गप्पी -- पहले हमारे देश में एक योजना आयोग होता था। सरकार का दावा था की ये आयोग विकास के लिए योजनाएं बनाता है। इसी आयोग के अनुसार देश में विकास के काम हुए। असली काम कितना हुआ इस पर बहस हो सकती है लेकिन स्कूल के बच्चों को योजनाएं जरूर याद करनी पड़ती थी। पहली योजना, दूसरी योजना इत्यादि। ये किस साल से शुरू हुई और उनमे क्या काम हुआ। अब सरकार का कहना है की ये आयोग एकदम बेकार की चीज थी, और उसे भंग कर दिया गया। अब सरकार नीतियां बनाएगी, इसलिए नीति आयोग बना दिया।
सुबह सुबह मेरे पड़ौसी मेरे पास आकर बैठ गए और पूछने लगे की भाई ये बताओ की क्या बिना नीति के योजनाएं बन सकती हैं? जब सरकार कोई योजना बनती होगी तो उसके पीछे कोई नीति तो होती होगी या नही ? मैं इसका जवाब देने ही वाला था की उसने दूसरा सवाल पूछ लिया की भाई ये बताओ अगर तुम नीति बनाओगे और उसको लागु करने के लिए योजना नही बनाओगे तो उसका क्या फायदा होगा ? एक बार मुझे लगा की इसको मोन्टेक सिंह आहलुवालिया या अरविन्द पनगढिया के पास भेज दूँ और कह दूँ की जो लोग योजनाएं और नीतियां बनाते हैं सीधा उनसे ही क्यों नही पूछ लेते। लेकिन संबंध खराब होने के भय से मैं ऐसा नही कर पाया।
मैं बोलना शुरू करता इससे पहले ही उसने कहा की मुझे तो लगता है की हमेशा से इस देश में एक ही योजना रही है और वो है जनता को बेवकूफ बनाने की। और ये हर सरकार की साझा नीति रही है चाहे सरकार किसी भी पार्टी की क्यों ना हो। 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाने की योजना बनाई लेकिन गरीबी की जगह इंदिरा जी हट गयी। बाद में जनता पार्टी ने सम्पूर्ण क्रान्ति की योजना बनाई लेकिन दो साल में पार्टी में ही क्रान्ति हो गयी। बाद में वाजपेयी जी ने देश को चमकाने की योजना बनाई लेकिन उस पर इतनी गर्द चढ़ गयी की अब वाजपेयीजी को कुछ याद नही आ रहा। अब तुम्ही बताओ की ये सब बेवकूफ बनाने की योजनाएं थी की नही ?
मैं बताना ही चाहता था की वो फिर बोले, अब ये सरकार कह रही थी की कालाधन देश में वापिस आये ये हमारी नीति है। लोगों के लिए अच्छे दिन आएं ये भी हमारी नीति है। लेकिन ये कैसे होगा इसकी कोई योजना हमारे पास नही है। हमने योजना आयोग भंग कर दिया है। और ये कब तक हो जायेगा इस पर हम पहले सोचते थे की 100 दिन में हो जायेगा लेकिन वेंकय्या नायडू जी ने हमे समझाया की नौ महीने से पहले तो बच्चा भी नही हो सकता तो हमने इसको बढ़ा कर एक साल कर दिया। बाद में प्रधानमन्त्री जी ने कहा की देश को गड्ढे से बाहर निकालने के लिये कम से कम पांच साल चाहियें तो हमने इसका समय पांच साल कर दिया। अब जब अध्यक्ष जी ने 25 साल की बात की तो पार्टी ने सोचा की ये कुछ ज्यादा नही हो जायेगा तो हमने तुरंत खण्डन कर दिया। अब हमने इसके लिए नीति तो बना ली है लेकिन योजना आयोग के अभाव में हम इसको लागु कैसे करें। अब तुम बताओ की ये बेवकूफ बनाने की नीति है या नही ?
मैंने फिर बोलने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फिर कहना शुरू किया, अब लोगों को ऐसा लगता है की सरकार अंदर खाने हमारी जमीन लेने की योजना बना रही है। प्रधानमन्त्री कह रहे हैं की जमीन के बिना गावों में स्कूल कैसे बनेगे, लोग कहते हैं की जिन गावों में स्कूल हैं उनमे अध्यापक नही हैं इसलिए पहले स्कूलों में अध्यापक भेजो। सरकार कहती है की बजट नही है। लोग कहते हैं की नए स्कूलों में भी अध्यापक तो चाहिए ही होंगे तो सरकार कहती है की पहले स्कूल बनने दो, अध्यापकों की बाद में सोचेंगे। अब तुम ही बताओ की ये बेवकूफ बनाने की बात हुई या नही। इतना कह कर वो उठ कर चले गए।
मैं सोच रहा हूँ की वो मुझसे पूछने आये थे की बताने आये थे।
खबरी -- अगर तुम्हे लगता है की तुम इसका जवाब दे सकते हो तो अब दे दो, ये सवाल तो सारा देश पूछ रहा है।
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