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Sunday, September 4, 2016

दलित, अल्पसंख्यक और प्रधानमंत्री मोदी।

खबरी -- मोदीजी ने अपने इंटरव्यू में खुद को दलितों का हितैषी बताया है।

गप्पी -- अब जब दलितों पर चारों तरफ से हमलों की खबरें आ रही हैं, तब प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को दलितों का हितैषी बताया है। जब 2002 के गुजरात दंगों के बाद पुलिस एकतरफा कार्यवाही कर रही थी और सुप्रीम कोर्ट तक को दंगों के केस गुजरात से बाहर ट्रान्सफर करने पड़े थे, तब मोदीजी ने अपने आप को अल्पसंख्यकों का हितैषी बताया था। जब संसद में भूमि अधिग्रहण बिल पेश किया गया था तब मोदीजी ने अपने आप को किसानों का हितैषी बताया था। जब देश के मजदूर और कर्मचारी श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर हड़ताल कर रहे थे तब मोदीजी ने खुद को मजदूरों का हितैषी बताया था। जब मोदीजी एक साँस में तीन बार हमारे सैनिकों की तारीफ कर रहे थे तब उनकी पुलिस जंतर मंतर पर सैनिकों की पिटाई कर रही थी।

खबरी -- तो फिर सरकार इस सबके खिलाफ काम क्यों करती है ?

गप्पी -- क्योंकि दलित, अल्पसंख्यक, किसान और मजदूर सब मोदीजी के अपने लोग हैं, और यदि सरकार अपने लोगों के लिए काम करेगी तो उस पर पक्षपात का आरोप लगेगा। इसलिए सरकार हमेशा अपने विरोधियों के लिए ही काम करती है चाहे वो अम्बानी हों या अडानी। क्योंकि सरकार हमेशा ये कहती रही है की वो उद्योगपतियों की सरकार नही है इसलिए उनका काम करने में कोई आरोप नही लगेगा।

Wednesday, August 12, 2015

GST बिल घोर जनविरोधी, भयंकर महंगाई बढ़ाने वाला और लघु उद्योगों की मौत का फरमान है।

गप्पी  -- सरकार ने कल राज्य सभा में GST बिल पेश कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पास कर चुकी है। राज्य सभा में इसे पेश करते वक्त कांग्रेस ने भारी हंगामा किया। परन्तु ये हंगामा इस बिल पर किसी सैद्धान्तिक विरोध के कारण नही था बल्कि सरकार और विपक्ष के बीच कुछ मंत्रियों के इस्तीफे को लेकर चल रही खींचतान के कारण था। मुझे इस बात पर आश्चर्य है की इतने जनविरोधी बिल का उस तरह विरोध क्यों नही हो रहा जिस तरह भूमि बिल का हुआ। क्या राजनैतिक पार्टियां इस बिल के जनविरोधी चरित्र  समझने में नाकाम रही या फिर सभी पार्टियां इसकी सहयोगी हैं। हमारा पूरा कॉर्पोरेट क्षेत्र और सभी बड़ी कंपनियां क्यों इसको लागु करने के लिए इतना जोर डाल रही हैं। 

     GST बिल क्या है --

                                   बहुत पहले सरकार ने वैट लागु किया था। तब सरकार ने दावा किया था की वैट के लागु होने के बाद वस्तुओं की कीमतें घटेंगी। और बाकि सारे टैक्स जिसमे CST भी शामिल था, खत्म हो जायेंगे। लेकिन आज क्या स्थिति है। CST जारी है और वैट के बाद कीमतें बढ़ी हैं। ठीक वही तर्क सरकार इस बार भी दे रही है। ये आश्वासन देने वाला वही है जिसने अपने पहले दिए गए आश्वासनों को पूरा नही किया। लेकिन सवाल ये है की इस GST बिल से क्या बदल जाने वाला है। इसमें कौन कौन से प्रावधान हैं जो कीमतों और उत्पादन करने वालों की स्थिति को प्रभावित करेंगे।
१. GST की दर लगभग 20 से 26 % के बीच रहेगी। इसमें एक्साइज ड्यूटी और वैट समेत सभी कर शामिल होंगे। अभी सर्विस टैक्स की दर 14 % है  जो इसके लागु होने के बाद बढ़ जाएगी। जिन वस्तुओं पर अभी 10 % एक्साइज ड्यूटी लगती है और उसके बाद वैट लगता है वो सब इसमें शामिल हो जायेगा।
२. अभी देश में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिन पर एक्साइज ड्यूटी नही लगती है। परन्तु इस बिल के बाद चूँकि एक्साइज ड्यूटी GST में पहले ही शामिल है सो सभी चीजों पर लगेगी। ये एक्साइज ड्यूटी का सर्वीकरण होगा।
३. जिन चीजों पर अभी एक्साइज ड्यूटी लगती है वो उत्पादक पर लगती है। उसके बाद उस पर कोई गणना नही होती है। परन्तु GST लागु होने बाद इसकी गणना हर स्तर पर होगी जैसे अभी वैट की होती है। इसलिए उसका क्षेत्र और रकम बढ़ जाएगी।
४. सरकार एक मजाक कर रही है और कह रही है की इसमें सारे टैक्स जिसमे एक्साइज ड्यूटी, वैट , लक्जरी टैक्स, मनोरंजन कर और सर्विस टैक्स शामिल होंगे इसलिए कीमतें घटेंगी। परन्तु असलियत ये है की जिस पर सर्विस टैक्स लागु है उस पर वैट लागु नही है, जिस पर मनोरंजन कर लागु है उस पर दूसरे टैक्स पहले ही लागु नही हैं।
 GST का महंगाई पर असर ------ ऊपर के हिसाब से ये बात तो भूल ही जानी चाहिए की इससे कीमतें कम हो जाएँगी। इससे भयंकर रूप से महंगाई बढ़ेगी और लोगों की कमर टूट जाएगी। आप एक ऐसी व्यवस्था में प्रवेश करने जा रहे हैं जिसमे अगर आप घर चलाने में 20000 रूपये खर्च कर रहे हैं तो उसमे से 5000 रूपये तो केवल टैक्स होगा। जो हालत अभी पट्रोल और डीजल की है व्ही हालत बाकि चीजों की हो जाएगी। 
लघु उद्योग मर जायेगा --- यही है वो असली मकसद जो इसको लाने के लिए जवाबदार है। अभी हमारे कुल ओद्योगिक उत्पादन में लघु और घरेलू उद्योग का हिस्सा 35 % है। अपनी सारी कोशिशों के बावजूद बड़ी कंपनियां इसको छीनने में असफल हो चुकी हैं। इस हिस्से पर उनकी नजर पहले से है। सरकार इस पर बहुत से तर्क दे कर ये साबित करना चाहती है की GST बिल में लघु उद्योग के लिए सारे प्रावधान रखे गए हैं। हमे एकबार उन प्रावधानों की असलियत जानने की जरूरत है।
१. सरकार का कहना है की घरेलू और लघु उद्योगों के लिए इसमें डेढ़ करोड़ तक के व्यापार की छूट दी गई  है। और ये काफी है। परन्तु ये छूट केवल छलावा है। और इस छूट का कोई भी लाभ लघु और घरेलू उद्योगों को नही होगा। क्योंकि लघु उद्योग जिन दुकानदारों  व्यापारियों के द्वारा अपना मॉल बाजार में बेचता है उनकी छूट की सीमा केवल दस लाख ही है। इसलिए उस पर टैक्स तो लगेगा ही। अगर दुकानदार किसी भी लघु उद्योग से मॉल खरीदता है और वो उद्योग टैक्स छूट की सीमा में आता है तो दुकानदार को मॉल बेचते वक्त वो सारा टैक्स खुद जमा करवाना पड़ेगा। इसलिए इस छूट का कोई मतलब नही रह जाता है।
२. जो लघु उद्योग अपना मॉल सीधे उन उद्योगों को बेचते हैं जो इस सीमा से बाहर हैं तो उन्हें GST जमा करवाना ही पड़ेगा। क्योंकि दुकानदारों की तरह ही उस मॉल की छूट का लाभ बड़े उद्योगों को नही मिलेगा।
३. लघु उद्योग जो कच्चा मॉल बाजार से खरीदेंगे, उस पर GST लग कर ही आएगा और उन्हें वो ऊँचे भाव पर तो मिलेगा ही, दूसरे GST की रजिस्ट्रेशन के बिना उस टैक्स का उन्हें मॉल बेचते वक्त कोई फायदा नही होगा।
४. अभी तक जो लघु उद्योग एक्साइज ड्यूटी से बाहर थे वो सब पिछले दरवाजे से उसमे शामिल कर दिए गए हैं। इसलिए अब छोटे और बड़े उद्योग की लागत बराबर हो जाएगी और लघु उद्योग को जो इस रूप में सरंक्षण प्राप्त था जो खत्म हो जायेगा। यही वो मुख्य कारण है जिसके लिए बड़ी कंपनियां और कार्पोरेट क्षेत्र इसके लिए जान देने को उतारू है। अब तक बड़े और छोटे उद्योगों की मॉल की कीमत में जो फर्क था वो समाप्त हो जायेगा और उसके साथ ही वो उद्योग प्रतियोगिता नही कर पाने के कारण समाप्त हो जायेंगे। आज ओद्योगिक उत्पादन में लघु उद्योगों का जो हिस्सा है वो बड़ी कम्पनियों को मिल जायेगा। सरकार के केवल एक कदम से वो काम सम्भव हो जायेगा जो बड़ी कम्पनियां अपनी सारी कोशिशों के बाद भी नही कर पाई।
                ये GST बिल लघु उद्योगों के लिए मौत की घंटी है।और लघु और घरेलू उद्योग ही वह क्षेत्र है जो देश को खेती के बाद सबसे ज्यादा रोजगार मुहैया करवाता है। जिसको इस बात में अब भी शक है वो GST लागु होने के दो साल के बाद आंकड़े देख ले।
          जीडीपी में बढ़ौतरी का तर्क -------- सरकार तर्क दे रही है की GST लागु होने के बाद हमारी जीडीपी में 2% तक की बढ़ौतरी हो सकती है। कैसे ? कोई टैक्स प्रणाली बदलने से जीडीपी कैसे बढ़ जाएगी। सरकार परोक्ष रूप से मेरी बात को स्वीकार कर रही है। अब तक जो उत्पादन लघु और छोटे उद्योग करते थे उनमे से बहुत सा उत्पादन जीडीपी की गणना में नही आता था। जब ये हिस्सा बड़े उद्योगों को ट्रांसफर हो जायेगा तो इसकी गणना होने लगेगी। इससे उत्पादन समान रहने पर भी जीडीपी के आंकड़े बढ़े हुए दिखाई देंगे। ये एक तरह का सरकार का कबूलनामा है।
   कांग्रेस का विरोध ----- कांग्रेस ने ही सबसे पहले इस बिल को पेश किया था। उसका इस बिल पर कोई सैद्धान्तिक विरोध नही है। उसका विरोध वैसा ही है जैसा उस समय बीजेपी का था। कांग्रेस ने पूरा देश कॉर्पोरेट के लिए लुटा दिया। अब बीजेपी केवल इस लूट को और तेज करना चाहती है।
    वामपन्थी पार्टियां और GST बिल ----- इस तरह के जनविरोधी कदमों का विरोध करने का काम उसके बाद वामपंथियों के हिस्से में आता है। परन्तु दुर्भाग्य की बात है की वामपंथी भी इस बिल का विरोध उस तरह नही कर रहे हैं जिस तरह करना चाहिए। जिस तरह भूमि बिल का विरोध किया और सरकार को अपने कदम वापिस खेंचने पर मजबूर किया।

Friday, July 31, 2015

Vyang -- नेताजी द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं की क्लास

गप्पी -- सरकारी पार्टी के दफ्तर में आज खास चहल पहल थी। राजधानी से एक बड़े नेता पार्टी कार्यकर्ताओं की मीटिंग करने आ रहे थे। इसमें वो तात्कालिक मुद्दों पर आम जनता और विरोधियों को कैसे जवाब दिया जाये ये क्लास लेने वाले थे। नेताजी के सचिव ने पूरे दफ्तर में घूम कर मुआयना किया और फिर नेता जी से कहा, " चाय नाश्ते का इन्तजाम नजर नही आ रहा है। "

          नेताजी ने उसकी तरफ नाराजगी भरी नजरों से देखते हुए कहा, " जब पार्टी सत्ता में होती है तब कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करने के लिए नाश्ते की जरूरत नही होती। तुम्हे इतना भी नही मालूम ? "

          सचिव को इत्मीनान हो गया। तय समय पर पूरा हाल खचाखच भर गया। और नेताजी ने अपना स्थान ग्रहण किया। दो चार ओपचारिक बातों के बाद नेताजी सीधे मुददे पर आ गए। 

           " जब पार्टी सत्ता में होती है तो लोग तरह तरह के सवाल आप लोगों से करते हैं। उनका जवाब कैसे दिया जाये और आप लोगों को कोई परेशानी वाली स्थिति में नही पड़ना पड़े उसके लिए आज की मीटिंग और क्लास का आयोजन किया गया है। हर कार्यकर्ता किसी भी तरह का सवाल पूछ सकता है। लेकिन इस बात को ध्यान में रखना चाहिए की चाहे हम सड़क पर हों, मुहल्ले में हों या संसद में हों, हमारा मकसद सामने वाले को सन्तुष्ट करना नही बल्कि चुप कराना होता है। इस एक नीति वाक्य को ध्यान में रखोगे तो कोई परेशानी नही आएगी। "

एक कार्यकर्ता ने खड़े होकर पूछा," आजकल लोग कुछ मंत्रियों के भृष्टाचार पर बहुत सवाल पूछ रहे हैं। "

   " बहुत अच्छा सवाल है। इसका जवाब बहुत सीधा और आसान है। अपने मंत्रियों के बारे में जवाब देने के  बजाए विपक्ष के मंत्रियों के भृष्टाचार गिनाना शुरू कर दो। हमारे नेता संसद में जो कर रहे हैं उससे ही तुम्हे समझ जाना चाहिए था। "

 " लेकिन लोग हमे हमारे वायदे की याद दिलाना शुरू कर देते हैं की भृष्टाचार बर्दाश्त नही किया जायेगा। " एक दूसरे कार्यकर्ता ने पूछा। 

   " उन्हें ये बताओ की हम विपक्ष के मंत्रियों का कोई भी भृष्टाचार बर्दाश्त नही करेंगे। कई पुराने मामलों पर सीबीआई को FIR दर्ज करने को कह दिया गया है। और सरकार अपना वायदा जरूर पूरा करेगी। "

    " लेकिन अपने मंत्रियों के भृष्टाचार पर क्या कहें ?" एक दूसरे कार्यकर्ता ने पूछा। 

    " उसके लिए सामने वाले को कहो  की ये कहना ही गलत है की हमारा कोई मंत्री भृष्टाचार कर सकता है। विपक्ष फालतू में मानवीय आधार पर या पारिवारिक संबंधों  किये गए कामों पर सवाल उठा रहे हैं। लोगों को ये बताओ की उन्हें ये मानकर चलना चाहिए की हमारा कोई मंत्री भृष्टाचार नही कर सकता। "

   " कई लोग हमारे विकास के वायदे पर भी सवाल उठा रहे हैं, कालेधन पर सवाल कर रहे हैं। " एक कार्यकर्ता ने पूछा। 

   " उन्हें कहो की विकास हो रहा है इसके लिए उन्हें मूडीज की रेटिंग दिखाओ। और अगर कहीं विकास नही भी हो रहा है तो उसके लिए विपक्ष जिम्मेदार है। "

   " कुछ लोग कहते हैं की हस्पतालों में ना डाक्टर हैं और ना दवाइयाँ हैं इसमें विपक्ष क्या करेगा ?" एक कार्यकर्ता ने हैरानी जताई। 

    " यही तो फर्क है तुममे और हममे। अरे अगर विपक्ष भूमि बिल पास नही होने देगा तो दवाइयों के कारखाने कहां लगेंगे और मैडीकल कॉलेज कहां खुलेंगे। बोलो इसके लिए विपक्ष जिम्मेदार हुआ की नही। " नेताजी ने गर्व से चारों तरफ देखा। 

 कार्यकर्ता ---    " लोग कह रहे हैं की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल इतना सस्ता हो गया है फिर भी रेल या बस के किराये क्यों नही घट रहे हैं।? " 

 नेताजी -----    " उन्हें बताओ की रेल और बस के किराये कम करने के लिए उनका विस्तार करना जरूरी है। और उसके लिए जमीन चाहिए जो विपक्ष भूमि बिल को रोककर लेने नही दे रहा। "

कार्यकर्ता ----- " चौबीस घंटे और सस्ती बिजली के वायदे पर क्या कहें ? "

नेताजी -------- " चौबीस घंटे और सस्ती बिजली के लिए बिजली के नए और बड़े कारखाने लगाने की जरूरत है। जो भूमि बिल को रोककर विपक्ष करने नही दे रहा। "

कार्यकर्ता ------ " लोग फिल्म इंस्टिट्यूट में गजेन्द्र चौहान को चेयरमैन बनाने की योग्यता पर सवाल कर रहे हैं। "

नेताजी --   " लोगों को बताओ की  उसे गजेन्द्र चौहान की नजरों से ना देखें बल्कि युधिष्ठिर के रूप में देखे। किसी संस्था का चेयरमैन सरकार युधिष्ठिर से बेहतर कहां से लाये। ये लोगों का दृष्टि दोष है। विपक्ष किसी कौरव को चेयरमैन बनाना चाहता है। "

कार्यकर्ता -- " लोग लोकतंत्र की परम्पराओं की बात करते है उस पर क्या तर्क दें ?"

नेताजी -----" तुम लोगों को समझ लेना चाहिए की हमारे लिए भीड़तंत्र ही लोकतंत्र है। और जहां तक तर्क का सवाल है तो सामने वाले को चुप करने के लिए कभी भी तर्क पर भरोसा मत करो, कुतर्क पर करो। सामने वाला कुतर्क से जल्दी चुप होता है। आज के लिए इतना काफी है। बाकि लोगों से हमारी सोशल मीडिया की टीम निपट लेगी। "


खबरी -- बहुत खूब !

Tuesday, July 28, 2015

Vyang -- No Politics Please !

गप्पी -- हम गाहे बगाहे ये बात सुनते रहते हैं की कृपया इस मुद्दे पर राजनीती ना करें। कल पंजाब के गुरदासपुर में आतंकवादी हमला हुआ। कई लोग मारे गए। पंजाब के मुख्यमंत्री बादल साहब का बयान आया की आतंकवादी सीमा पार से आये थे इसलिए ये राज्य का मामला नही है। संसद में विपक्ष ने जब इस पर गुप्तचर असफलता का आरोप  लगाया तो वेंकैया नायडू ने कहा की आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीती नही की जानी  चाहिए। विपक्ष के लोगों को तो एक बार जैसे सांप सूंघ गया। ये बात उस पार्टी के नेता और खुद वो मंत्री कह रहे हैं जो लगभग सारी राजनीती इसी मुद्दे पर करते रहे हैं। पिछली  UPA सरकार का उन्होंने ये कह कह कर जीना हराम कर दिया था की ये सरकार देश की सुरक्षा के मामले पर असफल है।

                 इससे पहले जब भूमि बिल पर विपक्ष ने विरोध जताया था तब भी सरकार ने कहा था की विपक्ष को देश के विकास के सवाल पर राजनीती नही करनी चाहिए। सरकार बार बार विपक्ष को ये याद दिलाती है की भैया इन मामलों पर राजनीती मत करो। लेकिन विपक्ष है की मानता ही नही है। वह हमेशा गलत चीजों पर राजनीती करता है जैसे आतंकवाद, महंगाई, बेरोजगारी, भूमि बिल इत्यादि। अब अगर विपक्ष इन मामलों पर राजनीती करेगा तो देश का क्या होगा ?

                     इसलिए मेरा सरकार को सुझाव है की वो संसद में एक बिल लेकर आये और उसमे तय कर दिया जाये की किन किन मुद्दों पर राजनीती की जा सकती है। और उन मुद्दों पर राजनीती करने के लिए संसद का एक विशेष सत्र हर साल बुलाया जाये। इसके अलावा बाकि जो भी संसद के सत्र हों उनमे विपक्ष को राजनीती करने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इन सत्रों में विपक्ष का काम केवल हाथ ऊपर करना तय कर दिया जाये वो भी तब जब सरकार कहे।

                     राजनीती करने के लिए जो विशेष सत्र बुलाया जाये उसमे इस तरह का काम रक्खा जाये जैसे राजनीती पर चुटकुले सुनाना, होली खेलना और होली के गीत गाना जिनमे कुछ गालियों की भी छूट दी जा सकती है। संसद से वाकआउट करने और कार्यवाही रोकने जैसे प्रोग्राम भी केवल इसी सत्र में किये जा सकते हैं। कितना अच्छा लगेगा जब संसदीय कार्य मंत्री विपक्ष के किसी नेता पर कोई चुटकुला सुनाएंगे और विपक्ष उसका विरोध करते हुए वाकआउट करेगा। विपक्ष के वाकआऊट की तारीफ करते हुए सत्ता पक्ष के लोग तालियां बजायेंगे और प्रदर्शन की प्रशंसा करेंगे। संसद में एकदम राष्ट्रीय एकता का नजारा होगा।

                       बाकि सत्रों में इस पर रोक का बिल पास होने के बाद जो नियम बनाएं जाएँ उनमे कुछ इस तरह के हो सकते हैं।

        १. सत्र के दौरान विपक्ष के सदस्य मुंह पर कपड़ा लपेट कर आएंगे लेकिन वो काले रंग का नही होना चाहिए।

        २. सरकार किसी बिल पर जब हाथ उठाने के लिए कहेगी तब सभी सदस्यों को पार्टी से ऊपर उठकर हाथ उठाना होगा।

        ३. अचानक कोई घटना घटित होने पर अगर विपक्ष को लगता है की उसे सदन में उठाया जाये तो वो उसे लिखकर संसदीय कार्य मंत्री को देंगे और मंत्री उसकी भाषा कागज पर लिखकर देंगे। उसके अलावा कोई शब्द नही बोला जायेगा।

          ४. किसी मंत्री का कोई घोटाला सामने आता है तो उसे राष्ट्रीय कर्म माना  जायेगा और जब तक सरकार के अंदरुनी मतभेदों के कारण मंत्री को हटाने की नौबत नही आएगी विपक्ष तब तक इंतजार करेगा। ऐसा समय आने पर सरकार विपक्ष को सुचना देगी और विपक्ष उसका इस्तीफा मांग सकता है। इसके अलावा किसी भी मंत्री का इस्तीफा मांगना देशद्रोह माना जायेगा।

           ५.  प्रधानमंत्री से किसी भी मामले पर बयान देने को नही कहा जायेगा और प्रधानमंत्री केवल अपने विदेशी दौरों पर बयान देंगे। और इस पर पूरा देश प्रधानमंत्री के साथ है ये संदेश देने के लिए विपक्ष के सभी सदस्यों द्वारा मेज थपथपाना जरूरी होगा।

            ६. बजट पर विपक्ष के बहस करने पर पाबंदी रहेगी और केवल सत्ता पक्ष के लोग उस पर बोल सकते हैं।

            ७. देश की सभी संवैधानिक संस्थाए मंत्रियों के नीचे और इशारे पर काम करेंगी। संविधान को सरकार के अधीन माना जायेगा। अब तक जो सरकार को संविधान के अधीन माना जाता है वो गलत है और इस भूल का सुधार कर लिया जायेगा। 

            ८. उच्चतम न्यायालय के जजों की नियुक्ति प्रधानमंत्री करेंगे और उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति का अधिकार मुख्यमंत्री का होगा। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अगर चाहें तो अपने परिवार के सदस्यों की राय ले सकते हैं।

            ९. अगर कोई न्यायिक बैंच दो सदस्यों की है तो  अटार्नी जनरल को बैंच का तीसरा सदस्य माना जायेगा।

            १०. न्यायालय के सभी फैसले मंत्रिमंडल की छानबीन और अनुमति के अधीन रहेंगे। 

            ११.  चुनाव की घोषणा के बाद ही विपक्ष सरकार की आलोचना कर सकेगा। शेष समय सरकार की आलोचना पर पाबंदी रहेगी। 

             १२. किसानों और मजदूरों से संबन्धित किसी भी मांग को विकास विरोधी, अल्पसंख्यकों से संबंधित मांगो को तुष्टिकरण और महिलाओं से संबन्धित मांगों को संस्कृति विरोधी माना जायेगा। 

             १३. संविधान संशोधन बिल पर जो दो- तिहाई बहुमत का प्रावधान है उसे सदन की नही बल्कि सत्तापक्ष की सदस्यता का दो-तिहाई माना जायेगा।

             १४.  ये सभी नियम सरकार के स्थाईत्व को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं इसके बावजूद देश के दुर्भाग्य से अगर भाजपा की सरकार चली जाती है तो ये नियम समाप्त मान लिए जायेंगे। 

 

खबरी -- उम्मीद करता हूँ की सरकार तुम्हारे सुझावों को प्रत्यक्ष रूप से भी लागु करेगी।

Thursday, July 16, 2015

नीतिओं के अनुसार योजनाएं या योजना के अनुसार नीतियां

गप्पी -- पहले हमारे देश में एक योजना आयोग होता था। सरकार का दावा था की ये आयोग विकास के लिए योजनाएं बनाता है। इसी आयोग के अनुसार देश में विकास के काम हुए। असली काम कितना हुआ इस पर बहस हो सकती है लेकिन स्कूल के बच्चों को योजनाएं जरूर याद करनी पड़ती थी। पहली योजना, दूसरी योजना इत्यादि। ये किस साल से शुरू हुई और उनमे क्या काम हुआ। अब सरकार का कहना है की ये आयोग एकदम बेकार की चीज थी, और उसे भंग कर दिया गया। अब सरकार नीतियां बनाएगी, इसलिए नीति आयोग बना दिया। 

                      सुबह सुबह मेरे पड़ौसी मेरे पास आकर बैठ गए और पूछने लगे की भाई ये बताओ की क्या बिना नीति के योजनाएं बन सकती हैं? जब सरकार कोई योजना बनती होगी तो उसके पीछे कोई नीति तो होती होगी या नही ? मैं इसका जवाब देने ही वाला था की उसने दूसरा सवाल पूछ लिया की भाई ये बताओ अगर तुम नीति बनाओगे और उसको लागु करने के लिए योजना नही बनाओगे तो उसका क्या फायदा होगा ? एक बार मुझे लगा की इसको मोन्टेक सिंह आहलुवालिया या अरविन्द पनगढिया के पास भेज दूँ और कह दूँ की जो लोग योजनाएं और नीतियां बनाते हैं सीधा उनसे ही क्यों नही पूछ लेते। लेकिन संबंध खराब होने के भय  से मैं ऐसा नही कर पाया। 

                    मैं बोलना शुरू करता इससे पहले ही उसने कहा की मुझे तो लगता है की हमेशा से इस देश में एक ही योजना रही है और वो है जनता को बेवकूफ बनाने की। और ये हर सरकार की साझा नीति रही है चाहे सरकार किसी भी पार्टी की क्यों ना हो। 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाने की योजना बनाई लेकिन गरीबी की जगह इंदिरा जी हट गयी। बाद में जनता पार्टी ने सम्पूर्ण क्रान्ति की योजना बनाई लेकिन दो साल में पार्टी में ही क्रान्ति हो गयी। बाद में वाजपेयी जी ने देश को चमकाने की योजना बनाई लेकिन उस पर इतनी गर्द चढ़ गयी की अब वाजपेयीजी को कुछ याद नही आ रहा। अब तुम्ही बताओ की ये सब बेवकूफ बनाने की योजनाएं थी की नही ?

                    मैं बताना ही चाहता था की वो फिर बोले, अब ये सरकार कह रही थी की कालाधन देश में वापिस आये ये हमारी नीति है। लोगों के लिए अच्छे दिन आएं ये भी हमारी नीति है। लेकिन ये कैसे होगा इसकी कोई योजना हमारे पास नही है। हमने योजना आयोग भंग कर दिया है। और ये कब तक हो जायेगा इस पर हम पहले सोचते थे की 100 दिन में हो जायेगा लेकिन वेंकय्या नायडू जी ने हमे समझाया की नौ महीने से पहले तो बच्चा भी नही हो सकता तो हमने इसको बढ़ा कर एक साल कर दिया। बाद में प्रधानमन्त्री जी ने कहा की देश को गड्ढे से बाहर निकालने के लिये कम से कम पांच साल चाहियें तो हमने इसका समय पांच साल कर दिया। अब जब अध्यक्ष जी ने 25 साल की बात की तो पार्टी ने सोचा की ये कुछ ज्यादा नही हो जायेगा तो हमने तुरंत खण्डन कर दिया। अब हमने इसके लिए नीति तो बना ली है लेकिन योजना आयोग के अभाव में हम इसको लागु कैसे करें। अब तुम बताओ की ये बेवकूफ बनाने की नीति है या नही ?

                  मैंने फिर बोलने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फिर कहना शुरू किया, अब लोगों को ऐसा लगता है की सरकार अंदर खाने हमारी जमीन लेने की योजना बना रही है। प्रधानमन्त्री कह रहे हैं की जमीन के बिना गावों में स्कूल कैसे बनेगे, लोग कहते हैं की जिन गावों में स्कूल हैं उनमे अध्यापक नही हैं इसलिए पहले स्कूलों में अध्यापक भेजो। सरकार कहती है की बजट नही है। लोग कहते हैं की नए स्कूलों में भी अध्यापक तो चाहिए ही होंगे तो सरकार कहती है की पहले स्कूल बनने दो, अध्यापकों की बाद में सोचेंगे। अब तुम ही बताओ की ये बेवकूफ बनाने की बात हुई या नही। इतना कह कर वो उठ कर चले गए। 

                        मैं सोच रहा हूँ की वो मुझसे पूछने आये थे की बताने आये थे। 

खबरी -- अगर तुम्हे लगता है की तुम इसका जवाब दे सकते हो तो अब दे दो, ये सवाल तो सारा देश पूछ रहा है।

                   

Saturday, May 30, 2015

Cabinet Issues Land Ordinance For The Third Time- कैबिनेट ने तीसरी बार भूमि बिल पर अध्यादेश जारी किया

खबरी -- प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है की भूमि बिल उनके लिए जीवन-मरण का सवाल नही है। 

 गप्पी -- भूमि बिल जीवन-मरण का सवाल तो किसानो के लिए है।

Tuesday, May 26, 2015

One year of Modi Government Review - मोदी सरकार के एक साल का लेखाजोखा

खबरी -- मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर तुम्हारा क्या विश्लेषण है। 


गप्पी -- सीधी बात है की मोदी सरकार ने पिछले एक साल में उन सब बिलों को पास करवा दिया ( बीमा बिल, सीमा बिल , खनिज बिल ) जो उसने पिछले पांच साल में पास नही होने दिए , उन सब बिलों को जो उसने साथ मिलकर पास करवाये थे ( भूमि अधिग्रहण बिल ) बदलना शुरू कर दिया और जिन कामों में उसने UPA सरकार पर देरी करने का या लटकाने आरोप लगाया था ( लोकपाल और विदेशी खाता धारकों के नाम ) उनमे से एक भी काम नही होने दिया।

Tuesday, May 19, 2015

कॉर्पोरेट के महारथी कांग्रेस पर बरसे

खबरी -- एक कर्यक्रम में आदि गोदरेज और किरण मजूमदार जैसे कॉरपोरेट के महारथी भूमि बिल और GST पर राज्य सभा में कांग्रेस रुख पर जम कर बरसे। 


गप्पी -- भारत का कॉरपोरेट सेक्टर कांग्रेस को गारंटेड मान  कर चलता है, उन्होंने पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा लाखों करोड़ घोटालों के रूप में कॉर्पोरेट को चटायें जाने के बावजूद बीजेपी का समर्थन किया क्योंकि कॉर्पोरेट को लूट के अवसर देने के मामले में वो बीजेपी को ज्यादा सक्षम मानते हैं, परन्तु अब उन्हें किसी भी  बिल पर कांग्रेस का विरोधी रुख अपनी बेरोकटोक लूट में बाधक नजर आ रहा है। उन्हें कम से कम कांग्रेस से ये उम्मीद नही थी।

Saturday, May 16, 2015

मजदूर संगठनो के साथ सरकार की बातचीत विफल

खबरी -- समाचार है की मजदूरों से संबंधित कानूनो को बदलने को लेकर सरकार और मजदूर संगठनो की बातचीत विफल हो गयी है। 


गप्पी -- भूमि अधिग्रहण बिल की तरह ही मजदूरों के अधिकारों में कटौती करना सरकार की एकतरफा जनविरोधी नीतिओं का उदाहरण है।  और सरकार इस पर भी यही कहेगी की वो ये मजदूरों के हिट में कर रही है।

Wednesday, May 6, 2015

लोकसभा में GST बिल पास

खबरी -- लोकसभा में बीजू जनता दल और तृणमूल के सहयोग और कांग्रेस के सहयोगपूर्ण वाक-आउट द्वारा GST बिल पास।  अब राज्य सभा का इंतजार। 


गप्पी -- कॉर्पोरेट समर्थक पार्टियां न तो विपक्ष का स्थान छोड़ेंगी और न ही उसका कोई बिल अटकने देंगी। सारा हो-हल्ला भूमि बिल जैसे एक बिल पर डालकर लोगों के साथ होने का दिखावा करती रहेंगी।

Saturday, May 2, 2015

अरुण जेटली भूमि बिल पर

खबरी -- अरुण जेटली ने कहा है की अगर भूमि बिल राजयसभा में पास नही हुआ तो संसद का सयुंक्त सत्र बुलाएँगे। 


गप्पी -- जेटली जी को केवल संसद सदस्यों की संख्या तो याद है पर वो लोगों को भूल गए।