खबरी -- सयुंक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार पैनल ने अपनी जाँच के बाद कहा है की विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे की " मनमानी कैद " को न केवल खत्म किया जाना चाहिए बल्कि अब तक इसे बनाये रखने के लिए उसे मुआवजा भी दिया जाना चाहिए।
गप्पी -- मुझे लगता है की सयुंक्त राष्ट्र ने एक बार फिर अपने अधिकार क्षेत्र का उलंघ्घन किया है। सयुंक्त राष्ट्र को इसलिए नही बनाया गया था की वो पश्चिमी देशों के खिलाफ प्रस्ताव पास करे। उसकी स्थापना इसलिए की गयी थी की जब भी जरूरत पड़े, वो पश्चिम की दादागिरी को विश्व शांति के लिए अनिवार्य घोषित करे। उसके हमलों को पूरी दुनिया द्वारा किया गया हमला करार दे। अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के खिलाफ बोलने वाले देशों को मानवाधिकारों के दुश्मन घोषित करे। लेकिन उसने फिर एकबार बिना सोचे समझे काम किया है।
जहां तक मानवाधिकारों का सवाल है, अमेरिका और पश्चिमी देशों के रिकार्ड पर कभी सवाल नही उठाया जा सकता। अगर ब्रिटेन जलियांवाला बाग़ करे तब भी वो सभ्य राष्ट्र रहेगा और इराक अपनी सम्प्रभुता की बात करे तब भी दुनिया के लिए खतरा रहेगा। अब सीरिया या यमन में किसकी सरकार हो ये तय करने का अधिकार अगर सयुंक्त राष्ट्र वहां की जनता का घोषित कर दे तो उसे कोई मान थोड़ा ना लेगा। कहां किसकी सरकार होगी ये तय करने का अधिकार तो केवल अमेरिका और पश्चिम को ही है। पिछले सालों में अमेरिका, पश्चिम और सयुंक्त राष्ट्र ने इसे बार बार साबित किया है। इसलिए पश्चिमी देशों के मानवाधिकारों पर सवाल उठाना तो सूरज को दिया दिखाने के बराबर हुआ। अमेरिका भले ही ग्वांटेमाओ जैसी जेल रखे इससे उसके मानवाधिकारों के रिकार्ड पर क्या फर्क पड़ता है। जब अमेरिका ने अपने मूल निवासियों यानि रेड इंडियन्स का सफाया किया तब भी किसी ने उसके मानवाधिकारों पर सवाल उठाने की बजाए उससे प्रेरणा ही ली। आज पूरी दुनिया की पूंजीवादी सरकारें अपने अपने देश के आदिवासियों का उसी तरह सफाया कर रही हैं और मजाल है उसकी कोई चर्चा कर दे। हमारे यहां तो यहां तक सुविधा है की आदिवासियों का सवाल उठाने वालों को आराम से नक्सली घोषित कर दो और उसके साथ फिर जैसा चाहो वैसा सलूक करो, मानवाधिकार गया भाड़ में। और अगर कोई भूल से इस पर सवाल उठा भी दे तो उस पर ये कहकर टूट पड़ो की उस समय आप कहां थे जब --------
इस रिपोर्ट में जो नाम पहले आता है वो है स्वीडन। आप दुनिया की किसी भी संस्था की रिपोर्ट उठा कर देख लीजिये, मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों के मामले में उसका नंबर ऊपर से पहला या दूसरा होता है। अब अगर वो अमेरिका के किसी दुश्मन को घेरने के लिए प्रयास करता है तो केवल इस बात से उसका रिकार्ड खराब थोड़ा ना हो जायेगा। ये तो सनातन परम्परा है। भगवान राम अगर सीता का त्याग कर दें तो क्या तुम उन्हें महिला विरोधी थोड़ा ना साबित कर दोगे। इस दुनिया को चलाने के लिए ये अति आवश्यक है की एकलव्य बिना कोई सवाल उठाये अपना अँगूठा द्रोणाचार्य को भेंट करता रहे। इसके लिए उसे महान गुरु भक्त और दूसरे अलंकारों से नवाजा जायेगा। लेकिन अगर वो इस पर सवाल उठाता है तो उसे रोहित वेमुला बना दिया जायेगा।
इसलिए मेरा मानना है की सयुंक्त राष्ट्र को अपनी ये रिपोर्ट वापिस ले लेनी चाहिए और जूलियन असांजे को दुनिया और सभ्यता का दुश्मन कर देना चाहिए। आखिर उसके कामों ने महान अमेरिकी शासन पर ऐसा कलंक लगाया है जिसे उसका पूरा प्रचार तंत्र, सारी सैन्य शक्ति और विश्व संस्थाएं मिल कर भी साफ नही कर पा रही हैं।
गप्पी -- मुझे लगता है की सयुंक्त राष्ट्र ने एक बार फिर अपने अधिकार क्षेत्र का उलंघ्घन किया है। सयुंक्त राष्ट्र को इसलिए नही बनाया गया था की वो पश्चिमी देशों के खिलाफ प्रस्ताव पास करे। उसकी स्थापना इसलिए की गयी थी की जब भी जरूरत पड़े, वो पश्चिम की दादागिरी को विश्व शांति के लिए अनिवार्य घोषित करे। उसके हमलों को पूरी दुनिया द्वारा किया गया हमला करार दे। अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के खिलाफ बोलने वाले देशों को मानवाधिकारों के दुश्मन घोषित करे। लेकिन उसने फिर एकबार बिना सोचे समझे काम किया है।
जहां तक मानवाधिकारों का सवाल है, अमेरिका और पश्चिमी देशों के रिकार्ड पर कभी सवाल नही उठाया जा सकता। अगर ब्रिटेन जलियांवाला बाग़ करे तब भी वो सभ्य राष्ट्र रहेगा और इराक अपनी सम्प्रभुता की बात करे तब भी दुनिया के लिए खतरा रहेगा। अब सीरिया या यमन में किसकी सरकार हो ये तय करने का अधिकार अगर सयुंक्त राष्ट्र वहां की जनता का घोषित कर दे तो उसे कोई मान थोड़ा ना लेगा। कहां किसकी सरकार होगी ये तय करने का अधिकार तो केवल अमेरिका और पश्चिम को ही है। पिछले सालों में अमेरिका, पश्चिम और सयुंक्त राष्ट्र ने इसे बार बार साबित किया है। इसलिए पश्चिमी देशों के मानवाधिकारों पर सवाल उठाना तो सूरज को दिया दिखाने के बराबर हुआ। अमेरिका भले ही ग्वांटेमाओ जैसी जेल रखे इससे उसके मानवाधिकारों के रिकार्ड पर क्या फर्क पड़ता है। जब अमेरिका ने अपने मूल निवासियों यानि रेड इंडियन्स का सफाया किया तब भी किसी ने उसके मानवाधिकारों पर सवाल उठाने की बजाए उससे प्रेरणा ही ली। आज पूरी दुनिया की पूंजीवादी सरकारें अपने अपने देश के आदिवासियों का उसी तरह सफाया कर रही हैं और मजाल है उसकी कोई चर्चा कर दे। हमारे यहां तो यहां तक सुविधा है की आदिवासियों का सवाल उठाने वालों को आराम से नक्सली घोषित कर दो और उसके साथ फिर जैसा चाहो वैसा सलूक करो, मानवाधिकार गया भाड़ में। और अगर कोई भूल से इस पर सवाल उठा भी दे तो उस पर ये कहकर टूट पड़ो की उस समय आप कहां थे जब --------
इस रिपोर्ट में जो नाम पहले आता है वो है स्वीडन। आप दुनिया की किसी भी संस्था की रिपोर्ट उठा कर देख लीजिये, मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों के मामले में उसका नंबर ऊपर से पहला या दूसरा होता है। अब अगर वो अमेरिका के किसी दुश्मन को घेरने के लिए प्रयास करता है तो केवल इस बात से उसका रिकार्ड खराब थोड़ा ना हो जायेगा। ये तो सनातन परम्परा है। भगवान राम अगर सीता का त्याग कर दें तो क्या तुम उन्हें महिला विरोधी थोड़ा ना साबित कर दोगे। इस दुनिया को चलाने के लिए ये अति आवश्यक है की एकलव्य बिना कोई सवाल उठाये अपना अँगूठा द्रोणाचार्य को भेंट करता रहे। इसके लिए उसे महान गुरु भक्त और दूसरे अलंकारों से नवाजा जायेगा। लेकिन अगर वो इस पर सवाल उठाता है तो उसे रोहित वेमुला बना दिया जायेगा।
इसलिए मेरा मानना है की सयुंक्त राष्ट्र को अपनी ये रिपोर्ट वापिस ले लेनी चाहिए और जूलियन असांजे को दुनिया और सभ्यता का दुश्मन कर देना चाहिए। आखिर उसके कामों ने महान अमेरिकी शासन पर ऐसा कलंक लगाया है जिसे उसका पूरा प्रचार तंत्र, सारी सैन्य शक्ति और विश्व संस्थाएं मिल कर भी साफ नही कर पा रही हैं।
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