Monday, August 17, 2015

Vyang -- जो सुरक्षा कारणों से खदेड़ दिए गए।


गुप्पी -- स्वतन्त्रता दिवस समारोह की पूर्व संध्या। जंतर मंतर पर बैठे भूतपूर्व सैनिकों को दिल्ली पुलिस ने खदेड़ दिया। इसका जो कारण बताया गया वो ये था की स्वतन्त्रता दिवस समारोह के लिए सुरक्षा पट्टी बनाई गयी है। बहुत खूब, दिल खुश हो गया। प्रधानमंत्री के पंद्रह अगस्त के भाषण के बाद सोशल मीडिया पर एक फोटो वाइरल हुआ जिसमे प्रधानमंत्री बिना बुलेट प्रुफ कांच के भाषण दे रहे थे। पर ये किसी ने नही बताया की उनकी सुरक्षा के लिए जंतर मंतर से पूर्व सैनिकों को खदेड़ा गया था।
                         ये लोग कौन थे ? ये वो लोग थे जिन्होंने तीन बार पाकिस्तान की सेना को खदेड़ा था। आज उनको दिल्ली पुलिस ने खदेड़ दिया। जिन लोगों को देश के पहरेदार माना जाता है और जिनके भरोसे देश की सीमाएं हैं वो अचानक सुरक्षा को खतरा हो गए। जिन लोगों ने सीमा पर खरोंच नही आने दी वो फ़टे कपड़ों और टपकते खून के साथ खदेड़ दिए गए। जिस भारत माता की तस्वीर को बीजेपी अपने राष्ट्रवाद को साबित करने के लिए बगल में लिए घूमती है अगर एक बार उसकी तरफ देख लेती तो शायद उसके आँसू दिखाई दे जाते।
                  मुझे अच्छी तरह याद है बीजेपी के चुनाव प्रचार को शुरू करने वाली पहली रैली जो रेवाड़ी में हुई थी और जिसे अब के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्बोधित किया था। उस रैली को पूर्व सैनिकों का सम्मेलन कहा गया था और जनरल वी के सिंह इसी रैली में भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय स्टेज पर देश भक्ति के गीत गाने वाला एक गवैया जोश में दुहरा हुआ जा रहा था। पूरा माहौल देशभक्ति से सराबोर था। उसमे मोदी जी ने अपने सारे वायदे जो बीजेपी पूर्व सैनिकों के लिए करती रही है, एक बार फिर दुहराये थे। मुझे नही पता की वो रैली मोदीजी को याद है या नही। मुझे नही पता की वो रैली जनरल वी के सिंह को भी याद है की नही, लेकिन मुझे एक बात की उम्मीद थी की पूर्व सैनिकों के साथ जंतर मंतर की घटना के बाद शायद जनरल वी के सिंह या सेना से आये हुए राज्य वर्धन सिंह राठौर जैसे दूसरे कुछ लोग इस्तीफा दे दें। लेकिन गलत उम्मीद और गलत लोगों से की गयी उम्मीद का जो हांल होना चाहिए वो इस उम्मीद का भी हो गया।
                   मुझे ये तो नही मालूम की वन रैंक वन पैन्शन के वायदे की हाल में क्या पोज़िशन है और उससे कितना लाभ हानि होगी लेकिन जो व्यवहार पूर्व सैनिकों के साथ हुआ उसे ना तो भुलाया जा सकता है और ना ही बर्दास्त किया जा सकता है। जो भाजपा राष्ट्रवादी साबित होने की कोशिश में हमेशा सेना के प्रतीकों का इस्तेमाल करती रही है उससे हमेशा ये सवाल पूछा जाता रहेगा। ये सवाल वन रैंक वन पैन्शन के लागु होने से खत्म नही हो जायेगा।

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