खबरी -- अमेरिका और नाटो ने रूस का विमान गिराये जाने की घटना पर तुर्की का समर्थन किया है।
गप्पी -- रूस ने विमान गिराने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में इसे आतंकवादियों के सहयोगियों द्वारा पीठ में छुरा घोंपने की घटना बताया था। रूस और दुनिया के बहुत से लोग ये मानते हैं की ISIS की स्थापना और उसका सहयोग अमेरिका और उसके समर्थक कर रहे हैं। कई चीजों और घटनाओं के द्वारा ये बात साफ हुई है। लेकिन ये देश खुद अपने देश की जनता और शेष विश्व के सामने इससे इंकार करती रही हैं। अभी दो दिन पहले सयुंक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पारित करके ISIS के खिलाफ साझी कारवाही का आग्रह किया है। उसके बावजूद ये घटना कुछ दूसरे ही संकेत देती है।
अगर हम इस घटना पर सरसरी नजर भी डालें तो इसके दूसरे उद्देश्य साफ हो जाते हैं। रूस का विमान जब हमले का शिकार हुआ तब वो सीरिया की सीमा में था। उसका मलबा और उसके दोनों पायलट सीरिया के इलाके में गिरे। जिनमे एक पायलट के मृत शरीर पर सीरिया के विद्रोहियों को नाचते हुए दिखाया गया है। खुद तुर्की ने इस पर जो बयान जारी किया है उसमे उसने पांच मिनट में दस बार चेतावनी देने की बात कही है। इसका मतलब ये है की तुर्की ने चेतावनी देने के पांच मिनट के अंदर ही विमान को मार गिराया। रूस सीरिया में ISIS के खिलाफ कार्यवाही कर रहा है और अगर किसी कारणवश ये मान भी लिया जाये की उसके विमान द्वारा तुर्की की सीमा का उल्ल्ंघन हो गया तो इसमें ऐसी कौनसी आफत आ गयी थी की विमान गिराने जैसी कार्यवाही की जरूरत पड़ी। असल कारण ये है की रूस द्वारा सीरिया में असद सरकार को समर्थन इनको हजम नही हो रहा है और इन्हे लगता है की रूस की कार्यवाही के जारी रहते सीरिया के असद विरोधी दलों को कामयाब नही किया जा सकता। अपने बयान में अमेरिका ने कहा है की तुर्की को अपनी वायुसीमा की रक्षा का हक है और रूस अगर केवल ISIS के खिलाफ की कार्यवाही पर ध्यान दे तो टकराव की संभावना कम होगी। ये बयान अपने आप में अमेरिकी और उसके साथी देशो की नीति को स्पष्ट करते हैं।
इसमें एक बड़ा सवाल ये खड़ा होता है की आतंकवाद पर अमेरिका हमेशा दोहरे मापदंड क्यों अपनाता है। उसके तर्क हर बार बदल जाते हैं। जैसे -
१. अमेरिका जब अफगानिस्तान में कार्यवाही करते हुए पाकिस्तान में घुस कर हमला करता है या इस्राइल जब लेबनान और सीरिया में हमला करते हैं तो अमेरिका कहता है की उसे आतंकवादियों का पीछा करने और मार गिराने का हक है।
२. अमेरिका जब असद सरकार के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को समर्थन देता है तो कहता है की वो सीरिया में लोकतंत्र की स्थापना में मदद कर रहा है। और जब वो यमन के भगोड़े राष्ट्रपति को समर्थन देकर यमन के विरोधी दलों पर हमला करता है तो कहता है की एक legitimate सरकार को समर्थन दे रहा है।
३. जब अमेरिका के ड्रोन पाकिस्तान में घुस कर हमला करते हैं और उसमे पाकिस्तान के निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं तो अमेरिका इसे " गलती से हुआ " हमला बताता है और इस बात पर जोर देता है की आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाही में इस तरह की एकाध भूल को नजरअंदाज कर दिया जाना चाहिए। और केवल पांच मिनट में रूस के विमान गिराने की तुर्की कार्यवाही को उसके वायुसीमा की रक्षा का हक करार देता है।
इन सब घटनाओं से एक बार फिर ये साबित होता है की अमेरिका केवल अपने हितों पर ध्यान देता है और उसका कोई इरादा नही है आतंकवाद के खिलाफ किसी निरपेक्ष कार्यवाही में शामिल होने का। आतंक के सवाल पर दुनिया के नजरिये में दरार बार बार सामने आती है और अमेरिका और उसके सहयोगी केवल अपने आर्थिक और सामरिक हितों के अनुसार सोचते हैं। फिर भले ही खुद उनके नागरिकों को भी इसकी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े। आतंक के सवाल पर अमेरिका की भारत और पाकिस्तान नीति में दशकों से ये बात सामने आ चुकी है।
गप्पी -- रूस ने विमान गिराने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में इसे आतंकवादियों के सहयोगियों द्वारा पीठ में छुरा घोंपने की घटना बताया था। रूस और दुनिया के बहुत से लोग ये मानते हैं की ISIS की स्थापना और उसका सहयोग अमेरिका और उसके समर्थक कर रहे हैं। कई चीजों और घटनाओं के द्वारा ये बात साफ हुई है। लेकिन ये देश खुद अपने देश की जनता और शेष विश्व के सामने इससे इंकार करती रही हैं। अभी दो दिन पहले सयुंक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पारित करके ISIS के खिलाफ साझी कारवाही का आग्रह किया है। उसके बावजूद ये घटना कुछ दूसरे ही संकेत देती है।
अगर हम इस घटना पर सरसरी नजर भी डालें तो इसके दूसरे उद्देश्य साफ हो जाते हैं। रूस का विमान जब हमले का शिकार हुआ तब वो सीरिया की सीमा में था। उसका मलबा और उसके दोनों पायलट सीरिया के इलाके में गिरे। जिनमे एक पायलट के मृत शरीर पर सीरिया के विद्रोहियों को नाचते हुए दिखाया गया है। खुद तुर्की ने इस पर जो बयान जारी किया है उसमे उसने पांच मिनट में दस बार चेतावनी देने की बात कही है। इसका मतलब ये है की तुर्की ने चेतावनी देने के पांच मिनट के अंदर ही विमान को मार गिराया। रूस सीरिया में ISIS के खिलाफ कार्यवाही कर रहा है और अगर किसी कारणवश ये मान भी लिया जाये की उसके विमान द्वारा तुर्की की सीमा का उल्ल्ंघन हो गया तो इसमें ऐसी कौनसी आफत आ गयी थी की विमान गिराने जैसी कार्यवाही की जरूरत पड़ी। असल कारण ये है की रूस द्वारा सीरिया में असद सरकार को समर्थन इनको हजम नही हो रहा है और इन्हे लगता है की रूस की कार्यवाही के जारी रहते सीरिया के असद विरोधी दलों को कामयाब नही किया जा सकता। अपने बयान में अमेरिका ने कहा है की तुर्की को अपनी वायुसीमा की रक्षा का हक है और रूस अगर केवल ISIS के खिलाफ की कार्यवाही पर ध्यान दे तो टकराव की संभावना कम होगी। ये बयान अपने आप में अमेरिकी और उसके साथी देशो की नीति को स्पष्ट करते हैं।
इसमें एक बड़ा सवाल ये खड़ा होता है की आतंकवाद पर अमेरिका हमेशा दोहरे मापदंड क्यों अपनाता है। उसके तर्क हर बार बदल जाते हैं। जैसे -
१. अमेरिका जब अफगानिस्तान में कार्यवाही करते हुए पाकिस्तान में घुस कर हमला करता है या इस्राइल जब लेबनान और सीरिया में हमला करते हैं तो अमेरिका कहता है की उसे आतंकवादियों का पीछा करने और मार गिराने का हक है।
२. अमेरिका जब असद सरकार के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को समर्थन देता है तो कहता है की वो सीरिया में लोकतंत्र की स्थापना में मदद कर रहा है। और जब वो यमन के भगोड़े राष्ट्रपति को समर्थन देकर यमन के विरोधी दलों पर हमला करता है तो कहता है की एक legitimate सरकार को समर्थन दे रहा है।
३. जब अमेरिका के ड्रोन पाकिस्तान में घुस कर हमला करते हैं और उसमे पाकिस्तान के निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं तो अमेरिका इसे " गलती से हुआ " हमला बताता है और इस बात पर जोर देता है की आतंकवादियों के खिलाफ कार्यवाही में इस तरह की एकाध भूल को नजरअंदाज कर दिया जाना चाहिए। और केवल पांच मिनट में रूस के विमान गिराने की तुर्की कार्यवाही को उसके वायुसीमा की रक्षा का हक करार देता है।
इन सब घटनाओं से एक बार फिर ये साबित होता है की अमेरिका केवल अपने हितों पर ध्यान देता है और उसका कोई इरादा नही है आतंकवाद के खिलाफ किसी निरपेक्ष कार्यवाही में शामिल होने का। आतंक के सवाल पर दुनिया के नजरिये में दरार बार बार सामने आती है और अमेरिका और उसके सहयोगी केवल अपने आर्थिक और सामरिक हितों के अनुसार सोचते हैं। फिर भले ही खुद उनके नागरिकों को भी इसकी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े। आतंक के सवाल पर अमेरिका की भारत और पाकिस्तान नीति में दशकों से ये बात सामने आ चुकी है।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.