जापान के साथ बुलेट ट्रेन का जो करार हुआ है उसकी आलोचना करने वालों को टीवी चैनल और उस पर बैठे सरकारी विशेषज्ञ उन्हें विकास और रोजगार का हवाला देकर चुप करवा रहे हैं और ऐसा माहोल बना रहे हैं जैसे बुलेट ट्रेन के आते ही भारत जापान में बदल जायेगा। लेकिन हमारी असली स्थिति क्या है ?
रेलवे की हालत बहुत ही खराब है। उसकी पटरियां पुरानी हो चुकी हैं और उसके कई पुलों की उम्र तो निधारित समय से दुगना समय गुजार चुकी है। ट्रेनों के डब्बे पुराने हो चुके हैं और बहुत बार दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। पिछले दिनों जो रेल दुर्घटना हुई थी वो बगैर गार्ड के फाटक पर जीप के ट्रेन से टकराने की वजह से हुई थी। हमारे देश में अभी भी बिना चौकीदार की बहुत सी रेलवे फाटक हैं। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जो नया सिस्टम है उसको अभी हम सभी जगह नही लगा पा रहे हैं। अभी भी बहुत सी जगह छोटी लाइन है जिसे बड़ी लाइन में बदलना हमारे बजट से बाहर है। रेलवे सुरक्षा के लिए रेलवे सुरक्षा बल में बहुत सी जगह खाली हैं जिन्हे नही भरा जा रहा है। और रेल लाइनो का बिजलीकरण करने में तो हमे बहुत साल लगने वाले हैं।
पिछले साल का बजट हमारे रेल बजट के इतिहास का इकलौता ऐसा बजट था जिसमे एक भी नई योजना और एक भी नई ट्रेन की घोषणा नही की गयी थी। इसके लिए ये तर्क दिया गया था की अभी पिछली अधूरी और शुरू नही की गयी योजनाओं में बहुत काम बाकि है। इसलिए पहले उसे पूरा किया जायेगा और उसके बाद नई ट्रेन या योजनाएं घोषित की जाएँगी।
अब जब 98000 करोड़ की बुलेट ट्रेन योजना जापान से कर्जा लेकर शुरू की जा रही है तो क्या बाकि सभी योजनाएं पूरी हो चुकी हैं। ये सरकार हमेशा अपनी सुविधा के अनुसार अपने तर्क बदलती रही है। ये योजना अगर पूरी भी हो जाये तो भी इसका किराया इतना महंगा होगा की देश के 95 % लोगों की ओकात के बाहर होगा। अहमदाबाद से मुंबई तक की केवल 540 किलोमीटर की यात्रा के लिए 98000 करोड़ का खर्च एक बड़ा बोझ तो होगा ही साथ में एक क्षेत्रीय असंतुलन भी पैदा करेगा। इसकी लागत और इसकी कलेक्शन के बीच ऐसा ना हो की हर साल एयर इंडिया की तरह बजट से पैसा डालना पड़े।
जो लोग इस परियोजना से देश में रोजगार पैदा होने का तर्क दे रहे हैं उनसे मैं केवल इतना पूछना चाहता हूँ की अगर हमारी मौजूदा रेल की व्यवस्था सुधारने के लिए सामान का उत्पादन किया जाता तो क्या उससे रोजगार पैदा नही होता। जापान से कर्ज लेकर काम करना था तो वो उन क्षेत्रों में भी हो सकता था। बल्कि इससे ज्यादा रोजगार पैदा हो सकता था।
सपने देखना कोई बुरी बात नही है , लेकिन ओकात के बाहर के और अव्यवहारिक सपने देखना खतरनाक हो सकता है।
रेलवे की हालत बहुत ही खराब है। उसकी पटरियां पुरानी हो चुकी हैं और उसके कई पुलों की उम्र तो निधारित समय से दुगना समय गुजार चुकी है। ट्रेनों के डब्बे पुराने हो चुके हैं और बहुत बार दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। पिछले दिनों जो रेल दुर्घटना हुई थी वो बगैर गार्ड के फाटक पर जीप के ट्रेन से टकराने की वजह से हुई थी। हमारे देश में अभी भी बिना चौकीदार की बहुत सी रेलवे फाटक हैं। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जो नया सिस्टम है उसको अभी हम सभी जगह नही लगा पा रहे हैं। अभी भी बहुत सी जगह छोटी लाइन है जिसे बड़ी लाइन में बदलना हमारे बजट से बाहर है। रेलवे सुरक्षा के लिए रेलवे सुरक्षा बल में बहुत सी जगह खाली हैं जिन्हे नही भरा जा रहा है। और रेल लाइनो का बिजलीकरण करने में तो हमे बहुत साल लगने वाले हैं।
पिछले साल का बजट हमारे रेल बजट के इतिहास का इकलौता ऐसा बजट था जिसमे एक भी नई योजना और एक भी नई ट्रेन की घोषणा नही की गयी थी। इसके लिए ये तर्क दिया गया था की अभी पिछली अधूरी और शुरू नही की गयी योजनाओं में बहुत काम बाकि है। इसलिए पहले उसे पूरा किया जायेगा और उसके बाद नई ट्रेन या योजनाएं घोषित की जाएँगी।
अब जब 98000 करोड़ की बुलेट ट्रेन योजना जापान से कर्जा लेकर शुरू की जा रही है तो क्या बाकि सभी योजनाएं पूरी हो चुकी हैं। ये सरकार हमेशा अपनी सुविधा के अनुसार अपने तर्क बदलती रही है। ये योजना अगर पूरी भी हो जाये तो भी इसका किराया इतना महंगा होगा की देश के 95 % लोगों की ओकात के बाहर होगा। अहमदाबाद से मुंबई तक की केवल 540 किलोमीटर की यात्रा के लिए 98000 करोड़ का खर्च एक बड़ा बोझ तो होगा ही साथ में एक क्षेत्रीय असंतुलन भी पैदा करेगा। इसकी लागत और इसकी कलेक्शन के बीच ऐसा ना हो की हर साल एयर इंडिया की तरह बजट से पैसा डालना पड़े।
जो लोग इस परियोजना से देश में रोजगार पैदा होने का तर्क दे रहे हैं उनसे मैं केवल इतना पूछना चाहता हूँ की अगर हमारी मौजूदा रेल की व्यवस्था सुधारने के लिए सामान का उत्पादन किया जाता तो क्या उससे रोजगार पैदा नही होता। जापान से कर्ज लेकर काम करना था तो वो उन क्षेत्रों में भी हो सकता था। बल्कि इससे ज्यादा रोजगार पैदा हो सकता था।
सपने देखना कोई बुरी बात नही है , लेकिन ओकात के बाहर के और अव्यवहारिक सपने देखना खतरनाक हो सकता है।
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