Wednesday, December 16, 2015

Opinion -- क्या बीजेपी संसद नही चलाना चाहती ?

संसद का पूरा पिछला सत्र और लगभग पूरा होने को आया ये सत्र भी राज्य सभा में लगभग बिना कामकाज के समाप्त होने जा रहा है। बीजेपी इसके लिए विपक्ष और विशेषकर कांग्रेस के हंगामे को जिम्मेदार बता रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस इसे बीजेपी द्वारा जानबूझ कर की गयी उकसावे की कार्यवाहियों का नतीजा बता रही है। एक GST बिल जरूर ऐसा था जिस पर विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच गहरे मतभेद हैं लेकिन उस बिल के तो पेश होने का समय ही नही आया। जिन बिलों पर सरकार और विपक्ष के बीच बहुत ज्यादा मतभेद होते हैं उन बिलों को पेश होने से रोकने के लिए हंगामे की पुरानी परम्परा रही है। लेकिन उसके अलावा कुछ दूसरे तात्कालिक कारण भी होते हैं जिनकी वजह से संसद में हंगामा होता है।
                    इस तरह के कारणों के पैदा होने पर सरकार की फ्लोर-मैनेजमेंट उस पर कोई ना कोई रास्ता निकाल कर संसद की कार्यवाही को चलाते हैं ताकि सरकारी कामकाज को निपटाया सके। अगर संसदीय कार्य मंत्री और उनके उनके साथी ये काम नही कर पाते तो सरकार के बड़े नेता और प्रधानमंत्री विपक्ष के नेताओं से बातचीत करके रास्ता निकालते हैं। अब तक यही परम्परा रही है। लेकिन बीजेपी सरकार ने इस परम्परा को समाप्त कर दिया। अगर विपक्ष किसी मामले पर संसद में हंगामा करता है तो बीजेपी के सांसद सामने से हंगामा करते हैं। विपक्ष के नेताओं पर फिकरे कसे जाते हैं और आरोप लगाये जाते हैं।  तरह बीच का रास्ता निकलने की हर संभावना को समाप्त कर दिया जाता है।
                      अब ये तो नही माना जा सकता की बीजेपी के नेताओं को इस बात का पता नही है। इसका मतलब ये है की खुद बीजेपी नही चाहती की संसद चले। इस दौरान कुछ घटनाएँ तो एकदम आश्चर्य पैदा करने वाली हैं। केजरीवाल के दफ्तर पर सीबीआई का छापा और अरुणाचल में गवर्नर द्वारा कांग्रेस की सरकार को अस्थिर करने की कार्यवाही इसी तरह की घटनाएँ हैं। ठीक उस समय ये कार्यवाही करना जब संसद में महत्त्वपूर्ण बिलों पर विपक्ष के सहयोग की सख्त जरूरत है सरकार की संसद को चलाने की अनिच्छा को ही दिखाता है।
                     दूसरा मामला GST बिल पर मतभेदों का है। सरकार ने एक बार कांग्रेस को छोड़कर किसी भी विपक्षी नेता से इस बारे में बात नही की। कांग्रेस के साथ बातचीत के बाद इस बिल पर सरकार की तरफ से कोई रास्ता निकलने की कोशिश नही की गयी। इतना ही नही, कांग्रेस द्वारा मोदीजी के साथ मीटिंग में अपना पक्ष रखे जाने के 12 दिन बाद तक सरकार ने अपनी राय तक नही बताई, बस मीडिया में अपील करते रहे ताकि लोगों को दिखाया जा सके की सरकार कोशिश कर रही है। उसके बाद जब कांग्रेस ने मीडिया में इस बात को रखा तब सरकार ने कांग्रेस को अपना पक्ष भेजा। इस पर कांग्रेस के एतराज और उस पर सरकार का रिस्पॉन्स इस प्रकार है।
१. कांग्रेस ने GST बिल में टैक्स की अधिकतम सीमा 18 % रखे जाने और इसे बिल में शामिल करने की मांग की।
सरकार ने इसके जवाब में कहा की इसे बिल में नही रखा जा सकता।
२. कांग्रेस ने अंतर राजीय व्यपार पर १% अतिरिक्त टैक्स को समाप्त करने की मांग की।
 सरकार ने इसके जवाब में कहा की उसे इस पर गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से बात करनी पड़ेगी और सरकार अपनी तरफ से इसे नही हटा सकती।
३. कांग्रेस ने विवाद की स्थिति में 75% की सदस्य संख्या के फैसले की मांग रखी।
सरकार ने इस पर असहमति जाहिर की।

            इसका सीधा सीधा मतलब ये हुआ की सरकार कुछ भी मानने के लिए तैयार नही है। अब बताइये इस पर रास्ता निकालने के लिए सरकार ने क्या किया ?
            इसलिए अब लोगों की ये राय बनने लगी है की खुद बीजेपी नही चाहती की संसद चले।

1 comment:

  1. मुझे नहीं लगता के आपके बताए सुझाव मोदी सरकार अपनाती तो संसद सुचारू रूप से चलती।कांग्रेस हर उस बात का विरोध कर रही है जो सरकार करना चाहती है।विपक्ष में कितने ऐसे नेता है जो व्यक्तिगत लाभ से ज्यादा कुछ सोच सकते हैं।नेशनल हेराल्ड,असहिष्णुता,और राहुल गांधी के मन्दिर में रोके जाने से रोके जाने जैसे मुद्दे तो कुछेक मिनटों में ही झूठे निकल गए क्या राहुल,सोनिया,खड़गे जैसे कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के नेता ऐसा व्यवहार करके देश का नुकसान नहीं कर रहे?

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