Monday, October 17, 2016

भारत, आतंकवाद और ब्रिक्स सम्मेलन


           
  सार्क सम्मेलन को रदद् करवा देने में कामयाब होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी इस बात के लिए पूरे जोर से कोशिश कर रहे थे की ब्रिक्स भी पाकिस्तान की आतंकवाद के मामले पर निंदा करे। प्रधानमंत्री मोदी की ये भी कोशिश थी की सम्मेलन के बाद जारी घोषणा में पाकिस्तान का स्पष्ट रूप से जिक्र हो और ब्रिक्स मोदीजी की लाइन को समर्थन दे।
                   लेकिन ऐसा नही हुआ। ब्रिक्स में शामिल देशों ने पाकिस्तान का सीधा तो क्या परोक्ष रूप से भी जिक्र करने से इंकार कर दिया। भारत के महत्त्वपूर्ण सहयोगी और ब्रिक्स सम्मेलन के समानांतर हथियारों की खरीद के बड़े समझौते के बावजूद रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने समापन सम्बोधन में आतंकवाद का जिक्र तक नही किया। जहां तक चीन का सवाल है तो उसने आतंकवाद के मामले पर वही लाइन ली जो पाकिस्तान लेता रहा है। चीन के राष्ट्रपति ने भारत के लिए परोक्ष रूप से कश्मीर के सवाल पर कहा की सदस्य देशों को आतंकवाद के लक्षणों और परिणामो के साथ साथ उसके बुनियादी कारणों पर भी ध्यान देना होगा। ये वही बात है जो पाकिस्तान कहता रहा है की कश्मीर में आतंकवाद का बुनियादी कारण जो उसके हिसाब से कश्मीरी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार से जुड़ा है, को एड्रेस किये बिना आतंकवाद को खत्म करना मुश्किल है।
                    यहां तक की अंतिम घोषणा में "सीमापार आतंकवाद" शब्द तक का इस्तेमाल नही है। इसकी जगह केवल इतना शामिल किया गया है की किसी भी देश को आतंकवाद के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल की इजाजत नही देनी चाहिए। भारत में सीमापार आतंकवाद के लिए जिम्मेदार दो जाने माने संगठन लश्करे-तैयबा और जैसे-मोहम्मद के नाम को भी इसमें शामिल नही किया गया। जिन सगठनो के नाम का जिक्र इस घोषणा में किया गया है वो हैं ISIS और अल-नुसरा। इस दौरान के घटनाक्रम के बाद मोदीजी को विदेश नीति में किये गए नए और आक्रामक बदलावों की सीमा समझ में आ जानी चाहिए।
                       इसके अलावा भी मोदीजी प्रधानमंत्री बनने के तुरन्त बाद से सयुंक्त राष्ट्र संघ की मीटिंगों में भी ये मुद्दा उठा चुके हैं की आतंकवाद को परिभाषित किया जाये। वो बार बार सयुंक्त राष्ट्र संघ से इसका आग्रह करते रहे हैं और इसके ना किये जाने पर सयुंक्त राष्ट्र संघ की आलोचना भी कर चुके हैं। आज के हालात में दुनिया के लगभग सभी देश कम या ज्यादा आतंकवाद से पीड़ित हैं। फिर भी ये विश्व संस्था इसकी परिभाषा तय क्यों नही कर रही है तो इसका केवल एक ही कारण है की इसकी परिभाषा सम्भव नही है। आतंकवाद ऐसा विषय है जिस पर हर देश और धार्मिक और जातीय समूहों के अलग अलग विचार और समझ हैं, जिन्हें एक परिभाषा में नही बाँधा जा सकता।
                       जैसे अगर हम केवल भारत के अंदर का उदाहरण ही लें तो इस पर गहरे मतभेद हैं। अगर आतंक फैला कर अपनी बात मनवाने की कोशिश को आतंकवाद माना जाये तो बहुत लोगों के मत अनुसार संघ परिवार भी आतंकवाद की श्रेणी में आ जायेगा। संघ से जुड़े कई संगठनों पर दूसरे धर्म और दलित जातियों पर हमले और आतंक का आरोप लगता रहा है। अगर बम विस्फोटों और हत्याओं के जिम्मेदार लोगों और संगठनों को आतंकी संगठन माना जाये तो कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर को भी स्पष्ट रूप से आतंकी घोषित करना पड़ेगा और मोदीजी को ये बताना पड़ेगा की भारतीय कानून के द्वारा ही इन लोगों पर मुकदमा चलने के बावजूद और प्रथम द्रष्टया सबूत होने के बावजूद संघ और सरकार के मंत्री इनकी तरफदारी क्यों करते हैं। हम पाकिस्तान को हररोज इस बात के लिए कोसते हैं आतंकवाद अच्छा या बुरा नही होता और केवल आतंकवाद होता है, लेकिन खुद एक समुदाय से जुड़े लोगों को आतंकी नही मानते, माने वो अच्छा आतंकवाद है।
                      इसके अलावा दूसरे कई संगठन हैं जिन पर आतंकी संगठन होने के बारे में मतभेद हैं। एक पक्ष नक्सलवादियों को आतंकवादी नही मानता, बल्कि उन्हें सत्ता द्वारा मजबूर किये गए लोगों का संगठन मानता है। इसी तरह उत्तर-पूर्व के कुछ संगठनों को जिनमे उल्फा और नागा पीपुल्स फ्रंट जैसे संगठन हैं, उन्हें वहां के बहुत से लोग आतंकवादी नही मानते।
                     अगर दुनिया के पैमाने पर स्थिति को देखा जाये तो स्थिति और भी खराब है। लीबिया और इराक में सरकार के खिलाफ लड़ने वाले लोगों को अमेरिका और उसके दोस्त आतंकवादी नही मानते थे और यमन की सरकार के खिलाफ लड़ने वाले विद्रोहियों को अमेरिका आतंकवादी मानता है। सीरिया में सरकार के खिलाफ लड़ने वाले अमेरिका और सऊदी अरब  समर्थक दस्तों को सीरिया और रूस आतंकवादी मानते हैं और अमेरिका नही मानता। यहां तक की खबरें हैं की अमेरिका ने उन देशों के खिलाफ, जहां अमेरिकी समर्थक सरकारें नही हैं,और उनका तख्त पलटने के लिए अल-कायदा और ISIS जैसे संगठनों को भी हथियार और सहायता उपलब्ध करवाई है। यही अमेरिका है जिसने पाकिस्तान के साथ मिलकर रूस को अफगानिस्तान से निकालने के लिए तालिबान को खड़ा किया था। आज जब उसका काम पूरा हो गया तो वही उनके खिलाफ लड़ रहा है और पाकिस्तान से चाहता है की वो इसमें उसकी मदद करे। अमेरिका के कहने पर पाकिस्तान ने तालिबान को खड़ा करने के लिए जिन मदरसों की स्थापना की, धर्म के नाम पर उनमे जनून पैदा किया और इस लड़ाई को जिहाद का नाम दिया,वो पाकिस्तान कैसे एक झटके में उसे खत्म कर सकता है।
                           इसके अलावा फिलिस्तीन के मामले पर इसराइल के तोर तरीके किसी आतंकवादी संगठन से कम नही हैं। जिस तरह इसराइल की सेना फिलिस्तीन में छोटे छोटे बच्चों तक का कत्ल कर रही है उसे देखते हुए दुनिया के बहुत से लोग उसे आतंकवादी सरकार मानते हैं। पूरे लेटिन अमेरिका में जिस तरह के संगठनों को वहां की चुनी हुई सरकारों के खिलाफ, अपने हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी सरकार समर्थन दे रही है उसके बाद तो ये असम्भव हो जाता है की आतंकवाद की कोई वैश्विक परिभाषा दी जा सकती है।
                     इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद की कोई एक परिभाषा कभी तय नही होगी, और हर देश को दूसरों का मुंह ताकना छोड़कर अपनी सुरक्षा और अपने क्षेत्र में शांति स्थापना के प्रयास खुद करने होंगे।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.