खबरी -- प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है की एक परिवार सरकार को काम नही करने दे रहा है।
गप्पी -- इससे एक बात तो साफ हो गयी की काम नही हो रहा है। अब तक विपक्ष ये आरोप लगाता था की कुछ काम नही हो रहा है। तब सरकार कहती थी की नही, बहुत काम हो रहा है। उसके बाद धीरे धीरे ऐसा कहने वाले लोगों की तादाद बढ़ती गयी जो कहते हैं की काम नही हो रहा है। आखिर में सरकार ने मान ही लिया की हाँ, काम नही हो रहा है। लेकिन उसने तुरंत ये भी जोड़ दिया की काम इसलिए नही हो रहा है की एक परिवार है जो सरकार को काम नही करने दे रहा है। सरकार तो बहुत काम करना चाहती है लेकिन क्या करे, मजबूर है। नरेंद्र मोदी और बीजेपी अब तक मनमोहन सिंह पर ये आरोप लगाते रहे थे की वो एक परिवार की मर्जी के खिलाफ कुछ भी नही कर सकते। उन्हें रबर स्टाम्प तक कह दिया जाता था। अब देश को ये मालूम पड़ा की केवल मनमोहन सिंह नही, नरेंद्र मोदी भी उस परिवार की मर्जी के खिलाफ कुछ नही कर सकते, ऐसा खुद मोदी कह रहे हैं। इस परिवार की महिमा तो अपरम्पार है।
ऐसा नही है की मोदी जी ने ये बात ऐसे ही कह दी हो। उन्होंने इस बात के सबूत भी दिए हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया की जिस GST बिल को खुद उन्होंने 8 साल तक पास नही होने दिया, उसी बिल को अब ये परिवार पास नही होने दे रहा है। उन्हें इस पर गहरी नाराजगी है की संसद को रोकने का विशेषाधिकार तो केवल उनके पास है, कोई दूसरी पार्टी ऐसा कैसे कर सकती है। मुझे लगता है की अगर इसी तरह चलता रहा तो ऐसा ना हो की जनता उन्हें वापिस उसी भूमिका में ला दे। तब वो खम ठोककर कह सकते हैं की हाँ, अब हम रोकेंगे संसद और बिलों को।
क्यों रोकोगे भाई ?
क्योंकि संसद और बिलों को रोकना लोकतंत्र का हिस्सा है, ये विपक्ष का अधिकार है।
तो अब जो विपक्ष कर रहा है वो क्या है ?
वो देश विरोधी और विकास विरोधी काम है।
खैर, एक दूसरा तबका भी है जो एक दूसरे परिवार पर काम ना करने देने का आरोप लगा रहा है। ये परिवार है संघ परिवार। सारे देश के लेखक और कलाकार कह रहे हैं की उनके काम करने का माहौल खत्म हो रहा है। दलितों से लेकर छात्रों तक और महिलाओं से लेकर किसानो तक सभी इस पर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन बीजेपी और प्रधानमंत्री इसे मानने को तैयार नही हैं। अल्पसंख्यकों की तो ये हालत है की उन्होंने तो शिकायत तक करना बंद कर दिया है। इस परिवार ने सरकार को कह दिया है की उसके दफ्तर में जो पुरानी, रंग उतरी हुई, खोखले सिर वाली जो मूर्तियां रखी हुई हैं उन्हें शिक्षा संस्थानों में ऊँची जगहों पर रख दिया जाये। अब स्मृति ईरानी जगह ढूंढ ढूंढ कर इन्हे विश्व विद्यालयों के शो केस में सजा रही हैं।
कुछ परिवार और भी हैं जिनके बारे में लोग जानते हैं की देश में जो भी होता है और जो भी नही होता है, वो सब इनके कारण है। ये देश के शाश्वत परिवार हैं। कौन सरकार है और कौन विपक्ष है, इन्हे कुछ फर्क नही पड़ता है। इनमे अम्बानी परिवार है, अडानी परिवार है, टाटा-बिरला परिवार हैं और भी कई नाम हैं। लेकिन इनकी एक खाशियत है। ये हमेशा देश की गिरती हुई विकास दर को लेकर रोते रहते हैं। शोर मचाते रहते हैं। इनके कारण देश के बैंक डूबने के कगार पर पहुंच गए हैं। इनकी हालत बहुत ही खराब है। नौकरी की इंतजार करता हुआ युवा अपनी चिंता छोड़कर इनके लिए कैंडल मार्च निकालता रहता है। अपने माँ-बाप को गलियां देता रहता है। मुहल्ले के छोटे दुकानदार का लड़का सोशल मीडिया पर लिखता है रिटेल में FDI का विरोध करने वाले दुकानदार गद्दार हैं। मजदूर का लड़का कहता है की अगर श्रम कानूनों को नही बदला गया तो निवेश कैसे आएगा। किसान का लड़का कहता है की अगर खाद की सब्सिडी खत्म नही की गयी राजस्व घाटा कैसे कम होगा। देश का भविष्य इन युवाओं के हाथों में सुरक्षित है। और इस सारे रुदन के बीच इन परिवारों की सम्पत्ति बढ़ती जाती है।
इनके अलावा भी कुछ परिवार हैं जो हमारे लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी हैं। जैसे मुलायम सिंह का परिवार, शिवराज सिंह चौहान का परिवार, शुष्मा स्वराज का परिवार, लालू प्रशाद यादव का परिवार, रमन सिंह का परिवार आदि आदि। इनका काम होता रहता है। इनका विकास तेज गति से चलता है भले ही उसके किये संसद ना चले। इनका नाम लेना गुनाह है। आप लेकर देखिये, गेट पर सुब्रमणियम स्वामी डण्डा ( नोटिस ) लेकर बैठे हैं।
अब कौन परिवार काम नही करने दे रहा इस पर अलग अलग राय हैं। इसलिए एक परिवार का रोना रोना गलत है।
गप्पी -- इससे एक बात तो साफ हो गयी की काम नही हो रहा है। अब तक विपक्ष ये आरोप लगाता था की कुछ काम नही हो रहा है। तब सरकार कहती थी की नही, बहुत काम हो रहा है। उसके बाद धीरे धीरे ऐसा कहने वाले लोगों की तादाद बढ़ती गयी जो कहते हैं की काम नही हो रहा है। आखिर में सरकार ने मान ही लिया की हाँ, काम नही हो रहा है। लेकिन उसने तुरंत ये भी जोड़ दिया की काम इसलिए नही हो रहा है की एक परिवार है जो सरकार को काम नही करने दे रहा है। सरकार तो बहुत काम करना चाहती है लेकिन क्या करे, मजबूर है। नरेंद्र मोदी और बीजेपी अब तक मनमोहन सिंह पर ये आरोप लगाते रहे थे की वो एक परिवार की मर्जी के खिलाफ कुछ भी नही कर सकते। उन्हें रबर स्टाम्प तक कह दिया जाता था। अब देश को ये मालूम पड़ा की केवल मनमोहन सिंह नही, नरेंद्र मोदी भी उस परिवार की मर्जी के खिलाफ कुछ नही कर सकते, ऐसा खुद मोदी कह रहे हैं। इस परिवार की महिमा तो अपरम्पार है।
ऐसा नही है की मोदी जी ने ये बात ऐसे ही कह दी हो। उन्होंने इस बात के सबूत भी दिए हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया की जिस GST बिल को खुद उन्होंने 8 साल तक पास नही होने दिया, उसी बिल को अब ये परिवार पास नही होने दे रहा है। उन्हें इस पर गहरी नाराजगी है की संसद को रोकने का विशेषाधिकार तो केवल उनके पास है, कोई दूसरी पार्टी ऐसा कैसे कर सकती है। मुझे लगता है की अगर इसी तरह चलता रहा तो ऐसा ना हो की जनता उन्हें वापिस उसी भूमिका में ला दे। तब वो खम ठोककर कह सकते हैं की हाँ, अब हम रोकेंगे संसद और बिलों को।
क्यों रोकोगे भाई ?
क्योंकि संसद और बिलों को रोकना लोकतंत्र का हिस्सा है, ये विपक्ष का अधिकार है।
तो अब जो विपक्ष कर रहा है वो क्या है ?
वो देश विरोधी और विकास विरोधी काम है।
खैर, एक दूसरा तबका भी है जो एक दूसरे परिवार पर काम ना करने देने का आरोप लगा रहा है। ये परिवार है संघ परिवार। सारे देश के लेखक और कलाकार कह रहे हैं की उनके काम करने का माहौल खत्म हो रहा है। दलितों से लेकर छात्रों तक और महिलाओं से लेकर किसानो तक सभी इस पर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन बीजेपी और प्रधानमंत्री इसे मानने को तैयार नही हैं। अल्पसंख्यकों की तो ये हालत है की उन्होंने तो शिकायत तक करना बंद कर दिया है। इस परिवार ने सरकार को कह दिया है की उसके दफ्तर में जो पुरानी, रंग उतरी हुई, खोखले सिर वाली जो मूर्तियां रखी हुई हैं उन्हें शिक्षा संस्थानों में ऊँची जगहों पर रख दिया जाये। अब स्मृति ईरानी जगह ढूंढ ढूंढ कर इन्हे विश्व विद्यालयों के शो केस में सजा रही हैं।
कुछ परिवार और भी हैं जिनके बारे में लोग जानते हैं की देश में जो भी होता है और जो भी नही होता है, वो सब इनके कारण है। ये देश के शाश्वत परिवार हैं। कौन सरकार है और कौन विपक्ष है, इन्हे कुछ फर्क नही पड़ता है। इनमे अम्बानी परिवार है, अडानी परिवार है, टाटा-बिरला परिवार हैं और भी कई नाम हैं। लेकिन इनकी एक खाशियत है। ये हमेशा देश की गिरती हुई विकास दर को लेकर रोते रहते हैं। शोर मचाते रहते हैं। इनके कारण देश के बैंक डूबने के कगार पर पहुंच गए हैं। इनकी हालत बहुत ही खराब है। नौकरी की इंतजार करता हुआ युवा अपनी चिंता छोड़कर इनके लिए कैंडल मार्च निकालता रहता है। अपने माँ-बाप को गलियां देता रहता है। मुहल्ले के छोटे दुकानदार का लड़का सोशल मीडिया पर लिखता है रिटेल में FDI का विरोध करने वाले दुकानदार गद्दार हैं। मजदूर का लड़का कहता है की अगर श्रम कानूनों को नही बदला गया तो निवेश कैसे आएगा। किसान का लड़का कहता है की अगर खाद की सब्सिडी खत्म नही की गयी राजस्व घाटा कैसे कम होगा। देश का भविष्य इन युवाओं के हाथों में सुरक्षित है। और इस सारे रुदन के बीच इन परिवारों की सम्पत्ति बढ़ती जाती है।
इनके अलावा भी कुछ परिवार हैं जो हमारे लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी हैं। जैसे मुलायम सिंह का परिवार, शिवराज सिंह चौहान का परिवार, शुष्मा स्वराज का परिवार, लालू प्रशाद यादव का परिवार, रमन सिंह का परिवार आदि आदि। इनका काम होता रहता है। इनका विकास तेज गति से चलता है भले ही उसके किये संसद ना चले। इनका नाम लेना गुनाह है। आप लेकर देखिये, गेट पर सुब्रमणियम स्वामी डण्डा ( नोटिस ) लेकर बैठे हैं।
अब कौन परिवार काम नही करने दे रहा इस पर अलग अलग राय हैं। इसलिए एक परिवार का रोना रोना गलत है।
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