राजनीती में अपने को ज्यादा कुशल और तेजी से काम करने वाला दिखाना आम बात है। जब कोई आदमी या पार्टी खुद को दूसरों से ऊँचा दिखाने की कोशिश करती है तो या तो उसे अपनी उपलब्धियां बतानी पड़ती हैं या फिर अगर उसकी उपलब्धियां बहुत ही ओसत दर्जे की हैं या फिर नही के बराबर हैं, तो उसे दूसरों को छोटा दिखाना पड़ता है।
जब दूसरे को छोटा दिखाना होता है तो इस तरह की चीजें ढूंढी जाती हैं जो खुद के अनुकूल हों। इस क्रम में कई बार दूसरों को नीचा भी दिखाना पड़ता है। मौजूद सरकार अपने शुरू के दिनों से ही इस प्रोग्राम पर चल रही हैं। उसे मालूम है की जिस तरह के भारी भरकम वायदे करके वो सत्ता में आयी है उन्हें पूरा करना उसके बस से बाहर की बात है।
इसलिए उसने पहले दिन से ही " सबसे पहले " का राग अलापना शुरू कर दिया था। प्रधानमंत्री किसी देश की यात्रा पर जाते हैं तो सबसे पहले जाने वाले प्रधानमंत्री हैं, कोई समझौता करते हैं तो सबसे पहले करने वाले प्रधानमंत्री हैं, सेल्फी लेते हैं तो सबसे पहले लेने वाले प्रधानमंत्री हैं। इस होड़ में पूरा भांड मीडिया जोर जोर से चिल्लाकर सबसे पहले की रट लगाए रहता है।
अब इस रट में सेना को भी लपेट लिया गया है। जब सर्जिकल स्ट्राइक की खबर आयी तो ये खबरें भी आने लगी की इस तरह के सर्जिकल स्ट्राइक हमारी सेना पहले भी कई बार कर चुकी है। चूँकि दूसरे देश की सीमा में इस तरह की कार्यवाही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध या आलोचना को आमन्त्रित कर सकती है और उस देश के साथ सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं, इसलिए इस तरह की चीजों को सार्वजनिक नही किया जाता। दो देशो के बीच बहुत से ऐसे कूटनीतिक और रणनीतिक फैसले होते हैं जिन्हें आम लोगों के सामने नही लाया जाता। इसलिए पहले कभी इसके बारे में मीडिया को नही बताया गया। इस तरह की खबरें सार्वजनिक होने पर वहां के लोगों में गुस्सा फूट सकता है और सरकार पर बदले की कार्यवाही का दबाव बढ़ सकता है जैसा अब पाकिस्तान के साथ हो रहा है। पाकिस्तान के लाख इंकार करने के बावजूद वहां बदले की भावना बढ़ रही है और जो लोग पहले आतंकवादियों के खिलाफ थे वो भी इस कार्यवाही से नाराज हैं। इस घटना को मीडिया में उछालने से सेना को कोई मदद नही मिली केवल बीजेपी के गिरते हुए ग्राफ को सम्भालने में मदद मिली। इसलिए जानकार लोग इसे राजनैतिक फैसला बता रहे हैं। पूर्व सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने भी इसे सेना की जरूरत के लिए नही बल्कि बीजेपी की जरूरत के लिए लिया हुआ फैसला बताया है।
लेकिन हमारा मुद्दा ये था की खुद को बड़ा दिखाने की होड़ में बीजेपी ने पहले किसी भी सर्जिकल स्ट्राइक से इंकार कर दिया। रक्षा मंत्री ने कहा की सेना ने पहले कभी भी सर्जिकल स्ट्राइक नही किया। अपने बड़बोलेपन में वो ये भी कह गए की मेरे आने के बाद सेना को अपनी ताकत का पता चला। विपक्ष को नीचा दिखने की होड़ में वो सेना को भी नीचा दिखा गए। अब अगर विपक्ष इस स्ट्राइक के नही होने की बात करता है तो उसे गद्दार और पाकिस्तान का समर्थक बताया जाता है और बीजेपी पिछले किसी स्ट्राइक से इंकार करती है तो भी देशभक्त बनी रहती है।
इस तरह हर मामले में सबसे पहले का नारा पता नही किस किस को बेइज्जत करेगा। यहां तक की उसने सेना को भी नही बख्सा।
जब दूसरे को छोटा दिखाना होता है तो इस तरह की चीजें ढूंढी जाती हैं जो खुद के अनुकूल हों। इस क्रम में कई बार दूसरों को नीचा भी दिखाना पड़ता है। मौजूद सरकार अपने शुरू के दिनों से ही इस प्रोग्राम पर चल रही हैं। उसे मालूम है की जिस तरह के भारी भरकम वायदे करके वो सत्ता में आयी है उन्हें पूरा करना उसके बस से बाहर की बात है।
इसलिए उसने पहले दिन से ही " सबसे पहले " का राग अलापना शुरू कर दिया था। प्रधानमंत्री किसी देश की यात्रा पर जाते हैं तो सबसे पहले जाने वाले प्रधानमंत्री हैं, कोई समझौता करते हैं तो सबसे पहले करने वाले प्रधानमंत्री हैं, सेल्फी लेते हैं तो सबसे पहले लेने वाले प्रधानमंत्री हैं। इस होड़ में पूरा भांड मीडिया जोर जोर से चिल्लाकर सबसे पहले की रट लगाए रहता है।
अब इस रट में सेना को भी लपेट लिया गया है। जब सर्जिकल स्ट्राइक की खबर आयी तो ये खबरें भी आने लगी की इस तरह के सर्जिकल स्ट्राइक हमारी सेना पहले भी कई बार कर चुकी है। चूँकि दूसरे देश की सीमा में इस तरह की कार्यवाही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध या आलोचना को आमन्त्रित कर सकती है और उस देश के साथ सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं, इसलिए इस तरह की चीजों को सार्वजनिक नही किया जाता। दो देशो के बीच बहुत से ऐसे कूटनीतिक और रणनीतिक फैसले होते हैं जिन्हें आम लोगों के सामने नही लाया जाता। इसलिए पहले कभी इसके बारे में मीडिया को नही बताया गया। इस तरह की खबरें सार्वजनिक होने पर वहां के लोगों में गुस्सा फूट सकता है और सरकार पर बदले की कार्यवाही का दबाव बढ़ सकता है जैसा अब पाकिस्तान के साथ हो रहा है। पाकिस्तान के लाख इंकार करने के बावजूद वहां बदले की भावना बढ़ रही है और जो लोग पहले आतंकवादियों के खिलाफ थे वो भी इस कार्यवाही से नाराज हैं। इस घटना को मीडिया में उछालने से सेना को कोई मदद नही मिली केवल बीजेपी के गिरते हुए ग्राफ को सम्भालने में मदद मिली। इसलिए जानकार लोग इसे राजनैतिक फैसला बता रहे हैं। पूर्व सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने भी इसे सेना की जरूरत के लिए नही बल्कि बीजेपी की जरूरत के लिए लिया हुआ फैसला बताया है।
लेकिन हमारा मुद्दा ये था की खुद को बड़ा दिखाने की होड़ में बीजेपी ने पहले किसी भी सर्जिकल स्ट्राइक से इंकार कर दिया। रक्षा मंत्री ने कहा की सेना ने पहले कभी भी सर्जिकल स्ट्राइक नही किया। अपने बड़बोलेपन में वो ये भी कह गए की मेरे आने के बाद सेना को अपनी ताकत का पता चला। विपक्ष को नीचा दिखने की होड़ में वो सेना को भी नीचा दिखा गए। अब अगर विपक्ष इस स्ट्राइक के नही होने की बात करता है तो उसे गद्दार और पाकिस्तान का समर्थक बताया जाता है और बीजेपी पिछले किसी स्ट्राइक से इंकार करती है तो भी देशभक्त बनी रहती है।
इस तरह हर मामले में सबसे पहले का नारा पता नही किस किस को बेइज्जत करेगा। यहां तक की उसने सेना को भी नही बख्सा।
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