JNU की घटना और उसके बाद संघ और बीजेपी सहित सरकार समेत उसके सभी अंग वामपंथ पर टूट पड़े हैं। इनमे वामपंथ को देशद्रोही साबित करने की होड़ लग गयी है। JNU की घटना में वामपंथी छात्र संगठनो की भूमिका को एकतरफा तरीके से दिखाने की कोशिशों के बावजूद, इस बात को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है की ये सारी कवायद बीजेपी सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में आरएसएस के एजेंडे के अनुसार भगवाकरण करने के प्रयास और पुरे देश में वामपंथी छात्र संगठनो के नेतृत्त्व में उसके बढ़ते हुए विरोध के बाद शुरू हुए हैं। शिक्षा को आम आदमी की पहुंच से बाहर करने की कोशिश में लगातार बढ़ाई जा रही फ़ीस, शोध के क्षेत्र में स्कॉलरशिप खत्म किये जाने, और तीसरे दर्जे के लोगों को, जो संघ की विचारधारा के नजदीक हैं, उन्हें शिक्षा संस्थानों में नियुक्त किये जाने का इन संगठनो ने भारी विरोध किया था। इस बार इस विरोध में उनके साथ दलित छात्रों के संगठन और अल्पसंख्यकों के छात्र संगठनो का भी समर्थन था और बीजेपी के लिए इसे आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा था।
लेकिन इस सबके बावजूद राष्ट्रवाद की ठेकेदारी करने वाले इन संघी संगठनो और वामपंथी संगठनो के पिछले रिकार्ड पर भी एक नजर डालना बेहतर होगा।
पंजाब में जब आतंकवाद अपने शिखर पर था और देश की एकता और अखण्डता को चुनौती दे रहा था तब उसके विरोध में कौन खड़ा था। वामपंथी पार्टियों के 200 से ज्यादा नेता इसमें शहीद हुए थे लेकिन उन्होंने अंत तक उसका मुकाबला किया था। बीजेपी बताये की उसके कितने और किस किस नेता ने क़ुरबानी दी थी ? उस समय अकाली दल ने संसद भवन के गेट पर भारत के संविधान की प्रति जलाई थी। उसके बाद से ही अकाली दल और बीजेपी सहयोगी दल हैं।
बीजेपी हमेशा कश्मीर के मुद्दे को उठाती रही है। लेकिन उसका योगदान वहां आतंकवाद से लड़ने में क्या है ? बीजेपी और उसके अनुपम खेर जैसे समर्थक एक नाम नही बता सकते जिसने कश्मीर में आतंकवाद से लड़ते हुए जान दी हो। हाँ, कश्मीर के नाम पर कमाई जरूर की है फिर चाहे वो सरकार में हिस्सेदारी का मामला हो या पद्म पुरस्कारों का। दूसरी तरफ कश्मीर में सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद युसूफ तारिगामी पर आतंकवादियों के दस से ज्यादा हमले हुए हैं और इन हमलों में उसके 15 से ज्यादा परिवार के सदस्य मारे गए हैं। लेकिन उसने कश्मीर नही छोड़ा और अब भी वहीं है। इस तरह के कई उदाहरण हैं।
आजादी से पहले तो संघ का रिकार्ड ही अंग्रेजों के सहयोगी का रहा है। लेकिन कुछ तथ्य हैं जिनका आम जनता को नही पता। आजादी से पहले आज की बीजेपी के आराध्य नेता श्यामा प्रशाद मुखर्जी हिन्दू महासभा के नेता होते थे। 1940 में जब जिन्नाह की मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग का प्रस्ताव पास किया, उसके बाद जिन्ना और मुस्लिम लीग का हर कदम पाकिस्तान की तरफ बढ़ रहा था। आजादी से पहले जब अंग्रेज राज के तहत स्थानीय शासन के लिए विधान सभाओं के चुनाव हुए थे उसमे इसी हिन्दू महासभा ने कांग्रेस का विरोध करते हुए मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। हैरत है की इन सारे तथ्यों के बावजूद आज राष्ट्रवाद की ठेकेदारी संघ और बीजेपी कर रही हैं।
आज भी मौजूदा समय में संघ और बीजेपी के राष्ट्रवाद और देश प्रेम का एक नमूना मैं यहां देना चाहता हूँ। भारत के लगभग 30 बड़े उद्योगपति, आम जनता के खून पसीने की कमाई का एक लाख चौदह हजार करोड़ रुपया दबा कर बैठ गए। बीजेपी सरकार ने बैंको को इस पैसे की उघराणी करने की बजाए इसे माफ़ कर देने को कहा। बैंको ने ये सारा कर्जा माफ़ कर दिया जबकि इन लोगों के पास लाखों करोड़ की सम्पत्ति है। इसके बाद इन उद्योगपतियों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने की बजाए, बीजेपी सरकार ने इस साल उनमे से दो लोगों को पदमश्री दे दिया। लोगों की मेहनत की कमाई को चर जाने का इनाम। संघ और बीजेपी के राष्ट्रवाद का यही तरीका है। ये रकम पुरे देश के आदिवासियों को पिछले पांच साल में दिए गए बजट प्रावधान से ज्यादा होती है। अब अगर कोई आदिवासी इस पर सवाल करेगा तो उसे आराम से नक्सली घोषित करके मारा जा सकता है।
सरकार के इस काम में अज्ञानी और धर्मान्ध लोगों का एक तबका सहयोग करता है। साथ में कुछ टीवी चैनल, ( जो या तो सीधे तौर पर इस फायदा प्राप्त उद्योगपतियों के होते हैं या फिर उन्हें विज्ञापन के बड़े लाभ दिए जा रहे होते हैं। राज्य सभा की सीट और पद्म पुरस्कार अलग से ) इसमें लगातार सरकारी प्रचार में लगे रहते हैं।
सवाल ये है की क्या बीजेपी और संघ, वामपंथ पर हमला करके शिक्षा के भगवाकरण और व्यापारीकरण में कामयाब हो जायेगा। या फिर लोग इसे जनतन्त्र पर हमला मान कर विफल कर देंगे।
लेकिन इस सबके बावजूद राष्ट्रवाद की ठेकेदारी करने वाले इन संघी संगठनो और वामपंथी संगठनो के पिछले रिकार्ड पर भी एक नजर डालना बेहतर होगा।
पंजाब में जब आतंकवाद अपने शिखर पर था और देश की एकता और अखण्डता को चुनौती दे रहा था तब उसके विरोध में कौन खड़ा था। वामपंथी पार्टियों के 200 से ज्यादा नेता इसमें शहीद हुए थे लेकिन उन्होंने अंत तक उसका मुकाबला किया था। बीजेपी बताये की उसके कितने और किस किस नेता ने क़ुरबानी दी थी ? उस समय अकाली दल ने संसद भवन के गेट पर भारत के संविधान की प्रति जलाई थी। उसके बाद से ही अकाली दल और बीजेपी सहयोगी दल हैं।
बीजेपी हमेशा कश्मीर के मुद्दे को उठाती रही है। लेकिन उसका योगदान वहां आतंकवाद से लड़ने में क्या है ? बीजेपी और उसके अनुपम खेर जैसे समर्थक एक नाम नही बता सकते जिसने कश्मीर में आतंकवाद से लड़ते हुए जान दी हो। हाँ, कश्मीर के नाम पर कमाई जरूर की है फिर चाहे वो सरकार में हिस्सेदारी का मामला हो या पद्म पुरस्कारों का। दूसरी तरफ कश्मीर में सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद युसूफ तारिगामी पर आतंकवादियों के दस से ज्यादा हमले हुए हैं और इन हमलों में उसके 15 से ज्यादा परिवार के सदस्य मारे गए हैं। लेकिन उसने कश्मीर नही छोड़ा और अब भी वहीं है। इस तरह के कई उदाहरण हैं।
आजादी से पहले तो संघ का रिकार्ड ही अंग्रेजों के सहयोगी का रहा है। लेकिन कुछ तथ्य हैं जिनका आम जनता को नही पता। आजादी से पहले आज की बीजेपी के आराध्य नेता श्यामा प्रशाद मुखर्जी हिन्दू महासभा के नेता होते थे। 1940 में जब जिन्नाह की मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग का प्रस्ताव पास किया, उसके बाद जिन्ना और मुस्लिम लीग का हर कदम पाकिस्तान की तरफ बढ़ रहा था। आजादी से पहले जब अंग्रेज राज के तहत स्थानीय शासन के लिए विधान सभाओं के चुनाव हुए थे उसमे इसी हिन्दू महासभा ने कांग्रेस का विरोध करते हुए मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। हैरत है की इन सारे तथ्यों के बावजूद आज राष्ट्रवाद की ठेकेदारी संघ और बीजेपी कर रही हैं।
आज भी मौजूदा समय में संघ और बीजेपी के राष्ट्रवाद और देश प्रेम का एक नमूना मैं यहां देना चाहता हूँ। भारत के लगभग 30 बड़े उद्योगपति, आम जनता के खून पसीने की कमाई का एक लाख चौदह हजार करोड़ रुपया दबा कर बैठ गए। बीजेपी सरकार ने बैंको को इस पैसे की उघराणी करने की बजाए इसे माफ़ कर देने को कहा। बैंको ने ये सारा कर्जा माफ़ कर दिया जबकि इन लोगों के पास लाखों करोड़ की सम्पत्ति है। इसके बाद इन उद्योगपतियों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने की बजाए, बीजेपी सरकार ने इस साल उनमे से दो लोगों को पदमश्री दे दिया। लोगों की मेहनत की कमाई को चर जाने का इनाम। संघ और बीजेपी के राष्ट्रवाद का यही तरीका है। ये रकम पुरे देश के आदिवासियों को पिछले पांच साल में दिए गए बजट प्रावधान से ज्यादा होती है। अब अगर कोई आदिवासी इस पर सवाल करेगा तो उसे आराम से नक्सली घोषित करके मारा जा सकता है।
सरकार के इस काम में अज्ञानी और धर्मान्ध लोगों का एक तबका सहयोग करता है। साथ में कुछ टीवी चैनल, ( जो या तो सीधे तौर पर इस फायदा प्राप्त उद्योगपतियों के होते हैं या फिर उन्हें विज्ञापन के बड़े लाभ दिए जा रहे होते हैं। राज्य सभा की सीट और पद्म पुरस्कार अलग से ) इसमें लगातार सरकारी प्रचार में लगे रहते हैं।
सवाल ये है की क्या बीजेपी और संघ, वामपंथ पर हमला करके शिक्षा के भगवाकरण और व्यापारीकरण में कामयाब हो जायेगा। या फिर लोग इसे जनतन्त्र पर हमला मान कर विफल कर देंगे।
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