Sunday, December 13, 2015

Opinion -- राष्ट्र प्रेम V/s राष्ट्रवाद

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है की राष्ट्रीयता और युद्ध एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। राष्ट्रीयता से उनका मतलब राष्ट्रवाद है। अति राष्ट्रवाद अमानवीय और खतरनाक होता है। यही राष्ट्रवाद दो देशों के बीच युद्ध की स्थिति पैदा करता है। यही राष्ट्रवाद एक ही देश के दो समुदायों के बीच संघर्ष और दुश्मनी भी पैदा करता है। एक बात जो सबसे महत्त्वपूर्ण है वो ये की ये राष्ट्रवाद किसी भी देश के लोगों का किसी भी रूप में भला नही करता। राष्ट्रवाद कभी भी राष्ट्रप्रेम नही होता बल्कि एक सीमा के बाद तो ये दोनों एक दूसरे के विरोधी होते हैं।
                  जो लोग दिमागी रूप से इस राष्ट्रवाद के शिकार होते हैं वो अनजाने में ही देश को नुकशान पहुंचाते रहते हैं।
              मशहूर लेखक चार्ल्स द गाल ने भी कहा है की, " अगर किसी के मन में अपने लोगों के प्रति प्रेम होता है तो ये राष्ट्र प्रेम होता है और अपने लोगों को छोड़कर बाकि लोगों के प्रति नफरत होती है तो ये राष्ट्रवाद होता है। "
               एक और मशहूर लेखक जार्ज ऑरवेल ने भी लिखा है की, " देश भक्ति और राष्ट्रवाद एक दूसरे के विरोधी चीजें हैं। देश भक्ति का मतलब किसी स्थान विशेष और जीवन शैली को सर्वश्रेष्ठ समझने वाली भावना होती है लेकिन इस भावना का व्यक्ति अपनी भावना किसी पर थोपता नही है, जबकि राष्ट्रवाद की भावना रखने वाला आदमी दूसरों पर अपने विचारों को थोपता है और चाहता है की इसे ही बाकि लोग स्वीकार करें। "
                 अगर मामला दो देशों के बीच का होता है तो एक देशभक्त दूसरे देशों और स्थानो के देशभक्तों का सम्मान करता है लेकिन  राष्ट्रवादी उनके प्रति नफरत का भाव रखता है। जब ये राष्ट्रवाद उग्र रूप धारण करता है तो युद्ध को जन्म देता है।
                  इसमें सबसे दिलचस्प बात ये होती है की खुद को राष्ट्रवादी समझने वाला व्यक्ति अपने ही देश के कानूनों का सम्मान नही करता। वह करों और भुगतानों से संंबंधित कानूनो का उलंघन करता है। टैक्सों की चोरी को अपना अधिकार समझता है और इन्हे राष्ट्रवाद की परिभाषा से बाहर समझता है। वो सभी तरह के गैरकानूनी काम करते हुए भी अपने आप को राष्ट्रवादी समझता रह सकता है। जबकि एक देशभक्त देश के कानूनों का सम्मान करता है और किसी भी ऐसे काम से बचता है जिससे देश को नुकसान हो सकता हो।
                  किसी भी देश की सरकार और उसमे रहने वाले अलग अलग समूहों के बीच नीतियों और कार्यक्रमों को लेकर मतभेद हो सकते हैं। किसी भी देश के लोग बहुत बार अपनी ही देश की सरकार के खिलाफ आंदोलन करते हैं। सरकार और जनता की समझ में बड़ा फर्क हो सकता है। जैसे हमारे ही देश में कई मामलों पर सरकार और लोगों के बीच मतभेद हैं। आदिवासियों के इलाकों में बड़े उद्योगों और खदानों को लेकर सरकार और लोगों के बीच मतभेद हैं। कई जगहों पर ये मतभेद टकराव का रूप भी ले लेते हैं। सरकार इन मतभेदों को कुचलने के लिए दमन का सहारा लेती है। विरोध करने वाले समूहों पर देश विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाती है। लेकिन इसका ये मतलब कतई नही होता की ये जन समूह असल में देश विरोधी हैं। भूमि के सवाल पर किसानो और सरकार के बीच संघर्ष होता है। सरकार किसानो पर देश का विकास रोकने का आरोप लगाती है तो इसका ये मतलब भी कतई नही होता की ये किसान विकास विरोधी हैं। लेकिन एक राष्ट्रवादी बिना सोचे विचारे वही भाषा बोलता है जो सरकार बोलती है। और वो इन सब लोगों को देश द्रोही मानता है।
                    सबसे हास्यास्पद स्थिति तो तब पैदा होती है जब सरकार अपनी नीति पर पलटी मारती है। तब बेचारे इन राष्ट्रवादियों को भी पलटी मारनी पड़ती है।
                  इसलिए राष्ट्रवाद और देशभक्ति को एक ही चीज समझने की भूल नही करनी चाहिए।
                  

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