जैसे ही कीर्ति आजाद को सस्पेंड करने की खबर आई, मेरे पड़ोसी मेरे यहां आ धमके। उनका लहजा और चेहरा ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कीर्ति आजाद को मैंने सस्पेंड किया हो। मैंने मौके नजाकत को समझते हुए उन्हें सोफे पर बैठाया और खुद लाकर पानी पिलाया। उसके बाद उनके लिए चाय बनाने को आवाज लगाई और फिर सहमते हुए उनसे इस आवेश का कारण पूछा। वो फट पड़े। अब कीर्ति आजाद को सस्पेंड करने की क्या जरूरत थी ? उसने क्या किया है ?
मैंने उसके सस्पेंसन की जिम्मेदारी लेने से बचते हुए कहा की अमित शाह ने कहा है की वो पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे।
वो भृष्टाचार के खिलाफ बोल रहे थे। क्या भृष्टाचार पार्टी है ? पड़ोसी ने सोफे से उठने की कोशिश की।
मैंने उन्हें वापिस बिठाते हुए कहा -- लेकिन अरुण जेटली का नाम आ रहा था।
क्या अरुण जेटली पार्टी है ? पड़ोसी ने फिर उठने की कोशिश की।
लेकिन पार्टी के नेता तो हैं। मैंने उन्हें फिर बिठाया।
नेता तो कीर्ति आजाद भी हैं। इस बार उसने बैठे बैठे कहा।
लेकिन विपक्षी पार्टियां उनके बयानों का फायदा उठा रही थी। मैंने पास में बैठते हुए कहा।
विपक्ष तो शत्रुघन सिन्हा के बयानों का भी फायदा उठाता है ?
उनको भी निकालेंगे। मैंने कहा।
और आडवाणी जी ? पड़ोसी ने व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा।
वो तो निकाले जैसे ही हैं। मैंने सफाई दी।
ओह। तो ये बात है। वैसे तुम ये बताओ की कीर्ति आजाद को धमका कर तुम क्या हासिल करना चाहते हो ? मेरे पड़ोसी मुझसे ऐसे सवाल कर रहे थे जैसे मैं अमित शाह हों।
देखिये कोईआदमी आज दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर अरुण जेटली पर आरोप लगा रहा है, कल वो गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर नरेंद्र मोदी या अमित शाह पर आरोप लगाएगा। फिर हिमाचल में अनुराग ठाकुर ने जो क्रिकेट स्टेडियम की जमीन पर होटल बनाया है उसको दुबारा उठाएगा। इस तरह तो पार्टी चल ली। इसलिए पार्टी के हित में इस पर कार्यवाही जरूरी थी। मैंने अपनी तरफ से जवाब देने की पूरी कोशिश की।
ये क्रिकेट एसोसिएशन कब से पार्टी हो गयी ? और तुम तो भृष्टाचार से लड़ने की बात करते थे ?
भृष्टाचार से तो अब भी लड़ ही रहे हैं। सीबीआई को सख्त आदेश हैं की किसी भी विपक्षी नेता के खिलाफ कुछ भी मिलता है तो खोद कर निकालो। लेकिन अपने लोगों के खिलाफ क्यों लड़ रहे हो।
अब तो तुम्हारे मार्गदर्शक मंडल ने भी कह दिया है की घोटालों की आवाज उठाने वालों की बजाए उनके उठाये मामलों की जाँच कराओ। --पड़ोसी ने कहा।
मैंने फिर प्रवक्ता की मुद्रा अपनायी , " देखिये ये जो बुजुर्ग होते हैं इनकी यही तकलीफ होती है। ये चाहे घर में हों या पार्टी में, हर रोज बिना मांगे सलाह देते रहते हैं। हम तो मार्गदर्शक मंडल का नाम मूक दर्शक मंडल रखना चाहते थे लेकिन मीडिया ने फंसा दिया। अब तो ये इतना ज्यादा बोलते हैं की इनको राज्य पाल बनाने में भी डर लगता है। "
मैंने उसके सस्पेंसन की जिम्मेदारी लेने से बचते हुए कहा की अमित शाह ने कहा है की वो पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे।
वो भृष्टाचार के खिलाफ बोल रहे थे। क्या भृष्टाचार पार्टी है ? पड़ोसी ने सोफे से उठने की कोशिश की।
मैंने उन्हें वापिस बिठाते हुए कहा -- लेकिन अरुण जेटली का नाम आ रहा था।
क्या अरुण जेटली पार्टी है ? पड़ोसी ने फिर उठने की कोशिश की।
लेकिन पार्टी के नेता तो हैं। मैंने उन्हें फिर बिठाया।
नेता तो कीर्ति आजाद भी हैं। इस बार उसने बैठे बैठे कहा।
लेकिन विपक्षी पार्टियां उनके बयानों का फायदा उठा रही थी। मैंने पास में बैठते हुए कहा।
विपक्ष तो शत्रुघन सिन्हा के बयानों का भी फायदा उठाता है ?
उनको भी निकालेंगे। मैंने कहा।
और आडवाणी जी ? पड़ोसी ने व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा।
वो तो निकाले जैसे ही हैं। मैंने सफाई दी।
ओह। तो ये बात है। वैसे तुम ये बताओ की कीर्ति आजाद को धमका कर तुम क्या हासिल करना चाहते हो ? मेरे पड़ोसी मुझसे ऐसे सवाल कर रहे थे जैसे मैं अमित शाह हों।
देखिये कोईआदमी आज दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर अरुण जेटली पर आरोप लगा रहा है, कल वो गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर नरेंद्र मोदी या अमित शाह पर आरोप लगाएगा। फिर हिमाचल में अनुराग ठाकुर ने जो क्रिकेट स्टेडियम की जमीन पर होटल बनाया है उसको दुबारा उठाएगा। इस तरह तो पार्टी चल ली। इसलिए पार्टी के हित में इस पर कार्यवाही जरूरी थी। मैंने अपनी तरफ से जवाब देने की पूरी कोशिश की।
ये क्रिकेट एसोसिएशन कब से पार्टी हो गयी ? और तुम तो भृष्टाचार से लड़ने की बात करते थे ?
भृष्टाचार से तो अब भी लड़ ही रहे हैं। सीबीआई को सख्त आदेश हैं की किसी भी विपक्षी नेता के खिलाफ कुछ भी मिलता है तो खोद कर निकालो। लेकिन अपने लोगों के खिलाफ क्यों लड़ रहे हो।
अब तो तुम्हारे मार्गदर्शक मंडल ने भी कह दिया है की घोटालों की आवाज उठाने वालों की बजाए उनके उठाये मामलों की जाँच कराओ। --पड़ोसी ने कहा।
मैंने फिर प्रवक्ता की मुद्रा अपनायी , " देखिये ये जो बुजुर्ग होते हैं इनकी यही तकलीफ होती है। ये चाहे घर में हों या पार्टी में, हर रोज बिना मांगे सलाह देते रहते हैं। हम तो मार्गदर्शक मंडल का नाम मूक दर्शक मंडल रखना चाहते थे लेकिन मीडिया ने फंसा दिया। अब तो ये इतना ज्यादा बोलते हैं की इनको राज्य पाल बनाने में भी डर लगता है। "
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.