हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की संस्थाकीय हत्या के बाद JNU की घटनाओं पर बीजेपी और आरएसएस का रुख ठीक उसी तरह है जिस तरह शम्बूक नामक शूद्र की ज्ञान प्राप्ति से घबराये हुए अयोध्या के ब्राह्मणो का था। रामायण में इस बात का जिक्र है की शम्बूक की ज्ञान प्राप्ति को रोकने के लिए उस समय अयोध्या के ब्राह्मणो के पास कोई उचित तर्क नही था। इसलिए उन्होंने एक ब्राह्मण के बालक की असामयिक मृत्यु को उसके साथ जोड़ दिया। और उस समय के राजा राम को उस नितान्त असंगत आधार पर भी शम्बूक की हत्या करने में कोई हिचक नही हुई। समाज में ऊपरी पायदान पर बैठा वर्ग हमेशा अपनी स्थिति के खो जाने की आशंका से भयभीत रहता है। और वो हमेशा इस स्थिति को बनाये रखने में कुतर्को और षड्यंत्रों का सहारा लेता रहा है। चाहे द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य का अंगूठा काटने की घटना हो या मौजूदा समय में उच्च शिक्षा में दलितों के प्रवेश को रोकने के लिए की गयी तिकड़में हों।
JNU में छात्रवृति बंद करने के पीछे भी यही कारण था। उच्च शिक्षा से छात्रवृति बंद करना सीधे सीधे गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित किये जाने का मामला है जिनमे से बड़ा हिस्सा दलितों से आता है। इस निर्णय के विरोध में JNU छात्र यूनियन के अध्यक्ष कन्हैया के नेतृत्व में छात्रों का संघर्ष और OCCUPAI UGC जैसे प्रोग्राम सामने आये। इन सब पर सरकार ने जो दमन चक्र चलाया उसके बाद सरकार इस स्थिति में ही नही है की वो इससे इंकार कर सके।
उसके बाद संसद में और टीवी चैनलों पर बीजेपी और आरएसएस के प्रवक्ता इस बहस को दुर्गा और महिसासुर तक ले गए। इसे यहां तक लेकर जाना आरएसएस और बीजेपी के उस प्लान का ही हिस्सा है जो देश में एक साम्प्रदायिक और जातीय विभाजन खड़ा करने की कोशिश करता हैं। संसद की ये परम्परा रही है की किसी भी वर्ग समूह द्वारा किसी भी देवी देवता और ऐतिहासिक महापुरुषों के बारे में की गयी आपत्तिजनक टिप्पणी का मुद्दा यदि उठाया जाता है तो उन शब्दों का प्रयोग ज्यों का त्यों नही किया जाता जिन पर आपत्ति होती है। क्योंकि इससे किसी दूसरे समुदाय की भावनाएं आहत हो सकती हैं। लेकिन बीजेपी ने स्मृति ईरानी के नेतृत्त्व में ठीक उन्ही शब्दों का प्रयोग किया और पहले घटी हुई किसी घटना जिसमे बीजेपी के मौजूदा सांसद उदित राज मुख्य वक्ता थे, उसके लिए राहुल गांधी को जवाब देने के लिए कहा। बीजेपी एक बार अपने सांसद उदित राज से तो पूछ लेती की उसका इस बारे में क्या विचार है। लेकिन उसने इसका राजनैतिक प्रयोग किया।
भारतीय समाज में देवी देवताओं और पूजा पध्दतियों के बारे में इतनी विविधतायें हैं जिनको आरएसएस और बीजेपी एक रूप देने की विफल कोशिश करती रही हैं। कुछ समुदाय महिसासुर और रावण की पूजा करते हैं। बिहार में जरासंध का जन्मदिन मनाया जाता है और उसमे बीजेपी के नेता शामिल होते हैं। धर्म की मान्यताएं हमेशा अकादमिक बहस का मुद्दा रही हैं। जिन्हे हम समाज सुधारक कहते है उन्होंने क्या किया था ? पहले चली आ रही मान्यताओं पर हमला करके उनके जन विरोधी चरित्र को उजागर किया था और उन्हें बदलने के लिए लोगों को तैयार किया था। इस तरह तो सबको देशद्रोही घोषित किया जा सकता है। बीजेपी के प्रवक्ता का ये कहना की हमे महिसासुर की पूजा से एतराज नही है बल्कि दुर्गा के चित्रण में प्रयोग शब्दों पर आपत्ति है। लेकिन ये आपत्ति तो कुछ लोगों द्वारा महिसासुर और रावण के चित्रण में प्रयोग शब्दों पर भी हो सकती है। क्या संबित पात्रा इस बात की गारंटी लेंगे की की आगे से चाहे रामलीला हो या कोई दूसरा प्रवचन, उसमे इनके लिए उस तरह का चित्रण नही किया जायेगा। इसलिए लोगों और विभिन्न समूहों द्वारा सदियों से अपनाये गए रीती रिवाजों पर अकादमिक बहस तो हो सकती है, लेकिन इनका राजनैतिक इस्तेमाल देश को बहुत महंगा पड़ सकता है।
अब आते हैं रोहित वेमुला की मौत पर। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं की ABVP के कहने पर बीजेपी सरकार के मंत्रियों ने उन पर कार्यवाही के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बनाया और उन्हें विश्वविद्यालय से बाहर निकलवाया। हो सकता है ये चीजें अदालत में साबित ना हों। अदालत में बहुत सी चीजें साबित नही होती, इसका मतलब ये नही होता की सच्चाई बदल जाएगी। रोहित एक होनहार रिसर्च स्कालर था और उस वर्ग से आता था जो रामराज से आज तक शिक्षा का अधिकारी स्वीकार नही किया गया है। ये साफ तोर पर दूसरी बार शम्बूक की हत्या है।
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