JNU अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद पटियाला हॉउस कोर्ट में हुई हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस को उच्चत्तम न्यायालय ने पूरी सुरक्षा के आदेश दिए। उसके बाद कन्हैया कुमार को कोर्ट में पेश करते वक्त जिस तरह तथाकथित राष्ट्रवादी वकीलों के एक गिरोह ने कन्हैया और प्रैस के लोगों पर हमला किया और उनकी पिटाई की उस पर पुलिस कमिशनर के उस वक्त के लंगड़े बचाव के बाद ये बात भी सामने आ गयी की ये हमला बाकायदा पुलिस के सहयोग से किया गया था। उसके बाद कई सवाल उठे। लेकिन सरकार और पुलिस के प्रवक्ताओं ने इसे बहुत ही मामूली सी घटना बताया। उसके बाद कई दिनों तक उन वकीलों की गिरफ्तारी ना होना और बाद में गिरफ्तारी के तुरंत बाद पुलिस द्वारा ठाणे में ही उनको जमानत दे दिया जाना दिखाता है की पुलिस और सरकार की मिलीभगत अब भी जारी है।
इससे पहले गुजरात दंगो के बाद भी ये बात सामने आई थी की गुजरात में इन दंगों के मामले पर निष्पक्ष सुनवाई सम्भव नही है। तब उच्चत्तम न्यायालय ने उन केसों की सुनवाई गुजरात से बाहर करवाने का फैसला किया। जिन केसों को पुलिस ने बंद कर दिया था उन्हें SIT और सीबीआई ने दुबारा खोला और उनमे सजा हुई। ये बात सामने आ गयी की सारी पुलिस कार्यवाही और सरकार के बयान फर्जी थे। लेकिन उसके लिए ना तो सरकार और ना ही पुलिस के किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई। न्याय व्यवस्था को विफल करने के दोषी मजे से अपना काम करते रहे।
उसी तरह का माहौल अब पटियाला हाउस कोर्ट के मामले में है। ऐसा कहा जा रहा है की उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के मामले में जज अदालत की बजाय पुलिस स्टेशन में आकर सुनवाई कर सकता है। यानि ये मान लिया गया है की पटियाला हाउस कोर्ट में अदालती कार्यवाही की सुरक्षा की कोई गारंटी नही है। और ये हालात किसने पैदा किये है ? उन्ही लोगों ने जिनको गिरफ्तार करने की पुलिस को कोई जरूरत महसूस नही हुई और सरकार जिसे मामूली घटना बता रही है। अदालत का कामकाज हिंसा के द्वारा रोक दिया गया और अदालत खुद के लिए सुरक्षित जगह ढूंढ रही है और ये मामूली घटना है।
इन राष्ट्रवादी हमलों का अगला दौर संसद और विधानसभाओं की कार्यवाहियों को जबरदस्ती अंदर घुस कर रोक देने का होगा। क्योंकि संविधान में अदालत और विधायिका को समान दरजा है। हो सकता है एक राष्ट्रवादी आतंकवादियों का एक गुट कल दिल्ली विधानसभा में घुस जाये और केजरीवाल से कहे की बाकि बातें छोडो और भारत माता की जय बोलो।
जो लोग घटनाओं की गंभीरता को नही समझ रहे हैं और इन लोकतंत्र विरोधी राष्ट्रवादियों की हाँ में हाँ मिला रहे हैं उन्हें जब तक इसकी गंभीरता समझ में आएगी तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी। वो अलग बात है की उनको कोई फर्क नही पड़ता। क्योंकि वो और उनके ये राष्ट्रवादी गुंडे तो अंग्रेजी राज में भी कुशल पूर्वक थे , आजादी के लिए मरने वाले तो दूसरे ही थे।
इससे पहले गुजरात दंगो के बाद भी ये बात सामने आई थी की गुजरात में इन दंगों के मामले पर निष्पक्ष सुनवाई सम्भव नही है। तब उच्चत्तम न्यायालय ने उन केसों की सुनवाई गुजरात से बाहर करवाने का फैसला किया। जिन केसों को पुलिस ने बंद कर दिया था उन्हें SIT और सीबीआई ने दुबारा खोला और उनमे सजा हुई। ये बात सामने आ गयी की सारी पुलिस कार्यवाही और सरकार के बयान फर्जी थे। लेकिन उसके लिए ना तो सरकार और ना ही पुलिस के किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई। न्याय व्यवस्था को विफल करने के दोषी मजे से अपना काम करते रहे।
उसी तरह का माहौल अब पटियाला हाउस कोर्ट के मामले में है। ऐसा कहा जा रहा है की उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के मामले में जज अदालत की बजाय पुलिस स्टेशन में आकर सुनवाई कर सकता है। यानि ये मान लिया गया है की पटियाला हाउस कोर्ट में अदालती कार्यवाही की सुरक्षा की कोई गारंटी नही है। और ये हालात किसने पैदा किये है ? उन्ही लोगों ने जिनको गिरफ्तार करने की पुलिस को कोई जरूरत महसूस नही हुई और सरकार जिसे मामूली घटना बता रही है। अदालत का कामकाज हिंसा के द्वारा रोक दिया गया और अदालत खुद के लिए सुरक्षित जगह ढूंढ रही है और ये मामूली घटना है।
इन राष्ट्रवादी हमलों का अगला दौर संसद और विधानसभाओं की कार्यवाहियों को जबरदस्ती अंदर घुस कर रोक देने का होगा। क्योंकि संविधान में अदालत और विधायिका को समान दरजा है। हो सकता है एक राष्ट्रवादी आतंकवादियों का एक गुट कल दिल्ली विधानसभा में घुस जाये और केजरीवाल से कहे की बाकि बातें छोडो और भारत माता की जय बोलो।
जो लोग घटनाओं की गंभीरता को नही समझ रहे हैं और इन लोकतंत्र विरोधी राष्ट्रवादियों की हाँ में हाँ मिला रहे हैं उन्हें जब तक इसकी गंभीरता समझ में आएगी तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी। वो अलग बात है की उनको कोई फर्क नही पड़ता। क्योंकि वो और उनके ये राष्ट्रवादी गुंडे तो अंग्रेजी राज में भी कुशल पूर्वक थे , आजादी के लिए मरने वाले तो दूसरे ही थे।
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