खबरी -- क्या भारत ने शार्क सम्मेलन का बायकाट करके पाकिस्तान को अलग थलग कर दिया ?
गप्पी -- भारत के बायकाट करने के बाद शार्क सम्मेलन का रदद् या स्थगित होना तय हो गया है। भारत सरकार इस पर अपनी पीठ ठोंक रही है। लेकिन इसका सीधा असर दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय सहयोग के लिए बनाये गए संगठन को कमजोर करने का होगा। ये अपनी ही मेहनत पर पानी फेरने जैसी बात है। इससे सबसे ज्यादा ख़ुशी अमेरिका को होगी जो इस तरह के संगठनों के बुनियादी तौर पर खिलाफ है। क्योंकि इस तरह के संगठन उसकी विश्व बाजार पर इजारेदारी को चुनोती देते हैं। बीजेपी हमेशा अमेरिका की समर्थक रही है इसलिए उसका भी शार्क को कमजोर करने का इरादा साफ झलकता है। इसका मतलब तो ये हुआ की -
१. अगर अमेरिका को अलग थलग करने का मामला आये तो सयुंक्त राष्ट्र संघ का बहिस्कार कर दिया जाये, क्योंकि उसका मुख्यालय अमेरिका में है।
२. अगर अपने देश की सरकार को अलग थलग करना है तो संसद से इस्तीफा दे दिया जाये।
इस तरह के बहुत से संगठन हैं जिनके मुख्यालय या कार्यक्रम उन देशों में आयोजित होते हैं जिनके साथ कई देशों के मतभेद होते हैं। लेकिन उन संगठनों का कोई बहिस्कार नही करता। शीतयुद्ध के दिनों में जब रुसी और अमेरिकी खेमा सामने वाले के खेमे में आयोजित होने वाले ओलोम्पिक खेलों का बायकाट करते थे तो उसे सही नही माना जाता था। द्विपक्षीय झगड़ों को बहाना बना कर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों का बहिष्कार स्वस्थ तरीका नही है। इससे उसका छिछोरापन ही जाहिर होता है।
गप्पी -- भारत के बायकाट करने के बाद शार्क सम्मेलन का रदद् या स्थगित होना तय हो गया है। भारत सरकार इस पर अपनी पीठ ठोंक रही है। लेकिन इसका सीधा असर दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय सहयोग के लिए बनाये गए संगठन को कमजोर करने का होगा। ये अपनी ही मेहनत पर पानी फेरने जैसी बात है। इससे सबसे ज्यादा ख़ुशी अमेरिका को होगी जो इस तरह के संगठनों के बुनियादी तौर पर खिलाफ है। क्योंकि इस तरह के संगठन उसकी विश्व बाजार पर इजारेदारी को चुनोती देते हैं। बीजेपी हमेशा अमेरिका की समर्थक रही है इसलिए उसका भी शार्क को कमजोर करने का इरादा साफ झलकता है। इसका मतलब तो ये हुआ की -
१. अगर अमेरिका को अलग थलग करने का मामला आये तो सयुंक्त राष्ट्र संघ का बहिस्कार कर दिया जाये, क्योंकि उसका मुख्यालय अमेरिका में है।
२. अगर अपने देश की सरकार को अलग थलग करना है तो संसद से इस्तीफा दे दिया जाये।
इस तरह के बहुत से संगठन हैं जिनके मुख्यालय या कार्यक्रम उन देशों में आयोजित होते हैं जिनके साथ कई देशों के मतभेद होते हैं। लेकिन उन संगठनों का कोई बहिस्कार नही करता। शीतयुद्ध के दिनों में जब रुसी और अमेरिकी खेमा सामने वाले के खेमे में आयोजित होने वाले ओलोम्पिक खेलों का बायकाट करते थे तो उसे सही नही माना जाता था। द्विपक्षीय झगड़ों को बहाना बना कर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों का बहिष्कार स्वस्थ तरीका नही है। इससे उसका छिछोरापन ही जाहिर होता है।