गप्पी -- मुझे ये इसलिए लिखना पड रहा है क्योंकि सारे देश से छात्रों की गुण्डागर्दी के समाचार आ रहे हैं। पहला समाचार केरल से है जहां छात्र इस बात को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे की पढ़ाई शुरू होने के इतने दिन बाद भी स्कूलों में किताबें नही बांटी गयी जो सरकार को बांटनी थी। अब ये तो हद दर्जे की गुंडागर्दी है की सरकार को क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए ये भी छात्र बताएंगे। छात्रों को तो सरकार का धन्यवाद करना चाहिए की कम से कम स्कूल तो खुले हैं। अगर वो भी नही खुलते तो क्या कर लेते। जैसा की नियम है और कानून में प्रावधान है, गुंडों को सुधारने का काम पुलिस का होता है। सरकार ने संविधान के अनुसार कार्यवाही करते हुए इन गुंडा छात्रों को सुधारने का काम पुलिस को सौंप दिया। उसके बाद छात्रों की जो रक्तरंजित तस्वीरें सोशल मीडिया में छपी उन्हें देखकर मुझे विश्वास हो गया की छात्र सुधर गए होंगे।
दूसरी खबर हरियाणा से आई जहां नर्सिंग की छात्राएं कोर्स पास करने के बाद डिग्री की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रही थी। बोलो, अब लड़के तो लड़के, लड़कियां भी प्रदर्शन कर रही हैं। समाज का नैतिक स्तर कहां पहुंच गया है। हरियाणा में पहले ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान बड़े जोर शोर से चल रहा है। वहां #SelfieWithDaughter का अभियान भी बहुत जोर शोर से चल रहा है और पूरे देश में चर्चा में भी है। अब अगर वहां बेटियां पढ़ने के बाद डिग्री जैसी तुच्छ चीज के लिए प्रदर्शन पर उत्तर आएँगी तो ये तो साफ साफ गुंडागर्दी हुई और इससे राज्य की छवि खराब होगी। जाहिर है की पूरे देश में एक ही संविधान लागु है और आपको मालूम ही है की उसमे गुंडों को सुधारने का काम पुलिस को सौंपा गया है। सो हरियाणा की सरकार ने भी संविधान का सम्मान करते हुए ये काम पुलिस को दे दिया। बाद में वहां की छत्राओं की तस्वीरें भी बहुत उत्साहवर्धक थी की हमारी पुलिस अपना काम कितना बखूबी करती है और हम हैं की हमेशा पुलिस को कोसते रहते हैं। अब मेरी हरियाणा की उन बेटियों के माँ बाप को सलाह है की वो चाहें तो खून टपकती हुई बेटियों की selfie पोस्ट कर सकते हैं। सरकार बेटियों को बचाने और पढाने के लिए कटिबद्ध है और उसने कल ही फ़िल्मी हीरोइन परिणीति चोपड़ा को इस अभियान की ब्राण्ड अम्बेसडर बनाया है।
तीसरी खबर गुजरात से है जहां एक सरकारी सहायता प्राप्त लॉ कालेज की सीटें 300 कम करके इतनी ही सीटें प्राइवेट कालेजों को दे दी हैं। अब इस पर हल्ला हो रहा है। कोई बड़ा आंदोलन नही हो रहा क्योंकि इस तरह छोटी बातों पर आंदोलन की परम्परा गुजरात में खत्म हो गयी है। यहां आंदोलन करने के लिए दूसरे महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं जैसे सड़क के बीच में आने वाले मंदिरों और मजारों को हटाने के मुद्दे। खैर, मेरा केवल ये कहना है की गुजरात की पहचान व्यवसाय से है और अगर सरकार शिक्षा के व्यवसाय को बढ़ावा नही देगी तो गुजरात इस क्षेत्र में पिछड़ सकता है। और अगर वो इस क्षेत्र में पिछड़ गया तो गुजरात की तो पहचान ही खत्म हो जाएगी। आखिर इसी माहौल के कारण तो हमारे उद्योगपति गुजरात में निवेश करने के लिए टूट पड़ते हैं। ऐसा भी नही है की सरकार शिक्षा के गिरते स्तर से चिंतित नही है। खुद मुख्यमंत्री ने इस पर चिंता व्यक्त की है ठीक उसी तरह जैसे हमारी सरकारें महंगाई और दूसरे मुद्दों पर चिंता व्यक्त करते रहते हैं। उन्होंने गुजरात में शिक्षा का स्तर उपर उठाने के लिए प्रयास भी किये हैं. कुछ लोगों का मानना है की चार-चार हजार की फिक्स पगार पर अध्यापकों की नियुक्ति करोगे तो शिक्षा का स्तर तो गिरेगा ही। लेकिन सरकार इससे सहमत नही है। इस साल दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में गुजरात में रिकार्ड तोड़ बच्चों को फेल कर दिया गया। सरकार का कहना है की ऐसा उसने शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने के लिए किया। वैसे भी जब ये बच्चे शिक्षा पूरी करके नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तो वहां की परीक्षा में फेल हो जाते हैं। इसलिए सरकार ने केवल उन बच्चों को पास करने का फैसला किया है जो बिना स्कूलों, अध्यापकों और बिना किसी सहायता से इधर उधर से अपने खुद के प्रयासों से पढ़कर पास हो सकें। इससे भविष्य में नौकरी के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में उनके पास होने की सम्भावना बढ़ जाएगी। और सरकार इस के लिए लगातार प्रयास करेगी की बच्चों को स्कूलों में कम से कम पढ़ाया जाये ताकि वो अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
इन सारी खबरों को देखने के बाद मुझे तो पूरा यकीन हो गया है की हमारी शिक्षा व्यवस्था प्रगति कर रही है। और जरूरत इस पर और ज्यादा बजट खर्च करने की नही है, बल्कि छात्रों की गुंडागर्दी रोकने की है। इसलिए सरकार को चाहिए की वो अगले बजट में शिक्षा के लिए रखे गए पैसे का एक हिस्सा पुलिस पर खर्च करने का प्रावधान भी रक्खे।
खबरी -- सरकार कर ही रही है थोड़ा तो भरोसा रक्खो।
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