्रण में प्रयोग शब्दों पर आपत्ति है। लेकिन ये आपत्ति तो कुछ लोगों द्वारा महिसासुर और रावण के चित्रण में प्रयोग शब्दों पर भी हो सकती है। क्या संबित पात्रा इस बात की गारंटी लेंगे की की आगे से चाहे रामलीला हो या कोई दूसरा प्रवचन, उसमे इनके लिए उस तरह का चित्रण नही किया जायेगा। इसलिए लोगों और विभिन्न समूहों द्वारा सदियों से अपनाये गए रीती रिवाजों पर अकादमिक बहस तो हो सकती है, लेकिन इनका राजनैतिक इस्तेमाल देश को बहुत महंगा पड़ सकता है।
                अब आते हैं रोहित वेमुला की मौत पर। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं की ABVP के कहने पर बीजेपी सरकार के मंत्रियों ने उन पर कार्यवाही के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया और उन्हें विश्वविद्यालय से बाहर निकलवाया। हो सकता है ये चीजें अदालत में साबित ना हों। अदालत में बहुत सी चीजें साबित नही होती, इसका मतलब ये नही होता की सच्चाई बदल जाएगी। रोहित एक होनहार रिसर्च स्कालर था और उस वर्ग से आता था जो रामराज से आज तक शिक्षा का अधिकारी स्वीकार नही किया गया है। ये साफ तोर पर दूसरी बार शम्बूक की हत्या है।

Monday, February 22, 2016

रोहित वेमुला केस में दलित पार्टियों की ख़ामोशी

             कल 23 फ़रवरी है। कल ही हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने रोहित वेमुला की संस्थाकीय हत्या मामले में न्याय की मांग करते हुए दिल्ली चलो का नारा दिया है। इस नारे पर कल दिल्ली में एक बड़ा छात्र प्रदर्शन होने की उम्मीद है। बीजेपी के छात्र संगठन ABVP के रोहित का विरोध करने के बाद केंद्र सरकार के दो मंत्रियों बंडारु दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी ने रोहित की गतिविधियों को राष्ट्र विरोधी बताते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन को उन्हें विश्वविद्यालय से बाहर करने को मजबूर किया, जिसके चलते रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली। इसलिए पुरे देश के छात्र इसे संस्थाकीय हत्या कह रहे हैं।
             लेकिन इसमें एक बहुत ही अजीब सी लगने वाली चीज भी सामने आई है। दलितों के नाम पर राजनीती करने वाली पार्टियां इस पर आश्चर्यजनक रूप से खामोश हैं। जो पार्टियां बहुत ही छोटी छोटी बातों को भी दलित उत्पीड़न का मामला बता कर राजनीती करती रही हैं, वो इस सवाल पर चुप्पी साध गयी। आखिर इसका क्या कारण है ?
             रोहित वेमुला पहले वामपंथी छात्र संगठन SFI के साथ जुड़ा हुआ था और बाद में उसने अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन ज्वाइन कर ली। रोहित विश्वविद्यालय की राजनीती में दलित छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव के साथ बहुत ही बुनियादी सवाल उठा रहा था जो व्यवस्था के साथ जुड़े हुए थे। ये वो सवाल थे जिनसेदलित राजनीती का स्वरूप बदल सकता था। वह परिवारों के नाम पर या खोखले नारों के नाम पर बनी राजनितिक पार्टियों का विरोध करता था और दलितों के लिए बुनियादी सुधारों की मांग करता था। वह अम्बेडकर की राजनितिक लाइन को समझता था और इसे केवल जातिवादी नारों से वोट बटोरने तक घटाने का विरोधी था। इसीलिए एक तरफ जहां ABVP जैसे साम्प्रदायिक छात्र संगठन उससे डरते थे तो दूसरी तरफ अम्बेडकर के नाम पर सत्ता की मलाई खाने वालों को भी उससे परेशानी होती थी। रोहित वेमुला छात्र राजनीती में और दलित राजनीती में एक क्रन्तिकारी लेकिन कम पहचानी हुई धारा की अगुवाई कर रहा था। जिस तरह भगत सिंह आजादी की लड़ाई में एक छोटी लेकिन समानान्तर विचारधारात्मक लड़ाई का नेतृत्त्व करते थे। जिस तरह भगत सिंह की शहादत ने देश के नौजवानो को उन विचारों को जानने और समझने के लिए प्रेरित किया था, उसी तरह रोहित वेमुला की शहादत ने भी दलित छात्रों और नौजवानो को उस बुनियादी लड़ाई को समझने के लिए प्रेरित किया है। और यही कारण है की दलित राजनैतिक पार्टियां उससे खतरा महसूस करती हैं। उन्हें लगता है की अगर ये बुनियादी सवाल उठाये गए तो इनमे से एक का भी जवाब उनके पास नही है।
             लेकिन क्या ये ख़ामोशी रोहित के विचारों को छात्रों और नौजवानो तक पहुंचने से रोक पायेगी। क्योंकि पुरे हिंदुस्तान में सदियों से इस उत्पीड़न के शिकार दलित और अल्पसंख्यक नौजवान प्रगतिशील वामपंथी ताकतों के साथ मिलकर एक मोर्चा बना रहे हैं। पूरी खलबली और JNU जैसे हमले इसी मोर्चे से घबराहट का नतीजा हैं। रोहित के साथ भी वही होने वाला है जो अफ़्रीकी नेता लुमुम्बा की हत्या  जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में है। उन्होंने  कहा था की ," एक मरा हुआ लुमुम्बा, एक जिन्दा लुमुम्बा से ज्यादा खतरनाक होता है। "