Wednesday, February 10, 2016

Vyang -- जरासन्ध का पुनरागमन

खबरी -- बीजेपी ने कहा है की उत्तर प्रदेश में मुगलों का राज है।

गप्पी -- किसी भी चीज की तुलना इतिहास की किसी दूसरी चीज से करना पुरानी परम्परा है। लेकिन उसके लिए कुछ निश्चित मापदण्डों का इस्तेमाल किया जाता है वरना लोग उसे मजाक समझते हैं। इसी आधार पर मैंने सोचा की क्यों ना जम्बु द्वीप के आर्यावर्त के भारत खंड के महान शासक श्री नरेंद्र मोदीजी का कोई उदाहरण इतिहास में ढूंढा जाये। मैंने अपने इतिहास के अल्पज्ञान के बावजूद कई पुरानी पुस्तकों और पुराणो को खोज मारा लेकिन उनके जैसा प्रतापी राजा मुझे इतिहास में नही मिला। आखिर लम्बी शोध के बाद एक राजा मुझे उनके आसपास दिखाई दिया, वो था महाभारत काल का राजा जरासन्ध।
         मैंने दोनों का मिलान करना शुरू किया तो पता चला की पुराने समय में इस जरासन्ध से बचने के लिए यादव शिरोमणि श्री कृष्ण मथुरा छोड़ कर द्वारका भाग गए थे। और इस युग के जरासन्ध तो आये ही द्वारका से हैं। पुराने जरासन्ध मगध के राजा थे और महाबलशाली थे। बलशाली तो ये भी खूब हैं। उन्होंने अपने दामाद कंस की हत्या का बदला लेने के लिए मथुरा पर लगातार हमले किये, और तब तक करते रहे जब तक कृष्ण मथुरा छोड़ कर भाग नही गए। लेकिन इनका दुर्भाग्य देखिये, इन्हे एक यादव ने ( लालू प्रशाद यादव ) ने मगध में ही धूल चटा दी। ऐसा नही है की ये अपने अपमान को भूल जाते हों, नही ये भी उस जरासंध की तरह ही अपमान का सख्त बदला लेने के हिमायती हैं। इसका उदाहरण केजरीवाल हैं। इन्होने अपनी हार का बदला लेने के लिए दिल्ली पर इतने हमले किये हैं, इतने तो जरासंध ने मथुरा पर भी नही किये थे।
          जमाना बदल गया है। वैसे तो मथुरा में अब भी एक यादव ही बैठा है और दोनों एक दूसरे का दुश्मन होने का दावा भी करते हैं, लेकिन लोग हैं की मानने को तैयार ही नही हैं। जब भी ये एक दूसरे के खिलाफ युद्ध की मुद्रा में आते हैं लोग जोर जोर से हंसना शुरू कर देते हैं। इस युग में इन दोनों की सुलह हो गयी है और पुराने जरासंध इनकी सुलह करवाले वाले किसी सीबीआई नाम के कूटनीतिज्ञ को ढूंढ रहे हैं।
          महाभारत काल में जब दुर्योधन ने काशीराज की पुत्री भानुमति से विवाह किया था तो जरासन्ध ने उस पर हमला किया था। तब उसके बचाव में महारथी कर्ण आये थे। तब कर्ण ने जरासंध को हरा दिया था। इस बार ये भूमिका नितीश निभा रहे थे।
            पुराने जरासंध की दो बातें और नए जरासंध से मेल खाती हैं। पहले जरासंध के साथ नरकासुर से लेकर चेदिराज शिशुपाल तक सहयोगियों की एक लम्बी कतार थी। लेकिन कृष्ण ने अपनी कूटनीति के द्वारा उसके सारे सहयोगियों को एक एक कर समाप्त कर दिया। पुराने जरासंध ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए 95 छोटे छोटे राजाओं को कैद किया हुआ था और उनकी संख्या सौ हो जाने पर वो उनकी बलि देना चाहता था। लेकिन इस जरासंध ने ये बेवकूफी नही की। उसने 95 राजाओं को कैद करके नही रखा। उसने समय मिलते ही किसी ना किसी राजा की बलि दे दी। इसमें उसने अपने सहयोगियों का भी ख्याल नही किया। उसने रामबिलास पासवान, जीतनराम मांझी, कुलदीप बिश्नोई आदि जो भी मिला उसकी बलि दे दी। वो तो शुक्र करो की मराठा छत्रपति बाल-बाल बच गए वरना उनका सर भी बलि की वेदी पर तो रख ही दिया था।
            इस तरह की कई समानताएं मुझे दोनों में दिखाई दी। दोनों महान दानवीर हैं। मोदीजी अपनी विदेश यात्राओं में जिस तरह विदेशों में दानराशि बांटते हैं उससे ये समानता साफ झलकती है। दोनों किसी की सुनते नही हैं केवल अपनी कहते हैं। फिर भी कुछ भूल-चूक हो गयी हो तो माफ़ करना।

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तुष्टिकरण के लिए देश-हित से खिलवाड़ उचित नहीं - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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