आज संसद में बाबा साहेब अम्बेडकर की 125वीं जयंती पर संविधान दिवस मनाये जाने के अवसर पर संसद में इस विषय पर बोलते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा की भारत में कई बार और बार-बार अपमान सहन करने के बावजूद बाबा साहेब ने कभी देश छोड़ने की बात नही की। राजनाथ सिंह के दिमाग में उस समय भी आमिर खान छाये हुए थे।
लेकिन राजनाथ सिंह ने एक बात नही बताई की ब्राह्मण वादी हिंदू धर्म से अपमानित होकर और ये समझ लेने के बाद की हिन्दू धर्म में रहते हुए किसी भी दलित वर्ग के व्यक्ति के लिए बराबरी का सम्मान प्राप्त करना सम्भव नही है। और इसी कारण से बाबा साहेब अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था और समग्र दलित समाज से हिन्दू धर्म का त्याग करने की सलाह दी थी। ये ब्राह्मण वादी हिन्दू धर्म की असहिष्णुता ही थी जिसने बाबा साहेब अम्बेडकर को हिन्दू धर्म छोड़ने के लिए मजबूर किया। ये वही लोग थे जो बाकि किसी को इस देश का नागरिक मानने को भी तैयार नही थे और आज भी वही लोग हैं जो बाकि किसी को देशभक्त मानना तो दूर, उनको इस देश का नागरिक होने का दर्जा भी देने को तैयार नही हैं।
जब असहिष्णुता की बात होती है तो सभी असहिष्णु तत्व इस बात को इस तरह प्रचारित करते हैं जैसे ये पुरे देश के और खासकर सभी हिन्दुओं के असहिष्णु होने की बात हो। इस मामले पर पुरस्कार लौटाने वाले ज्यादातर लोग हिन्दू ही हैं। और इस असहनशीलता का शिकार होकर जान खो देने वाले दाभोलकर, कलबुर्गी और गोविन्द पंसारे तीनो हिन्दू ही थे। ये लड़ाई हिन्दू और गैर हिन्दू की नही है और ना ही भारतीय और गैर भारतीय की है। ये लड़ाई समाज को बाँटने वाले और देश को एक धर्म आधारित राज्य में बदल देने की कोशिश करने वालों और उसका विरोध करने वालों के बीच है। लेकिन इसमें दुर्भाग्य की बात ये है की इसमें ऐसे लोग भी जो हमेशा से सहिष्णु रहे हैं और इस तरह के विवाद के खिलाफ हैं वो भी दुष्प्रचार के शिकार हो जाते हैं।
लेकिन राजनाथ सिंह ने एक बात नही बताई की ब्राह्मण वादी हिंदू धर्म से अपमानित होकर और ये समझ लेने के बाद की हिन्दू धर्म में रहते हुए किसी भी दलित वर्ग के व्यक्ति के लिए बराबरी का सम्मान प्राप्त करना सम्भव नही है। और इसी कारण से बाबा साहेब अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था और समग्र दलित समाज से हिन्दू धर्म का त्याग करने की सलाह दी थी। ये ब्राह्मण वादी हिन्दू धर्म की असहिष्णुता ही थी जिसने बाबा साहेब अम्बेडकर को हिन्दू धर्म छोड़ने के लिए मजबूर किया। ये वही लोग थे जो बाकि किसी को इस देश का नागरिक मानने को भी तैयार नही थे और आज भी वही लोग हैं जो बाकि किसी को देशभक्त मानना तो दूर, उनको इस देश का नागरिक होने का दर्जा भी देने को तैयार नही हैं।
जब असहिष्णुता की बात होती है तो सभी असहिष्णु तत्व इस बात को इस तरह प्रचारित करते हैं जैसे ये पुरे देश के और खासकर सभी हिन्दुओं के असहिष्णु होने की बात हो। इस मामले पर पुरस्कार लौटाने वाले ज्यादातर लोग हिन्दू ही हैं। और इस असहनशीलता का शिकार होकर जान खो देने वाले दाभोलकर, कलबुर्गी और गोविन्द पंसारे तीनो हिन्दू ही थे। ये लड़ाई हिन्दू और गैर हिन्दू की नही है और ना ही भारतीय और गैर भारतीय की है। ये लड़ाई समाज को बाँटने वाले और देश को एक धर्म आधारित राज्य में बदल देने की कोशिश करने वालों और उसका विरोध करने वालों के बीच है। लेकिन इसमें दुर्भाग्य की बात ये है की इसमें ऐसे लोग भी जो हमेशा से सहिष्णु रहे हैं और इस तरह के विवाद के खिलाफ हैं वो भी दुष्प्रचार के शिकार हो जाते हैं।
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