Friday, December 25, 2015

Vyang -- गंगा और बीजेपी में क्या क्या समान है।

                       ये बहुत पते का सवाल है। पहली बात ये है और यहीं से शुरू भी होती है की जो भी गंगा के भक्त हैं वो ये मानते हैं की कोई कितना ही पापी क्यों ना हो, गंगा स्नान करने से उसके सारे पाप धुल जाते हैं। पाप की क़्वालिटी भले ही कैसी भी हो , आदमी चाहे खूनी हो, बलात्कारी हो, चोर हो या डकैत हो , इस बात से कोई फर्क नही पड़ता। गंगा माँ सबके पाप धो देती है और आदमी को फिर से पाप करने लायक कर देती है।
                         उसी तरह बीजेपी के भी जो भक्त हैं वो ये मान कर चलते हैं की कोई किसी भी पार्टी का कितना ही बड़ा घोटालेबाज हो, देशद्रोही हो, विदेशों में कालाधन जमा कराने वाला हो, या कितना ही बड़ा टैक्स चोर हो, अगर वह बीजेपी में शामिल हो जाता है तो तुरंत शुद्ध हो जाता है। उसके सारे कुकर्म सतकर्मो में बदल जाते हैं। और वो जब तक बीजेपी में रहता है तब तक उसे पाप छू भी नही सकता।
                         जिस तरह गंगा पाप-विमोचिनी है उसी तरह बीजेपी घोटाले-विमोचिनी है।
                         इससे एक तकनीकी स्थिति भी पैदा होती है। आदमी जब तक गंगा में खड़ा रहता है तब तक तो उसमे पाप लगने की कोई संभावना ही नही होती है। उसी तरह जब तक आदमी बीजेपी का सदस्य रहता है उस पर कोई आरोप लग ही नही सकता है। इसी तकनीकी पहलू को विपक्ष समझ नही पा रहा है और आये दिन किसी बीजेपी नेता के खिलाफ कोई आरोप लगा देता है। बेचारे बीजेपी के प्रवक्ताओं को बार-बार टीवी चैनलों पर आकर ये बात समझानी पड़ती है की भाई चूँकि वो बीजेपी का सदस्य है इसलिए उसकी जाँच नही हो सकती। लेकिन फिर कोई नेता आकर नया आरोप लगा देता है। हद तो तब हो गयी जब बीजेपी  कीर्ति आजाद ने अरुण जेटली पर भृष्टाचार का आरोप लगा दिया। अब बीजेपी ने उसे निलंबित करके ये याद दिलाया है की उसे बीजेपी और दूसरी पार्टियों में फर्क करना चाहिए। क्या कीर्ति आजाद भूल गए की बीजेपी "पार्टी विद ड डिफरेंस " है। जब तक आदमी बीजेपी में है उस को कोई आरोप छू भी नही सकता। बिलकुल गंगा माँ की तरह।
                        लेकिन एक बात बीजेपी को समझ नही आ रही। गंगा का पानी भी इतना गन्दा हो चूका है की वो पीने के लायक तो क्या, नहाने के लायक भी नही बचा है। धीरे धीरे लोग बीजेपी के बारे में भी यही मानने लगे हैं। अब गंगा का पानी इतना खराब कैसे हो गया की उसकी सफाई के लिए अलग से कार्यक्रम बनाने की जरूरत पड़ गयी। लेकिन गंगा सफाई के अभियान के बारे में मुरली मनोहर जोशी ने कहा था की इस तरह तो गंगा पचास साल में भी साफ नही हो सकती। अब मुरली मनोहर जोशी यही बात बीजेपी के बारे में कह रहे हैं और आडवाणी और यशवंत सिन्हा उनकी हाँ में हाँ मिला रहे हैं।
                         मैंने मेरे पड़ोसी से इस पर बातचीत करके गंगा के और बीजेपी के प्रदूषित होने के कारण जानने की कोशिश की। उसने कहा की गंगा के गंदे होने का एक कारण उसके ही भक्तों द्वारा उसमे डाले जाने वाले फूल और पूजा सामग्री है। इससे एक तो ये बात भी पता चलती है की ज्यादा भक्ति और पूजा सामग्री भी प्रदूषण का कारण होती है। अब बीजेपी में भी इस तरह की भक्ति बढ़ रही है और उसको प्रदूषित कर रही है। दूसरा बड़ा कारण जो गंगा को प्रदूषित कर रहा है वो है उद्योगों का कचरा बड़ी मात्रा में उसमे गिर रहा है। उसी तरह बीजेपी में उद्योगपतियों का कचरा गिर रहा है। जब तक इसको नही रोका जायेगा तब तक इनकी सफाई नही हो सकती। अपनी बात को जारी रखते हुए मेरे पड़ोसी ने कहा की गंगा में लोग बहुत सी लाश बहा देते हैं। पता नही कितनी लाशें गंगा में तैरती रहती हैं। उसी तरह बीजेपी में भी पता नही कितने सिद्धांतों की लाशें तैर रही हैं।
                        उसके बाद वो राजकपूर की तरह भावुक हो गए और बोले। गंगा पापियों के पाप धोते धोते गंदी हो गयी है। जो पाप लोगों के शरीर से उतरते हैं आखिर वो गंगा के पानी में ही तो जमा होते हैं। उसी तरह बीजेपी ने अपने घोटालेबाजों के जो घोटाले धोये हैं उससे बीजेपी भी गंदी हो गयी है।
                         उनकी आँखे नम हो आई। उन्होंने कहा की गंगा की तरह बीजेपी के लिए भी एक सफाई अभियान की जरूरत है। उसके बाद वो उठकर धीरे धीरे बाहर चले गए।

Thursday, December 24, 2015

Vyang -- हाँ, कीर्ति आजाद के खिलाफ कार्यवाही जरूरी थी।

                जैसे ही कीर्ति आजाद को सस्पेंड करने की खबर आई, मेरे पड़ोसी मेरे यहां आ धमके। उनका लहजा और चेहरा ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कीर्ति आजाद को मैंने सस्पेंड किया हो। मैंने मौके  नजाकत को समझते हुए उन्हें सोफे पर बैठाया और खुद लाकर पानी पिलाया। उसके बाद उनके लिए चाय बनाने को आवाज लगाई और फिर सहमते हुए उनसे इस आवेश का कारण पूछा। वो फट पड़े। अब कीर्ति आजाद को सस्पेंड करने की क्या जरूरत थी ? उसने क्या किया है ?
                मैंने उसके सस्पेंसन की जिम्मेदारी लेने से बचते हुए कहा की अमित शाह ने कहा है की वो पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे।
                वो भृष्टाचार के खिलाफ बोल रहे थे। क्या भृष्टाचार पार्टी है ? पड़ोसी ने सोफे से उठने की कोशिश की।
                मैंने उन्हें वापिस बिठाते हुए कहा -- लेकिन अरुण जेटली का नाम आ रहा था।
                क्या अरुण जेटली पार्टी है ? पड़ोसी ने फिर उठने की कोशिश की।
                लेकिन पार्टी के नेता तो हैं।  मैंने उन्हें फिर बिठाया।
               नेता तो कीर्ति आजाद भी हैं।  इस बार उसने बैठे बैठे कहा।
                 लेकिन विपक्षी पार्टियां उनके बयानों का फायदा उठा रही थी। मैंने पास में बैठते हुए कहा।
                विपक्ष तो शत्रुघन सिन्हा के बयानों का भी फायदा उठाता है ?
                उनको भी निकालेंगे।  मैंने कहा।
               और आडवाणी जी ? पड़ोसी ने व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा।
                वो तो निकाले जैसे ही हैं।  मैंने सफाई दी।
ओह। तो ये बात है। वैसे तुम ये बताओ की कीर्ति आजाद को धमका कर तुम क्या हासिल करना चाहते हो ? मेरे पड़ोसी मुझसे ऐसे सवाल कर रहे थे जैसे मैं अमित शाह हों।
                देखिये कोईआदमी आज दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर अरुण जेटली पर आरोप लगा रहा है, कल वो गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन को लेकर नरेंद्र मोदी या अमित शाह पर आरोप लगाएगा। फिर हिमाचल में अनुराग ठाकुर ने जो क्रिकेट स्टेडियम की जमीन पर होटल बनाया है उसको दुबारा उठाएगा। इस तरह तो पार्टी चल ली। इसलिए पार्टी के हित में इस पर कार्यवाही जरूरी थी। मैंने अपनी तरफ से जवाब देने की पूरी कोशिश की।
                 ये क्रिकेट एसोसिएशन कब से पार्टी हो गयी ? और तुम तो भृष्टाचार से लड़ने की बात करते थे ?
                 भृष्टाचार से तो अब भी लड़ ही रहे हैं। सीबीआई को सख्त आदेश हैं की किसी भी विपक्षी नेता के खिलाफ कुछ भी मिलता है तो खोद कर निकालो। लेकिन अपने लोगों के खिलाफ क्यों लड़ रहे हो।
                अब तो तुम्हारे मार्गदर्शक मंडल ने भी कह दिया है की घोटालों की आवाज उठाने वालों की बजाए उनके उठाये मामलों की जाँच कराओ। --पड़ोसी ने कहा।
                 मैंने फिर प्रवक्ता की मुद्रा अपनायी , " देखिये ये जो बुजुर्ग होते हैं इनकी यही तकलीफ होती है। ये चाहे घर में हों या पार्टी में, हर रोज बिना मांगे सलाह देते रहते हैं। हम तो मार्गदर्शक मंडल का नाम मूक दर्शक मंडल रखना चाहते थे लेकिन मीडिया ने फंसा दिया। अब तो ये इतना ज्यादा बोलते हैं की इनको राज्य पाल बनाने में भी डर लगता है। "                 

 

Wednesday, December 16, 2015

Opinion -- क्या बीजेपी संसद नही चलाना चाहती ?

संसद का पूरा पिछला सत्र और लगभग पूरा होने को आया ये सत्र भी राज्य सभा में लगभग बिना कामकाज के समाप्त होने जा रहा है। बीजेपी इसके लिए विपक्ष और विशेषकर कांग्रेस के हंगामे को जिम्मेदार बता रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस इसे बीजेपी द्वारा जानबूझ कर की गयी उकसावे की कार्यवाहियों का नतीजा बता रही है। एक GST बिल जरूर ऐसा था जिस पर विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच गहरे मतभेद हैं लेकिन उस बिल के तो पेश होने का समय ही नही आया। जिन बिलों पर सरकार और विपक्ष के बीच बहुत ज्यादा मतभेद होते हैं उन बिलों को पेश होने से रोकने के लिए हंगामे की पुरानी परम्परा रही है। लेकिन उसके अलावा कुछ दूसरे तात्कालिक कारण भी होते हैं जिनकी वजह से संसद में हंगामा होता है।
                    इस तरह के कारणों के पैदा होने पर सरकार की फ्लोर-मैनेजमेंट उस पर कोई ना कोई रास्ता निकाल कर संसद की कार्यवाही को चलाते हैं ताकि सरकारी कामकाज को निपटाया सके। अगर संसदीय कार्य मंत्री और उनके उनके साथी ये काम नही कर पाते तो सरकार के बड़े नेता और प्रधानमंत्री विपक्ष के नेताओं से बातचीत करके रास्ता निकालते हैं। अब तक यही परम्परा रही है। लेकिन बीजेपी सरकार ने इस परम्परा को समाप्त कर दिया। अगर विपक्ष किसी मामले पर संसद में हंगामा करता है तो बीजेपी के सांसद सामने से हंगामा करते हैं। विपक्ष के नेताओं पर फिकरे कसे जाते हैं और आरोप लगाये जाते हैं।  तरह बीच का रास्ता निकलने की हर संभावना को समाप्त कर दिया जाता है।
                      अब ये तो नही माना जा सकता की बीजेपी के नेताओं को इस बात का पता नही है। इसका मतलब ये है की खुद बीजेपी नही चाहती की संसद चले। इस दौरान कुछ घटनाएँ तो एकदम आश्चर्य पैदा करने वाली हैं। केजरीवाल के दफ्तर पर सीबीआई का छापा और अरुणाचल में गवर्नर द्वारा कांग्रेस की सरकार को अस्थिर करने की कार्यवाही इसी तरह की घटनाएँ हैं। ठीक उस समय ये कार्यवाही करना जब संसद में महत्त्वपूर्ण बिलों पर विपक्ष के सहयोग की सख्त जरूरत है सरकार की संसद को चलाने की अनिच्छा को ही दिखाता है।
                     दूसरा मामला GST बिल पर मतभेदों का है। सरकार ने एक बार कांग्रेस को छोड़कर किसी भी विपक्षी नेता से इस बारे में बात नही की। कांग्रेस के साथ बातचीत के बाद इस बिल पर सरकार की तरफ से कोई रास्ता निकलने की कोशिश नही की गयी। इतना ही नही, कांग्रेस द्वारा मोदीजी के साथ मीटिंग में अपना पक्ष रखे जाने के 12 दिन बाद तक सरकार ने अपनी राय तक नही बताई, बस मीडिया में अपील करते रहे ताकि लोगों को दिखाया जा सके की सरकार कोशिश कर रही है। उसके बाद जब कांग्रेस ने मीडिया में इस बात को रखा तब सरकार ने कांग्रेस को अपना पक्ष भेजा। इस पर कांग्रेस के एतराज और उस पर सरकार का रिस्पॉन्स इस प्रकार है।
१. कांग्रेस ने GST बिल में टैक्स की अधिकतम सीमा 18 % रखे जाने और इसे बिल में शामिल करने की मांग की।
सरकार ने इसके जवाब में कहा की इसे बिल में नही रखा जा सकता।
२. कांग्रेस ने अंतर राजीय व्यपार पर १% अतिरिक्त टैक्स को समाप्त करने की मांग की।
 सरकार ने इसके जवाब में कहा की उसे इस पर गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से बात करनी पड़ेगी और सरकार अपनी तरफ से इसे नही हटा सकती।
३. कांग्रेस ने विवाद की स्थिति में 75% की सदस्य संख्या के फैसले की मांग रखी।
सरकार ने इस पर असहमति जाहिर की।

            इसका सीधा सीधा मतलब ये हुआ की सरकार कुछ भी मानने के लिए तैयार नही है। अब बताइये इस पर रास्ता निकालने के लिए सरकार ने क्या किया ?
            इसलिए अब लोगों की ये राय बनने लगी है की खुद बीजेपी नही चाहती की संसद चले।

Tuesday, December 15, 2015

मोदी सरकार की उपलब्धियां

खबरी -- पिछले डेढ़ साल में मोदी सरकार की क्या उपलब्धियां रही हैं ?

गप्पी -- एक तो ये की हम दस लाख का सूट पहन सकते हैं, दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति 3000 करोड़ की लागत से हम बना रहे हैं , एक लाख करोड़ की लागत से बुलेट ट्रेन लेकर आ रहे हैं , विदेशों में 50000 लोगों के शो आयोजित कर सकते हैं।
              दूसरी तरफ  विदेश नीति के मामले में, देश पर विदेशी कर्ज के मामले में, देश में धार्मिक और जातीय समुदायों में अविश्वास के मामले में, संघीय ढांचे और लोकतान्त्रिक संस्थाओं के मामले में इतना नुकसान पंहुचा चुके हैं की अगर आज से भी इन्हे सुधारना शुरू करें तो हमे दशक लग जायेंगे।

Monday, December 14, 2015

Opinion -- आम सहमति का मतलब --- सरकार से सहमति

                    देश में बहुत बार आम सहमति की बात होती है। जब भी आर्थिक मामलों की बात चलती है तो ये कहा जाता है की देश में आर्थिक सुधारों को लेकर आम सहमति है। ये भी कहा जाता है की आर्थिक मामलों पर आम सहमति होनी चाहिए और उस पर राजनीती नही होनी चाहिए। विदेश मामलों में तो खासकर आम सहमति की बात की जाती है और ये दावा किया जाता है की कम से कम विदेश नीति के मामले में तो देश में आम सहमति है।
                    लेकिन पिछले कुछ सालों से आम सहमति के मायने बदल गए हैं। खासकर जब से आर्थिक सुधारों का दौर शुरू हुआ है इस बात पर खास जोर दिया जा रहा है। अब आम सहमति का मतलब हो गया है सरकार के साथ सहमति। यदि कोई किसी नीति पर सवाल उठाता है तो उसे ये कहकर हड़काया जाता है की वो कम से कम इस मामले में तो आम सहमति बनाये। दूसरे शब्दों में उसे इस बात के लिए मजबूर किया जाता है की वो सरकार की हाँ में हाँ मिलाये। अगर कोई सवाल उठाता है तो कहा जाता है की वो राजनीती कर रहा है। और राजनीती करने को बहुत बुरा माना जाता है। जब से आर्थिक सुधारों का ये दौर शुरू हुआ है सारी नीतियां कॉर्पोरेट को ध्यान में रखकर और उसके फायदे के लिए बनाई जाती हैं। भले ही लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए उसे कोई नाम  दिया जाये।
                      दूसरी जो बात इस तथाकथित आम सहमति के नाम पर सामने आई है वो ये है की दो पार्टियों, यानि बीजेपी और कांग्रेस की सहमति को आम सहमति मान लिया गया है। उसके बाद चाहे सरकार हो या कॉर्पोरेट के लोग हों, या कॉर्पोरेट का मीडिया हो या फिर टीवी चैनलों में बैठे हुए विशेषज्ञ हों, सब एक ही राग अलापते हैं की इस मामले पर आम सहमति है। जबकि असलियत ये है की उन दोनों को मिले वोट का प्रतिशत  बहुत बार 50 % से कम होता है। बाकि राजनैतिक दलों से  ना कोई बात की जाती है और ना ही उनकी राय को कोई महत्त्व दिया जाता है। जब सिद्धांतों की बात होती है तो सरकार कॉपरेटिव फडरेलिज्म की बात करती है और संघीय ढांचे की आरती उतारती है।
                        GST बिल के सवाल पर ये बात बहुत ही मुखर होकर सामने आ रही है। बीजेपी ने इस बिल पर किसी पार्टी से कोई बात करने की कोशिश नही की। केवल देश के विकास की हवा का दबाव बना कर इसका समर्थन करने के लिए कहा गया। वो तो कांग्रेस के साथ उसके रिश्ते खराब होने के चलते उसे उसके साथ बातचीत करने के लिए मजबूर होना पड़ा। अगर उसके पास राज्य सभा में बिल पास करने लायक बहुमत होता तो वो कांग्रेस की तरफ मुड़ कर भी नही देखती। लेकिन इन हालात के बावजूद उसने बाकि राजनितिक पार्टियों के साथ संवाद की कोई कोशिश नही की। हमारे यहां आम सहमति का केवल यही मतलब है की अगर आपका काम निकल गया तो किसी को पूछने की जरूरत नही है।
                          विदेश नीति  पर भी अजब नजारा सामने है। सरकार का मानना है की अगर वो किसी देश को गालियां देती है तो पुरे विपक्ष को उसे गालियां देनी चाहिए और अगर वो उसके साथ गलबहियां डाल कर घूमती है तो पूरे विपक्ष को तालियां बजानी चाहियें। अगर कोई ये सवाल पूछता है की भाई गाली देने का कारण बताइये तो चारों तरफ से उस पर फिटकार डाली जाती है की देखो, देखो इस देशद्रोही को विदेशी मामले पर भी राजनीती कर रहा है। इस सरकार की पाकिस्तान नीति हो या फिर नेपाल नीति ये हमेशा सवालों के घेरे में रही हैं। विपक्ष की तो छोडो, इस सरकार के भक्तगण भी पाकिस्तान के बारे में उसकी पलटी पर खुद को एडजेस्ट नही कर पा रहे हैं।
                          उसके बाद भी अगर विपक्ष का कोई दल अपना विरोध सख्त करता है तो सरकार का तर्क होता है की संसद में चर्चा के लिए सरकार तैयार है। बीजेपी की ये सरकार बनने के बाद संसद की चर्चा का मतलब भी वही हो गया है। जिन मामलों में पुरे देश में चिंता और बहस का माहोल था उन पर भी चर्चा का ये हाल था की सरकार चर्चा से पहले जो कहती रही वही चर्चा के बाद भी कहती रही। असहिष्णुता के मामले  में चर्चा हुई। पुरे विपक्ष ने सैकड़ों उदाहरण दे कर इस खतरे को सामने रक्खा लेकिन सरकार ने वही रुख अपनाया जो चर्चा से पहले था। किसी एक सवाल पर उसने इतना तक नही कहा की सरकार इसको देखेगी या कोई कदम उठाएगी। उसके बाद अगर कोई इस मामले पर बात करता है तो सरकार का जवाब होता है की इस मामले पर संसद में चर्चा हो चुकी है और संसद ( असल में सरकार ) उसे ख़ारिज कर चुकी है। फिर किसी मामले पर सरकार कहती है की विपक्ष इस पर संसद में चर्चा क्यों नही कर रहा ? भई वो इसलिए नही कर रहा की उसे मालूम है की सरकार पर जो टेप चढ़ी हुई है वही बजने वाली है। सरकार विपक्ष की किसी भी जायज चिंता को स्वीकार करने को तैयार नही है।                          



Comment on News -- प्रधानमंत्री, एयरपोर्ट और मूडीज की रिपोर्ट ( Prime Minister, Airport and Moody,s Report )

अभी अभी मूडीज की रिपोर्ट आई है। उसमे भारत की रेटिंग को बरकरार रखते हुए  "स्थिर आउटलुक " दिया गया है। उसके साथ ही इंडोनेशिया , थाईलैंड , सिंगापुर , मलेशिया और फिलीपींस को " पॉज़िटिव आउटलुक " दिया गया है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी और पूरी बीजेपी शोर मचा रहे हैं की पूरी दुनिया हमारी तरफ देख रही है। केवल हम ही दुनिया में सबसे आकर्षक निवेश स्थान हैं। लेकिन मूडीज की रिपोर्ट इसकी पुष्टि नही करती। भक्तों को ये बात बुरी लग सकती है।
             जब हमारे देश के प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं तो वहां के लिए कुछ तोहफे ले जाते हैं। वहां के प्रधानमंत्री और दूसरे लोग भी हमारे प्रधानमंत्री को तोहफे देते हैं। ये एक सामान्य शिष्टाचार है जो पूरी दुनिया में होता है। इन तोहफों में हमारे देश की कोई कलाकृति , कोई शाल या हाथ की बनाई हुई वस्तुएं होती हैं जो किसी ना किसी रूप में हमारी संस्कृति से जुडी होती हैं।
               लेकिन अभी अभी ये पता चला है की प्रधानमंत्री अपनी सिंगापुर यात्रा के दौरान हमारे देश के मुनाफे में चलते हुए दो एयरपोर्ट सिंगापुर की एक कम्पनी को तोहफे में दे आये।

Sunday, December 13, 2015

Opinion -- राष्ट्र प्रेम V/s राष्ट्रवाद

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है की राष्ट्रीयता और युद्ध एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। राष्ट्रीयता से उनका मतलब राष्ट्रवाद है। अति राष्ट्रवाद अमानवीय और खतरनाक होता है। यही राष्ट्रवाद दो देशों के बीच युद्ध की स्थिति पैदा करता है। यही राष्ट्रवाद एक ही देश के दो समुदायों के बीच संघर्ष और दुश्मनी भी पैदा करता है। एक बात जो सबसे महत्त्वपूर्ण है वो ये की ये राष्ट्रवाद किसी भी देश के लोगों का किसी भी रूप में भला नही करता। राष्ट्रवाद कभी भी राष्ट्रप्रेम नही होता बल्कि एक सीमा के बाद तो ये दोनों एक दूसरे के विरोधी होते हैं।
                  जो लोग दिमागी रूप से इस राष्ट्रवाद के शिकार होते हैं वो अनजाने में ही देश को नुकशान पहुंचाते रहते हैं।
              मशहूर लेखक चार्ल्स द गाल ने भी कहा है की, " अगर किसी के मन में अपने लोगों के प्रति प्रेम होता है तो ये राष्ट्र प्रेम होता है और अपने लोगों को छोड़कर बाकि लोगों के प्रति नफरत होती है तो ये राष्ट्रवाद होता है। "
               एक और मशहूर लेखक जार्ज ऑरवेल ने भी लिखा है की, " देश भक्ति और राष्ट्रवाद एक दूसरे के विरोधी चीजें हैं। देश भक्ति का मतलब किसी स्थान विशेष और जीवन शैली को सर्वश्रेष्ठ समझने वाली भावना होती है लेकिन इस भावना का व्यक्ति अपनी भावना किसी पर थोपता नही है, जबकि राष्ट्रवाद की भावना रखने वाला आदमी दूसरों पर अपने विचारों को थोपता है और चाहता है की इसे ही बाकि लोग स्वीकार करें। "
                 अगर मामला दो देशों के बीच का होता है तो एक देशभक्त दूसरे देशों और स्थानो के देशभक्तों का सम्मान करता है लेकिन  राष्ट्रवादी उनके प्रति नफरत का भाव रखता है। जब ये राष्ट्रवाद उग्र रूप धारण करता है तो युद्ध को जन्म देता है।
                  इसमें सबसे दिलचस्प बात ये होती है की खुद को राष्ट्रवादी समझने वाला व्यक्ति अपने ही देश के कानूनों का सम्मान नही करता। वह करों और भुगतानों से संंबंधित कानूनो का उलंघन करता है। टैक्सों की चोरी को अपना अधिकार समझता है और इन्हे राष्ट्रवाद की परिभाषा से बाहर समझता है। वो सभी तरह के गैरकानूनी काम करते हुए भी अपने आप को राष्ट्रवादी समझता रह सकता है। जबकि एक देशभक्त देश के कानूनों का सम्मान करता है और किसी भी ऐसे काम से बचता है जिससे देश को नुकसान हो सकता हो।
                  किसी भी देश की सरकार और उसमे रहने वाले अलग अलग समूहों के बीच नीतियों और कार्यक्रमों को लेकर मतभेद हो सकते हैं। किसी भी देश के लोग बहुत बार अपनी ही देश की सरकार के खिलाफ आंदोलन करते हैं। सरकार और जनता की समझ में बड़ा फर्क हो सकता है। जैसे हमारे ही देश में कई मामलों पर सरकार और लोगों के बीच मतभेद हैं। आदिवासियों के इलाकों में बड़े उद्योगों और खदानों को लेकर सरकार और लोगों के बीच मतभेद हैं। कई जगहों पर ये मतभेद टकराव का रूप भी ले लेते हैं। सरकार इन मतभेदों को कुचलने के लिए दमन का सहारा लेती है। विरोध करने वाले समूहों पर देश विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाती है। लेकिन इसका ये मतलब कतई नही होता की ये जन समूह असल में देश विरोधी हैं। भूमि के सवाल पर किसानो और सरकार के बीच संघर्ष होता है। सरकार किसानो पर देश का विकास रोकने का आरोप लगाती है तो इसका ये मतलब भी कतई नही होता की ये किसान विकास विरोधी हैं। लेकिन एक राष्ट्रवादी बिना सोचे विचारे वही भाषा बोलता है जो सरकार बोलती है। और वो इन सब लोगों को देश द्रोही मानता है।
                    सबसे हास्यास्पद स्थिति तो तब पैदा होती है जब सरकार अपनी नीति पर पलटी मारती है। तब बेचारे इन राष्ट्रवादियों को भी पलटी मारनी पड़ती है।
                  इसलिए राष्ट्रवाद और देशभक्ति को एक ही चीज समझने की भूल नही करनी चाहिए।
                  

Saturday, December 12, 2015

Comment on News -- बुलेट ट्रेन का सपना और हमारी स्थिति

जापान के साथ बुलेट ट्रेन का जो करार हुआ है उसकी आलोचना करने वालों को टीवी चैनल और उस पर बैठे सरकारी विशेषज्ञ उन्हें विकास और रोजगार का हवाला देकर चुप करवा रहे हैं और ऐसा माहोल बना रहे हैं जैसे बुलेट ट्रेन के आते ही भारत जापान में बदल जायेगा। लेकिन हमारी असली स्थिति क्या है ?
                 रेलवे की हालत बहुत ही खराब है। उसकी पटरियां पुरानी हो चुकी हैं और उसके कई पुलों की उम्र तो निधारित समय से दुगना समय गुजार चुकी है। ट्रेनों के डब्बे पुराने हो चुके हैं और बहुत बार दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। पिछले दिनों जो रेल दुर्घटना हुई थी वो बगैर गार्ड के फाटक पर जीप के ट्रेन से टकराने की वजह से हुई थी। हमारे देश में अभी भी बिना चौकीदार की बहुत सी रेलवे फाटक हैं। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जो नया सिस्टम है उसको अभी हम सभी जगह नही लगा पा रहे हैं। अभी भी बहुत सी जगह छोटी लाइन है जिसे बड़ी लाइन में बदलना हमारे बजट से बाहर है। रेलवे सुरक्षा के लिए रेलवे सुरक्षा बल में बहुत सी जगह खाली हैं जिन्हे नही भरा जा रहा है। और रेल लाइनो का बिजलीकरण करने में तो हमे बहुत साल लगने वाले हैं।
                  पिछले साल का बजट हमारे रेल बजट के इतिहास का इकलौता ऐसा बजट था जिसमे एक भी नई योजना और एक भी नई ट्रेन की घोषणा नही की गयी थी। इसके लिए ये तर्क दिया गया था की अभी पिछली अधूरी और शुरू नही की गयी योजनाओं में बहुत काम बाकि है। इसलिए पहले उसे पूरा किया जायेगा और उसके बाद नई ट्रेन या योजनाएं घोषित की जाएँगी।
                  अब जब 98000 करोड़ की बुलेट ट्रेन योजना जापान से कर्जा लेकर शुरू की जा रही है तो क्या बाकि सभी योजनाएं पूरी हो चुकी हैं। ये सरकार हमेशा अपनी सुविधा के अनुसार अपने तर्क बदलती रही है। ये योजना अगर पूरी भी हो जाये तो भी इसका किराया इतना महंगा होगा की देश के 95 % लोगों की ओकात के बाहर होगा। अहमदाबाद से मुंबई तक की केवल 540 किलोमीटर की यात्रा के लिए 98000 करोड़ का खर्च एक बड़ा बोझ तो होगा ही साथ में एक क्षेत्रीय असंतुलन भी पैदा करेगा। इसकी लागत और इसकी कलेक्शन के बीच ऐसा ना हो की हर साल एयर इंडिया की तरह बजट से पैसा डालना पड़े।
                    जो लोग इस परियोजना से देश में रोजगार पैदा होने का तर्क दे रहे हैं उनसे मैं केवल इतना पूछना चाहता हूँ की अगर हमारी मौजूदा रेल की व्यवस्था सुधारने के लिए सामान का उत्पादन किया जाता तो क्या उससे रोजगार पैदा नही होता। जापान से कर्ज लेकर काम करना था तो वो उन क्षेत्रों में भी हो सकता था। बल्कि इससे ज्यादा रोजगार पैदा हो सकता था।
                      सपने देखना कोई बुरी बात नही है , लेकिन ओकात के बाहर के और अव्यवहारिक सपने देखना खतरनाक हो सकता है।

Friday, December 11, 2015

बीजेपी का दोहरा रुख, दोहरी बातें और दोहरा चरित्र

बीजेपी जब से सत्ता में आई है उसने अपनी पहले कही गयी कई बातों पर पलटी मारी है। जब तक ये बात केवल नारों और वायदों तक सिमित थी तब तक तो ठीक था और लोग केवल मजाक उड़ाकर चुप रह जाते थे। लेकिन जब ठीक इसी तरह का मामला कामकाज के दौरान भी सामने आने लगा तो उसका विरोध होने लगा। संसद का पिछला सत्र बीजेपी नेताओं के भृष्टाचार के मामले पर हंगामे की भेंट चढ़ गया और अब ये सत्र भी बिना कोई कामकाज किये समाप्ति की और है। बीजेपी के पलटी मारने के इतने उदाहरण सामने हैं की अब तो लोगों को उन पर आश्चर्य होना भी बंद हो गया है। जैसे -

पहले --- बीजेपी नेता पूरा सत्र हंगामे के द्वारा खत्म कर देते थे और कहते थे की संसद चलाना सरकार की जिम्मेदारी होती है और संसद का काम रोकना भी लोकतंत्र में विरोध का एक तरीका होता है।

अब -- बीजेपी नेता कहते हैं की संसद में काम रोकना देश के विकास को रोकने का प्रयास है और संसद चलाना सरकार और विपक्ष दोनों की बराबर की जिम्मेदारी होती है।

पहले -- जब भूमि बिल पर बीजेपी ने सरकार में आते ही पलटी मारी और इस पर जवाब में कहा की नई जरूरतों के अनुसार अपने विचारों में बदलाव करना कोई बुरी बात नही है।

अब -- GST बिल पर कांग्रेस द्वारा रक्खी गयी तीन मांगों पर वह कह रही है की ये मांगे तो कांग्रेस द्वारा पेश किये गए बिल में भी नही थी और अब कांग्रेस द्वारा अपने रुख में बदलाव लोगों के साथ धोखेबाजी है।

पहले -- कांग्रेस और विपक्ष के दूसरे नेताओं पर भृष्टाचार के आरोपों पर उसका कहना था की जब शिकायत मिली है तो जाँच करवाने में सरकार क्यों हिचक रही है। अगर कुछ गलत नही हुआ है तो अपने आप सामने आ जायेगा इसमें डरने की क्या बात है।

अब -- जब उसके नेताओं के भृष्टाचार की जाँच की मांग हो रही है तो उसका कहना है की अगर कोई पुख्ता सबूत विपक्ष के पास है तो उसे अदालत जाना चाहिए , केवल शिकायतों के आधार पर जाँच नही की जाएगी।

पहले -- जब पवन बंसल के भांजे किसी से पैसे लेते हुए पकड़े गए थे तो उसने कहा था की पवन बंसल को इस्तीफा देना चाहिए क्योंकि आखिर उनकी बिना पर ही तो उसके भांजे ने पैसा लिया होगा।

अब -- जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का साला पैसे लेते हुए पकड़ा गया तो बीजेपी का कहना है की कोई मुख्यमंत्री अपने सभी रिश्तेदारों की जिम्मेदारी कैसे ले सकता है।

पहले -- जब UPA सरकार पाकिस्तान के साथ  रही थी तो उसने ये कह कर उसका विरोध किया की जब तक सीमा पर गोलीबारी और पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों का समर्थन बंद नही किया जाता कोई बात नही होनी चाहिए।

अब -- जब सरकार कश्मीर पर भी बात करने को तैयार हो गयी है तो उसका कहना है की आखिर रास्ता तो बातचीत से ही निकलेगा।

                        इस तरह की पलटियां तो आप चाहे लगातार दो महीने लिखते रहें पूरी नही होंगी।

ओक्टुबर IIP के आंकड़े 9. 8 % और उनका विश्लेषण

ओक्टुबर IIP के आंकड़े 9. 8 % आये और उस पर इकोनॉमी में तेजी का दावा किया जा रहा है। लेकिन अगर इस आंकड़े को ठीक से देखा जाये तो पता चलता है की इसमें सारी बढ़ोतरी कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के उत्पादन में बढ़ोतरी की वजह से हुई है। पिछले साल अक्टूबर में कंज्यूमर ड्यूरेबल का आंकड़ा -4.6 % था और इस बार ये आंकड़ा 42.2  % पर है।
                    इसका एक मुख्य कारण ये है की इस साल दिवाली नवंबर के महीने में थी और दिवाली पर होने वाली कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का उत्पादन अक्टूबर के महीने में हुआ है। और उसकी तुलना पिछले साल के अक्टूबर से की जा रही है।
                     कुछ दिन पहले आये कोर-सेक्टर के आंकड़े कमजोर थे और किसी भी अर्थव्यवस्था में सुधार के असली संकेत कोर- सेक्टर यानि बिजली, स्टील और खान जैसी आधारभूत क्षेत्रों में सुधार से मिलते हैं। इसलिए अक्टूबर IIP  आंकड़ों से कोई स्थाई नतीजा निकालने से पहले अगले तीन-चार महीनो के आंकड़ों पर ध्यान रखने की जरूरत है।

Thursday, December 10, 2015

हरियाणा सरकार की चुनावी शर्तों पर उच्चत्तम न्यायालय का फैसला

आज देश  दो बड़े फैसले आये। एक फैसले में उच्चत्तम न्यायालय ने हरियाणा सरकार द्वारा स्थानीय निकाय  के चुनावों में लगाई गयी न्यूनतम शिक्षा व अन्य शर्तों के खिलाफ दायर याचिका को ख़ारिज कर दिया। इस फैसले के आने के बाद हरियाणा में लगभग 82 % लोग चुनाव लड़ने की योग्यता खो चुके हैं। अब ये लोग किसी भी स्थानीय निकाय का चुनाव नही लड़ सकते।
            अभी पिछले हफ्ते संसद में संविधान दिवस मनाया गया। उस अवसर पर बोलते हुए माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा था की सार्वभौमिक मताधिकार हमारे संविधान की सबसे बड़ी ताकत है और इसके बिना लोकतंत्र की कल्पना भी नही की जा सकती। उन्होंने बीजेपी शासित राज्यों में इस अधिकार को सिमित करने वाले नियम लागु करने की आलोचना करते हुए हरियाणा सरकार के इस कानून का विशेष तौर पर जिक्र किया था और इसे लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ बताया था।
              लेकिन उसके एक हफ्ते बाद ही उच्चत्तम न्यायालय द्वारा इस पर मुहर लगाना लोगों  आश्चर्य में डालने वाला है। पहले जब महिलाओं को मताधिकार प्राप्त नही था तब उस व्यवस्था के समर्थक भी ये तर्क देते थे की महिलाएं राजकाज के बारे में कम जानती हैं। कुछ देशों में जिनके पास सम्पत्ति नही होती थी तो उनको वोट डालने का अधिकार नही होता था। अब शिक्षा की कमी होने, घर में पक्का शौचालय ना होने और किसी बैंक का कर्ज बाकि होने पर चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया जा रहा है। ऐसा तो नही है की पिछला जमाना लौट रहा हो और देश के अनपढ़, गरीब, भूमिहीन, घरविहीन लोगों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर किया जा रहा हो।
                बाद में कोई सरकार फिर से सम्पत्ति के आधार पर वोट की कीमत तय कर सकती है। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है की एक ठेला लगाने वाले और मुकेश अम्बानी दोनों के वोट की कीमत एक जैसी हो।
               चार दिन पहले माननीय न्यायमूर्ति और उच्चत्तम न्यायालय के नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश महोदय ने देश की जनता को भरोसा देते हुए कहा था की जब तक स्वतंत्र न्यायपालिका है किसी को डरने की जरूरत नही है। लेकिन अब उसी उच्चत्तम न्यायालय ने एक राज्य के बहुमत  लोगों को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया।
                 देश में गरीब और शोषित लोगों के खिलाफ एक अनदेखी का भाव बढ़ रहा है। विकास के नाम पर ऐसे प्रोजैक्टों को मंजूर किया जा रहा है जिनसे बहुत बड़े पैमाने पर आदिवासियों और दूसरे लोगों का विस्थापन होता है। और उनके पुनर्वास के लिए कोई पुख्त योजना नही होती है। सालों से इस तरह के उजड़े हुए लोग अब भी सड़क पर जीवन गुजारने को मजबूर हैं।
                  इस दौरान ऐसे मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है जब  किसी उद्योग में हड़ताल होने पर न्यायालय तुरंत उस पर रोक लगा देता है। लेकिन देश में न्यूनतम वेतन लागु नही है ये न्यायालय की परेशानी नही है। जो लोग ये कहते हैं की न्यायालय भी वर्गीय शासन का हिस्सा होता है और निष्पक्ष न्यायालय जैसी कोई चीज वजूद में नही है क्या वो सही हैं ?
                     पिछले दिनों उपहार सिनेमा के फैसले के बाद जिन लोगों की ये धारणा बनी थी की पैसे वाले लोगों को सजा दिलाना मुश्किल होता जा रहा है आज सलमान खान के फैसले के बाद उनकी ये अवधारणा और मजबूत होगी।                  


Wednesday, December 9, 2015

तुम कैसे मर सकते हो -- विद्रोही --

तुमने कहा था की तुम्हारे मरने से पहले
जन-गण-मन अधिनायक मरेंगे
फिर भारत भाग्य विधाता मरेंगे
और तुम उसके बाद मरोगे
लेकिन ये कौन है
जो तुम्हारी मौत की खबर दे रहे  है
और
अगर तुम सचमुच मर गए
तो ये विरोध की आवाजें कहां से आ रही हैं
और कहां से आ रही हैं
विद्रोही गीतों की स्वरलहरी
तुम्हारी मौत की खबर देने वाले झूठे हैं
तुम पहले मर ही नही सकते
विद्रोही
तुमसे पहले जन-गण-मन अधिनायक मरेंगे
फिर भारत भाग्य विधाता मरेंगे
उसके बाद शायद
तुम्हारे मरने की जरूरत ही ना पड़े।

Comment and Question on news ---आखिर पैसा कहां गया ?

पिछले डेढ़ साल में मोदी सरकार ने जिन उपलब्धियों का दावा  किया है उनमे सबसे बड़ी उपलब्धि ये है की उसने भृष्टाचार रोककर और देश के संसाधनो के पारदर्शी नीलामी के द्वारा लाखों करोड़ रूपये देश की तिजोरी में डाले हैं। कुछ लोग इन घोषणाओं पर सवाल भी खड़े करते रहे हैं लेकिन सरकार अपने दावों पर अडिग रही है। ये दावे कुछ इस प्रकार हैं।
१. कोयला खदानों की नीलामी से 335000 करोड़ रुपया इकट्ठा करके देश की तिजोरी में डाला गया है। http://timesofindia.indiatimes.com/india/Smriti-Irani-hits-back-at-Sonias-hawa-baazi-jibe/articleshow/48871717.cms  

२. 2 G की नीलामी से करीब 150000 करोड़ रुपया देश के खजाने में डाला गया।
३.  दूसरे खनिज की खदानों की नीलामी का पैसा खजाने में डाला गया।

उसके बाद सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की नीलामी करके हजारों करोड़ रुपया इकट्ठा किया है। सरकार टैक्स की कमाई बढ़ने का दावा भी कर रही है। उसके बाद जो खर्चे की रिपोर्ट है वो इस प्रकार है।

१. मनरेगा में खर्च किये जाने वाले बजट में कटौती की गयी है।
२. बच्चों के दोपहर भोजन के खर्चे में कटौती की गयी है।
३. शिक्षा पर किये जाने वाले खर्चे में कटौती की गयी है।
४. स्वास्थ्य पर खर्च किये जाने वाले बजट में कटौती की गयी है।

इसके अलावा भी कई खर्चों में कटौती की गयी है। मैं कोई बजट का विश्लेषण नही कर रहा हूँ इसलिए सारे आंकड़े यहां देना जरूरी नही है। मैं केवल इस हफ्ते में आई दो खबरों पर सवाल करना चाहता हूँ।

१. सरकार ने खाद उत्पादन करने वाले उद्योगों को कह दिया है की उनकी सरकार की तरफ बकाया 40000 करोड़ रूपये का भुगतान करने की स्थिति में सरकार अभी नही है। इसलिए उन्हें इसके लिए इंतजार करना होगा।
२.  चुनाओं के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के लिए 1 लाख 65 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी। लेकिन अब खबर आई है की केंद्र ने बिहार में बनने वाली ग्रामीण सड़क योजना की फाइल ये कहकर लोटा दी की केंद्र इसके लिए अब 100 % रकम नही दे पायेगा और केवल 60 % रकम ही दे पायेगा।

मैं केवल ये पूछना चाहता हूँ की इतना पैसा आखिर कहां ? या तो सरकार पैसा इकट्ठा करने के झूठे दावे कर रही थी या फिर सरकार कुछ ऐसे खर्चों को छुपा रही है जिनको वो आम जनता को नही बताना चाहती। इस सवाल का जवाब दिया जाना चाहिए।

Tuesday, December 8, 2015

Vyang -- शज़िआ इल्मी से एक काल्पनिक इंटरव्यू

कल मुझे एकाएक ख्याल आया की दिल्ली की मौजूदा हालत पर आम आदमी पार्टी की भूतपूर्व और बीजेपी की अभूतपूर्व नेता शज़िआ इल्मी का इंटरव्यू लेना चाहिए। मैं ये सोच ही रहा था की एक चैनल पर मुझे शज़िआ इल्मी दिखाई दे गयी। लगे हाथ मैंने भी उनसे कुछ सवाल पूछ लिए। पूछे गए सवाल और उनके जवाब इस प्रकार हैं।

सवाल -- दिल्ली में प्रदूषण को ---------

जवाब -- ( मेरा सवाल बीच में काटकर ) दिल्ली की तो बात ही मत करो। यहां तो प्रदूषण से ऐसा लगता है की     जैसे हम गैस चैंबर में रह रहे हैं। लेकिन यहां तो अंधेर नगरी चोपट राजा है। यहां की सरकार को तो कुछ पड़ी नही है।

सवाल -- लेकिन में ये कह रहा था की दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए कारों के लिए ओड -ईवन का फार्मूला लागु करने की बात कहि है।

जवाब -- मैंने कहा न, की यहां तो अंधेर नगरी चोपट राजा वाली बात है। इस तरह आधी गाड़ियां बंद कर देने से लोगों को कितनी तकलीफ होगी क्या उसके बारे में किसी ने सोचा है ?

सवाल -- लेकिन सरकार का कहना है की वो पंद्रह दिन की ट्रायल पर ये फार्मूला लागु कर रही है। अगर इससे लोगों को तकलीफ हुई तो इसे वापिस ले लिया जायेगा।

जवाब -- मैंने कहा न , अंधेर नगरी चोपट राजा वाली बात है। अरे आपको खुद ही नही मालूम की आपका फार्मूला सही है या नही तो लागु क्या खाक करेंगे। कोई फार्मूला लागु करने के बाद उसे वापिस लेना कोई सरकार का काम थोड़ा होता है।

सवाल -- लेकिन कोई फार्मूला लागु करने के बाद अगर ये मालूम पड़ता है की ये सही नही है तो उसे वापिस लेने में क्या हर्ज है ?

जवाब -- हर्ज क्यों नही है। इससे सरकार की कमजोरी दिखाई देती है। हमने FTII में गजेन्द्र चौहान को नियुक्त किया, सारा देश जानता है की ये फैसला गलत था। हम भी जानते हैं। लेकिन क्या हमने इसे वापिस लिया ? इससे सरकार की कमजोरी दिखती है। लेकिन दिल्ली में तो अंधेर नगरी चोपट राजा वाली बात है।

सवाल -- तो क्या आप बताएंगी की दिल्ली की सरकार को क्या करना चाहिए ?

जवाब -- मैं क्यों बताउंगी ? हाँ लेकिन दिल्ली की सरकार को जनता के हित में काम करना चाहिए। आपको मालूम है की बच्चों की क्या हालत है , बूढ़े और बीमार लोगों की क्या हालत है ?

सवाल -- सरकार इसके लिए प्रदूषण इंडेक्स लाने की बात कर रही है। प्रदूषण ज्यादा होने पर चीन की तरह एक-दो दिन स्कूलों की छुट्टी की जा सकती है।

जवाब -- फिर व्ही अंधेर नगरी चोपट राजा  वाली बात। अगर स्कूलों की छुट्टी की जाएगी तो बच्चों को पढ़ाई का क्या होगा ? आपकी योजना ज्यादा जरूरी है या बच्चों की पढ़ाई ज्यादा जरूरी है ? ये जो कारखाने दिन रात धुआं उगलते हैं उनके लिए आपने क्या किया ?

सवाल -- सरकार का कहना है की वो एक हफ्ते के अंदर थर्मल पावर प्लांट बंद करने जा रही है। और बाकि उद्योगों के लिए सख्त नियम लेकर आ रही है।

जवाब -- अगर आप पावर प्लांट बंद कर देंगे तो उसके मजदूरों का क्या होगा ? और दिल्ली के प्रदूषण का बोझ कारखानो पर डालना कहां की समझदारी है। सरकार को दूसरे उपाय सोचने चाहियें।

सवाल -- लेकिन प्रदूषण के मुख्य जिम्मेदार तो वाहन और कारखाने ही हैं।

जवाब -- नही , उसके अलावा जो कारण हैं उनको खोजा जाना चाहिए और दूर किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नही होगा क्योकि यहां तो अंधेर नगरी चोपट राजा है।

उसके बाद मुझे चैनल वाले ने बाहर निकाल दिया। वरना वो मुझे प्रदूषण से मुक्ति का उपाय बताने ही वाली थी।

Comment -- नेशनल हेराल्ड, GST बिल, संसद और मीडिया

आज संसद में नेशनल हेराल्ड के मामले में कांग्रेस और बाकि विपक्षी पार्टियों के हंगामे के बाद हमारे कॉर्पोरेट क्षेत्र को बुखार हो आया। सेंसक्स 220 पॉइंट लुढ़क गया और सारे टीवी चैनलों पर इस पर लगातार बहस के कार्यक्रम दिखाए जाने लगे। इन कार्यक्रमों को देखने से पता चलता है की हमारे देश में केवल एक ही समस्या है और वो है GST बिल का पास ना होना। सभी टीवी चैनलों पर बहस करवाने वाले एंकरों को दूसरे किसी बिल का नाम भी याद नही था। उन्हें ये भी याद नही था की संसदीय कार्य मंत्रणा समिति के अनुसार आज किस बिल पर बहस होनी थी। सारे एंकर, और खासकर बिजनेस चैनलों के एंकर तो GST का स्यापा कर रहे थे। और इस प्रक्रिया में कांग्रेस के प्रवक्ताओं पर बरस रहे थे।
                    ये बार बार साबित हो चूका है की कॉर्पोरेट क्षेत्र और उसके टीवी चैनलों की केवल एक ही चिंता है की किसी भी तरह उनके हित सधने चाहियें बाकि देश चाहे भाड़ में जाये। मैं मुकेश अम्बानी के चैनल CNBC आवाज से ये उम्मीद तो नही करता की वो रिलांयस द्वारा ONGC की गैस चुराकर बेचने पर कार्यक्रम करेंगे, लेकिन इतनी उम्मीद तो कर ही सकता हूँ की वो संसद के सामने पेश दूसरे एकाध बिल का नाम भी ले ले। लेकिन इस बेशर्म मीडिया से तो इतनी उम्मीद भी बेमानी ही है।

Sunday, December 6, 2015

Comment -- जरूरतमंदों को लूटने की तिकड़में

चेन्नई में भयानक संकट के बाद सारी रेल और विमान सेवाएं ठप्प हो गयी तो इसका फायदा उठाने के लिए सभी प्राइवेट विमान सेवा देने वाली कम्पनियों ने अपने किरायों में कई गुना बढ़ौतरी कर दी। बंगलोर से दिल्ली का किराया 80000 रूपये कर दिया। प्राकृतिक आफत और जरूरत के समय लोगों को इस तरह लूटने की इजाजत केवल हमारे देश में ही है। जब ये समय निकल जायेगा तो शायद सरकार का कोई बयान लीपापोती के लिए आये।
              इस तरह की लूट केवल प्राइवेट कंपनियां ही करती हों ऐसा भी नही है। त्योहारों के समय जब रेल यात्रियों की संख्या बढ़ जाती है तो रेलवे हमेशा कुछ अतिरिक्त रेलगाडियां चलाता है। लेकिन इस सरकार के आने के बाद और एक अकाउंटेंट के रेल मंत्री बनाये जाने के बाद हमारा रेल मंत्रालय हररोज लोगों को लूटने के नए प्रयोग करता है। इन अतिरिक्त गाड़ियों का किराया इस तरह रक्खा गया है की आम यात्री तो इनमे यात्रा करने की सोच भी नही सकता। इनका किराया कभी-कभी तो हवाई जहाज के किराये से भी ज्यादा होता है।  आम लोगों को राहत देने की बजाय लूट के नए नए तरीके निकाले जाते हैं।
               पिछले दिनों में रेलवे ने कभी प्लेटफार्म टिकट को दुगना महंगा करके, कभी रिजर्वेशन कैंसल करने का चार्ज बढ़ाकर और अब बच्चों की सीट छीनकर हर वो तरीका अपनाया है जिससे लोगों की जेब काटी जा सके।
                इसलिए विपक्षी पार्टियों को इस लूट का सख्ती से विरोध करना चाहिए। और प्राकृतिक आपदा के समय लोगों को लूटने वालों के खिलाफ कार्यवाही की मांग करनी चाहिए।

Friday, December 4, 2015

Comment-- महिला के छूने से अपवित्र हुई शनि की मूर्ति को दूध से धोने का क्या फायदा ?

कई दिन पहले ये खबर आई की एक महिला ने शिगनापुर के शनि मंदिर में घुसकर शनि देव की मूर्ति पर तेल चढ़ा दिया। सदियों से इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। इस महिला द्वारा किये गए इस काम से मंदिर के प्रबंधन के अनुसार अपवित्र हो चुकी शनि की मूर्ति को फिर से पवित्र करने के लिए उसे दूध से धोया गया।
             हमारे देश में और भी सैंकड़ों मंदिर हैं जो महिला के प्रवेश से अपवित्र हो जाते हैं और उनमे भी अपवित्र हो गयी मूर्ति को दूध से धोकर पवित्र किया जाता है। इस पर मुझे एक सवाल पूछना है।
              मेरा सवाल ये है की दूध तो केवल मादा जानवर देते हैं जो की दूसरे शब्दों में महिला की श्रेणी में ही आते हैं। तो फिर एक महिला के छूने से अपवित्र हुई मूर्ति दूसरी मादा के दूध से धोने पर पवित्र कैसे हो जाती है। क्या हमारे धर्म के ठेकेदार महिला को मादा जानवर से भी नीचे का दर्जा देते हैं ?
               मैं ये चाहता हूँ की जब तक महिलाओं के छूने से मूर्तियां अपवित्र होती रहें, तब तक इन प्रबंधकों को किसी पुरुष पदार्थ का इस्तेमाल इन्हे शुद्ध करने में करना चाहिए और दूध के तो मंदिर प्रवेश पर ही पाबंदी लगा देनी चाहिए। फिर मुझे याद आया की अगर ये लोग मादा उत्पादों पर पाबंदी लगाते हैं तो इनके दिए जलने बंद हो जायेंगे और शायद इन्हे याद आ जाये की ये खुद भी एक महिला या मादा की ही उपज हैं।

Thursday, December 3, 2015

Vyang -- दाऊद की सम्पत्ती और भक्तों की परीक्षा

पिछले दिनों ये खबर अख़बार में पढ़ी की मुंबई में सरकार दाऊद की  संपत्ति की नीलामी करने वाली है। इस खबर में ये भी लिखा था की सरकार कई बार इस सम्पत्ति की नीलामी की कोशिश कर चुकी है लेकिन कोई बोली लगाने को तैयार ही नही है। और पहले दिल्ली के दो लोगों ने दाऊद की एक संपत्ति की बोली लगाकर खरीद की थी उन्हें अब तक उसका कब्जा नही मिला है।
                   मुझे लगता है की ये खबर झूठी है और भारत को बदनाम करने के लिए छापी गयी है। इसमें भारत विरोध की बू साफ नजर आ रही है। जिन लोगों ने ये खबर छापी है उनको हमारे देश के बारे में कुछ भी जानकारी नही है।
                    हमारे यहां इस तरह के देश भक्तों की बहुत बड़ी तादाद है जो लोगों को हर रोज पाकिस्तान भेजते रहते हैं। ये लोग हर रोज दावा करते हैं की बस अभी कुछ दिन की ही बात है जब हमारी सरकार दाऊद को घसीट कर भारत लाने  वाली है। हमारे प्रधानमंत्री जिस देश में भी जाते हैं, वहां की सरकार को दाऊद की सम्पत्ति जब्त करने का आग्रह करना नही भूलते। फिर ऐसा कैसे हो सकता है की कोई दाऊद की सम्पत्ति की बोली लगाने से डर महसूस करे और वो भी मुंबई में।
                     मुंबई वो शहर है जहां केवल पाकिस्तान का नाम लेने पर मुंह काला किया जा सकता है। वहां की पार्टी अपने झंडे में शेर का फोटो लगाती है। वहां दाऊद की तो बात छोडो पाकिस्तान के किर्केटर और कलाकार नही घुस सकते और अख़बार कहता है की वहां दाऊद की सम्पत्ति की नीलामी नही हो पा रही।
                     लोगों को और अख़बार को शायद मालूम नही है की हमारे देश में वायु सेना, थल सेना, नौ-सेना के आलावा राष्ट्र सेना और हिन्दू सेना भी है। ये दोनों सेना हर रोज किसी कलाकार की फिल्म पर बैन लगा देते हैं और फिर सिनेमा हाल में तोड़फोड़ कर देते हैं। फिर किसी का सर काटने की धमकी दे देते हैं और मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवाते हैं। इन लोगों को मलाल है की 1971 के युद्ध के समय वो नही थे वरना पाकिस्तान का नामोनिशान मिट जाता। और उनके शहर में कोई ये कहे की दाऊद की सम्पत्ति की बोली नही लग रही तो ये कैसे हो सकता है। इसलिए मैं मानता हूँ की ये खबर झूठ है
                     इस खबर के झूठे होने का दूसरा प्रमाण ये है देश की दोनों बड़ी राष्ट्रवादी पार्टियां वहां सरकार में हैं। दोनों में कौन ज्यादा राष्ट्रवादी है ये अभी साबित नही हुआ है लेकिन ये साबित हो चूका है कि इनके आलावा और कोई राष्ट्रवादी नही है। आप अगर सोशल मिडिया से थोड़ा बहुत संबंध रखते हैं तो आपको इनके भक्तों की एक पूरी ब्रिगेड वहां मिल जाएगी जो आपको साबित कर देगी की इनके आलावा ना तो कोई बहादुर है और ना ही कोई देशभक्त है। ऐसी पार्टियों के रहते मुंबई में दाऊद की सम्पत्ति का होना ही अपने आप में शर्म की बात है और उसका कोई खरीददार ना मिलना तो डूब मरने की बात है। मैं तो कहता हूँ की हे ( देश ) भक्तो उठो और साबित कर दो की तुम्हारे सामने दाऊद की की ओकात नही है।
                      लेकिन फिर मुझे याद आता है की जो लोग जवाहरलाल नेहरू को इस बात के लिए गालियां देते थे की 1947 में अगर उसने सेना को इजाजत दे दी होती तो पूरा कश्मीर भारत का होता। बाद में जब वो लोग खुद सरकार में आये तो कारगिल युद्ध में LOC पार करने की हिम्मत भी नही जुटा पाये।
                       इसलिए मुझे इन राष्ट्रवादी सेनाओं के राष्ट्रवाद पर शक होता है लेकिन उनकी हिम्मत पर मुझे कोई शक नही है। क्योंकि हिम्मत वाला आदमी इस तरह के टुच्चे काम नही करता जिस तरह के काम ये लोग करते हैं। किसी भी साधारण आदमी को गिरोह बना कर पीट देना और मिडिया में गाली गलोच कर देना हिम्मत की निशानी नही होती।  
                          इसलिए मैं इनका आह्वान करता हूँ, की हे राष्ट्र सेना और हिन्दू सेना के वीरो उठो, और दाऊद की सम्पत्तिओं पर कब्जा कर लो। और उसके बाद ललकार कर कहो की हाँ, हमने किया है कब्जा और दाऊद और उसके गुर्गों में अगर हिम्मत है तो हमारा कुछ बिगाड़ कर दिखाए।                   

 भक्तों की परीक्षा 

Tuesday, December 1, 2015

RBI द्वारा बैंक रेट और जीडीपी दर में वृद्धि की संभावना में कोई बदलाव नही

RBI द्वारा आज अपनी तिमाही मुद्रा नीति में बिना कोई बदलाव किये सभी तरह के बैंक रेट को स्थिर रक्खा गया। RBI द्वारा घोषित तिमाही समीक्षा के मुख्य बिंदु निम्न प्रकार से हैं।

१.  रेपो रेट बिना किसी बदलाव के 6.75 % ही रक्खा गया। उसी तरह रिवर्स रेपो रेट भी पिछली दर 5.75 % पर स्थिर रक्खा गया।

२.  RBI ने 2015 -16 के लिए जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को भी 7.4 % पर स्थिर रक्खा गया है। RBI का मानना है की अर्थ व्यवस्था में वृद्धि अभी बहुत ही शुरुआती दौर में है। और इसकी बढ़ोतरी दर्शाने वाले चिन्ह अभी मिक्स संदेश दे रहे हैं।

३.  ब्याज दरों में कटौती ना करने के एक कारण के बारे में उन्होंने कहा की RBI द्वारा की गयी कटौती को अभी बैंको ने ग्राहकों को पास-ओन नही किया है।

४.  RBI ने कहा है की अनियमित मॉनसून के कारण कृषि विकास पर बहुत दबाव है और उसमे ज्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद नही है। और इसी वजह से ग्रामीण मांग में कमजोरी की संभावना है।