नई खबर आई है की आरएसएस और बीजेपी देश भक्त हो गए हैं। वरना अब तक तो लोगों को ये पता है की इन्होने आजादी की लड़ाई का विरोध किया था। लेकिन कुछ और भी तथ्य हैं जिनको जानना जरूरी है। इन तथ्यों से ये साफ हो जायेगा की बीजेपी और आरएसएस की देशभक्ति केवल सत्ता प्राप्त करने का हथियार है। जैसे --
१. आजादी से पहले तरफ संघ के संचालक गोलवरकर हिन्दुओं को आजादी की लड़ाई से दूर रहने का आह्वान कर रहे थे और अंग्रेजों के साथ सहयोग कर रहे थे तब इनका राजनितिक दल था हिन्दू महासभा। इसके अध्यक्ष थे वीर सावरकर ( वीर शब्द वीरता के लिए बल्कि उनका नाम वीर था ) और इसके दूसरे प्रमुख नेता थे श्यामा प्रशाद मुखर्जी। जब मोहम्मद अली जिन्ना अलग पाकिस्तान के लिए सीधी कार्यवाही का नारा दे रहे थे और जो भारत के विभाजन और 20 लाख लोगों की मौत का कारण बना, उस समय ये जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर कांग्रेस के विरोध में तीन प्रांतों, सिंध, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त और बंगाल में साझा सरकार चला रहे थे।
2. जब पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद अपने चरम पर था और उसके बाद अकाली दल ने संसद के मुख्य द्वार पर भारत के संविधान की प्रति जलाई थी तब से ही अकाली इनके सहयोगी हैं। उसके बाद अब तक पंजाब में उग्रवाद और नेताओं की हत्या में सजा प्राप्त उग्रवादियों की अकाली दल तरफदारी करता रहा है और उसे बीजेपी का समर्थन प्राप्त है। बीजेपी ने इन मौत की सजा प्राप्त आतंकवादियों को कभी देश द्रोही नही कहा।
3. तमिलनाडु में लिट्टे का खुलेआम समर्थन करने वाले, प्रभाकरन को हीरो बताने वाले MDMK के साथ इन्होने पिछला लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था और वो NDA का हिस्सा थी जो बाद में श्रीलंका के मामले पर खुद अलग हो गयी। बीजेपी ने राजीव गांधी की हत्या करने वाले और फांसी की सजा प्राप्त लोगों को कभी देश द्रोही नही कहा।
4. कश्मीर के मामले पर पीडीपी का रुख और अफजल गुरु को शहीद मानने का उसका एलान सबको मालूम है। लेकिन जब बीजेपी को ऐसा लगा की वहां सत्ता की मलाई में हिस्सा हो सकता है तो उसने एक मिनट नही लगाई उसके साथ समझौता करने में। उसके बाद कश्मीर में अफजल गुरु को शहीद बताने वाले बीजेपी की तरह ही देहभक्त हो गए और बाकि देश में देश द्रोही रह गए।
5. याकूब मेनन की फांसी को 15 दिन रोकने के लिए जिन 100 बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रपति को अपील करते हुए पत्र लिखा था उन सब को बीजेपी ने देशद्रोही करार दे दिया। अब 26 /11 के हमले के आरोपी डेविड हेडली को बीजेपी सरकार ने पूरी माफ़ी देने का समझौता कर लिया उसके बाद भी वो देशभक्त हैं। डेविड हेडली भी सालस्कर जैसे सैनिकों की मौत का जिम्मेदार है और तब बीजेपी को सेना के शहीदों की याद नही आई।
6. बार बार अपने पक्ष में लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए बीजेपी हमेशा सेना और शहीदों का नाम लेती रही है। लेकिन OROP के सवाल पर यही सेना के वेटरन 6 महीने धरना देकर बैठे रहे, मैंने रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल सतबीर सिंह की आँखों में आंसू देखे हैं , इन्होने अपने मेडल वापिस कर दिए , लेकिन बीजेपी ने उनकी मांग नही मानी जिसपर सालाना 8000 करोड़ खर्च का अनुमान था। दूसरी तरफ उसने केवल 30 उद्योगपतियों का एक लाख चौदह हजार करोड़ एक झटके में माफ़ कर दिया। इतनी रकम के केवल ब्याज से ही OROP को दो बार लागु किया जा सकता है।
इसके साथ ही ये भी एक सवाल है की बीजेपी ने कभी भी असम के उग्रवादियों, बोडो उग्रवादियों, तमिल उग्रवादियों, खालिस्तानी उग्रवादियों और प्रज्ञा ठाकुर जैसे हिन्दू उग्रवादियों के लिए कभी भी देश द्रोही शब्द का इस्तेमाल करना तो दूर उल्टा उनकी मदद ही की है। बीजेपी केवल मुस्लिम और नक्सली उग्रवादियों के लिए ही देशद्रोही शब्द का प्रयोग करती है। इसलिए कम से कम बीजेपी और आरएसएस की देशभक्ति हमेशा सवालों के घेरे में रहेगी।
१. आजादी से पहले तरफ संघ के संचालक गोलवरकर हिन्दुओं को आजादी की लड़ाई से दूर रहने का आह्वान कर रहे थे और अंग्रेजों के साथ सहयोग कर रहे थे तब इनका राजनितिक दल था हिन्दू महासभा। इसके अध्यक्ष थे वीर सावरकर ( वीर शब्द वीरता के लिए बल्कि उनका नाम वीर था ) और इसके दूसरे प्रमुख नेता थे श्यामा प्रशाद मुखर्जी। जब मोहम्मद अली जिन्ना अलग पाकिस्तान के लिए सीधी कार्यवाही का नारा दे रहे थे और जो भारत के विभाजन और 20 लाख लोगों की मौत का कारण बना, उस समय ये जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर कांग्रेस के विरोध में तीन प्रांतों, सिंध, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त और बंगाल में साझा सरकार चला रहे थे।
2. जब पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद अपने चरम पर था और उसके बाद अकाली दल ने संसद के मुख्य द्वार पर भारत के संविधान की प्रति जलाई थी तब से ही अकाली इनके सहयोगी हैं। उसके बाद अब तक पंजाब में उग्रवाद और नेताओं की हत्या में सजा प्राप्त उग्रवादियों की अकाली दल तरफदारी करता रहा है और उसे बीजेपी का समर्थन प्राप्त है। बीजेपी ने इन मौत की सजा प्राप्त आतंकवादियों को कभी देश द्रोही नही कहा।
3. तमिलनाडु में लिट्टे का खुलेआम समर्थन करने वाले, प्रभाकरन को हीरो बताने वाले MDMK के साथ इन्होने पिछला लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था और वो NDA का हिस्सा थी जो बाद में श्रीलंका के मामले पर खुद अलग हो गयी। बीजेपी ने राजीव गांधी की हत्या करने वाले और फांसी की सजा प्राप्त लोगों को कभी देश द्रोही नही कहा।
4. कश्मीर के मामले पर पीडीपी का रुख और अफजल गुरु को शहीद मानने का उसका एलान सबको मालूम है। लेकिन जब बीजेपी को ऐसा लगा की वहां सत्ता की मलाई में हिस्सा हो सकता है तो उसने एक मिनट नही लगाई उसके साथ समझौता करने में। उसके बाद कश्मीर में अफजल गुरु को शहीद बताने वाले बीजेपी की तरह ही देहभक्त हो गए और बाकि देश में देश द्रोही रह गए।
5. याकूब मेनन की फांसी को 15 दिन रोकने के लिए जिन 100 बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रपति को अपील करते हुए पत्र लिखा था उन सब को बीजेपी ने देशद्रोही करार दे दिया। अब 26 /11 के हमले के आरोपी डेविड हेडली को बीजेपी सरकार ने पूरी माफ़ी देने का समझौता कर लिया उसके बाद भी वो देशभक्त हैं। डेविड हेडली भी सालस्कर जैसे सैनिकों की मौत का जिम्मेदार है और तब बीजेपी को सेना के शहीदों की याद नही आई।
6. बार बार अपने पक्ष में लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए बीजेपी हमेशा सेना और शहीदों का नाम लेती रही है। लेकिन OROP के सवाल पर यही सेना के वेटरन 6 महीने धरना देकर बैठे रहे, मैंने रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल सतबीर सिंह की आँखों में आंसू देखे हैं , इन्होने अपने मेडल वापिस कर दिए , लेकिन बीजेपी ने उनकी मांग नही मानी जिसपर सालाना 8000 करोड़ खर्च का अनुमान था। दूसरी तरफ उसने केवल 30 उद्योगपतियों का एक लाख चौदह हजार करोड़ एक झटके में माफ़ कर दिया। इतनी रकम के केवल ब्याज से ही OROP को दो बार लागु किया जा सकता है।
इसके साथ ही ये भी एक सवाल है की बीजेपी ने कभी भी असम के उग्रवादियों, बोडो उग्रवादियों, तमिल उग्रवादियों, खालिस्तानी उग्रवादियों और प्रज्ञा ठाकुर जैसे हिन्दू उग्रवादियों के लिए कभी भी देश द्रोही शब्द का इस्तेमाल करना तो दूर उल्टा उनकी मदद ही की है। बीजेपी केवल मुस्लिम और नक्सली उग्रवादियों के लिए ही देशद्रोही शब्द का प्रयोग करती है। इसलिए कम से कम बीजेपी और आरएसएस की देशभक्ति हमेशा सवालों के घेरे में रहेगी।
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