सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इस सरकार के मंत्रियों और पार्टी के कार्यकर्ताओं ने खुद अपनी पीठ इतनी थपथपाई है की अब उसमे से खून निकलने लगा है। और इन पीठ थपथपाने वालों का नेतृत्व जाहिर है की रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर कर रहे हैं। इस होड़ में उन्होंने दो बातें ऐसी कही हैं जो सेना के लिए अपमान की श्रेणी में आती हैं। सेना की इस कामयाबी को राजनैतिक तौर पर भुनाने और वोटों की फसल काटने के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश में, जहां चुनाव निकट है, जिला स्तर पर अपने सम्मान समारोह रखवा लिए हैं जो आगे जाकर तहसील स्तर तक जा सकते हैं। लेकिन उन्होंने कहा," मेरे रक्षा मंत्री बनने से पहले सेना ने ६५ साल में कुछ नही किया और मैंने सेना को हनुमान की तरह उसका भुला हुआ बल याद दिलाया। " इस बयान को अनदेखा किया जा सकता था अगर इसे देने वाला देश का रक्षा मंत्री नही होता। इसलिए मैं इस पर कुछ बातें कहना अपना फर्ज समझता हूँ।
आदरणीय मंत्रीजी, क्या आपको मालूम है की अब तक सेना को कितने परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र दिए गए हैं ? आपको ये तो मालूम होगा की ये चक्र सैनिकों को युद्ध में उनकी वीरता और अदम्य साहस के लिए दिए जाते हैं और ये कोई पदम् पुरस्कार नही हैं जो अपनी पार्टी के नालायक लोगों को भी बांटे जा सकते हैं बगैर किसी योगदान के। इसके अलावा सीमा पर अदम्य साहस और शौर्य की पता नही कितनी कहानियां दफन हैं क्योंकि उन्हें देख कर सुनाने वाला कोई जिन्दा नही बचा। आपने कितनी सहजता से कह दिया की सेना ने 65 साल में कुछ नही किया।
क्या आपको ये भी मालूम नही है की इसी सेना ने पाकिस्तान के उस समय दो टुकड़े कर दिए थे जब आप स्कूल में पढ़ रहे थे। क्या आप बता सकते हैं की अगर आप रक्षा मंत्री नही होते तो सेना से आपका क्या रिश्ता है। आपने तो शायद कभी सैनिक सेवा के लिए आवेदन भी नही किया होगा।
मेरी हैसियत नही है की मैं भारतीय सेना के शौर्य का वर्णन कर सकूँ, लेकिन मैं आपको कुछ चीजें जरूर बताना चाहूंगा।
क्या आपने ब्रिगेडियर उस्मान का नाम सुना है ? अविभाजित भारत की बलोच रेजिमेंट के ब्रिगेडियर उस्मान, जिन्हें पाकिस्तान ने सेना प्रमुख बनने का ऑफर दिया था। लेकिन उन्होंने बलोच रेजिमेंट छोड़कर भारत में डोगरा रेजिमेंट ज्वाइन कर ली और पाकिस्तान की सेना प्रमुख की ऑफर ठुकरा दी। वो ब्रिगेडियर उस्मान 1948 में ही कश्मीर के मोर्चे पर शहीद हो गए। बहादुरी के लिए उन्हें नोशेरवां का शेर कहा जाता है। और आज आपकी पार्टी से जुड़े गली मोहल्ले के गुंडे उनके रिश्तेदारों से देशभक्ति का सबूत मांग रहे हैं।
चलो कोई बात नही। आप ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी को तो जानते होंगे ? वही जिनके कारनामो पर बार्डर फिल्म बनी है और जिनका रोल सन्नी दियोल अदा कर रहे थे। भगवान का शुक्र है की ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी अभी तक स्वस्थ हैं। आप एकबार उनसे जरूर मिलिए। हाँ, अगर आप देश के रक्षा मंत्री नही होते या आपकी जगह कोई कोई दूसरा आदमी होता तो इस तरह के बयान के बाद ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी के सामने जाने से पहले मैं उसे डायपर पहनने की सलाह जरूर देता।
आपने हवलदार अब्दुल हमीद का नाम तो जरूर सुना होगा ? 1965 के युद्ध के परमवीर चक्र विजेता। जिनकी बहादुरी ने अमेरिकी पैटन्ट टैंको की इज्जत पर वो बट्टा लगाया था तो कभी धुल नही पाया। लोगों में ये कहावत शुरू हो गयी थी की हवलदार अब्दुल हमीद के सामने आने पर अमेरिकी पैटन्ट टैंक गत्ते के डब्बे में बदल जाता है। ये उस समय की बात है जब आप केवल दस साल के थे। और आज उन्ही अब्दुल हमीद का परिवार भुखमरी की हालत में है।
मैंने पहले ही कहा की सेना की बहादुरी की कहानिया लिखना मेरी हैसियत से बाहर हैं। मैं तो केवल आपको कुछ उदाहरण दे रहा था।
आदरणीय मंत्रीजी, क्या आपको मालूम है की अब तक सेना को कितने परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र दिए गए हैं ? आपको ये तो मालूम होगा की ये चक्र सैनिकों को युद्ध में उनकी वीरता और अदम्य साहस के लिए दिए जाते हैं और ये कोई पदम् पुरस्कार नही हैं जो अपनी पार्टी के नालायक लोगों को भी बांटे जा सकते हैं बगैर किसी योगदान के। इसके अलावा सीमा पर अदम्य साहस और शौर्य की पता नही कितनी कहानियां दफन हैं क्योंकि उन्हें देख कर सुनाने वाला कोई जिन्दा नही बचा। आपने कितनी सहजता से कह दिया की सेना ने 65 साल में कुछ नही किया।
क्या आपको ये भी मालूम नही है की इसी सेना ने पाकिस्तान के उस समय दो टुकड़े कर दिए थे जब आप स्कूल में पढ़ रहे थे। क्या आप बता सकते हैं की अगर आप रक्षा मंत्री नही होते तो सेना से आपका क्या रिश्ता है। आपने तो शायद कभी सैनिक सेवा के लिए आवेदन भी नही किया होगा।
मेरी हैसियत नही है की मैं भारतीय सेना के शौर्य का वर्णन कर सकूँ, लेकिन मैं आपको कुछ चीजें जरूर बताना चाहूंगा।
क्या आपने ब्रिगेडियर उस्मान का नाम सुना है ? अविभाजित भारत की बलोच रेजिमेंट के ब्रिगेडियर उस्मान, जिन्हें पाकिस्तान ने सेना प्रमुख बनने का ऑफर दिया था। लेकिन उन्होंने बलोच रेजिमेंट छोड़कर भारत में डोगरा रेजिमेंट ज्वाइन कर ली और पाकिस्तान की सेना प्रमुख की ऑफर ठुकरा दी। वो ब्रिगेडियर उस्मान 1948 में ही कश्मीर के मोर्चे पर शहीद हो गए। बहादुरी के लिए उन्हें नोशेरवां का शेर कहा जाता है। और आज आपकी पार्टी से जुड़े गली मोहल्ले के गुंडे उनके रिश्तेदारों से देशभक्ति का सबूत मांग रहे हैं।
चलो कोई बात नही। आप ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी को तो जानते होंगे ? वही जिनके कारनामो पर बार्डर फिल्म बनी है और जिनका रोल सन्नी दियोल अदा कर रहे थे। भगवान का शुक्र है की ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी अभी तक स्वस्थ हैं। आप एकबार उनसे जरूर मिलिए। हाँ, अगर आप देश के रक्षा मंत्री नही होते या आपकी जगह कोई कोई दूसरा आदमी होता तो इस तरह के बयान के बाद ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी के सामने जाने से पहले मैं उसे डायपर पहनने की सलाह जरूर देता।
आपने हवलदार अब्दुल हमीद का नाम तो जरूर सुना होगा ? 1965 के युद्ध के परमवीर चक्र विजेता। जिनकी बहादुरी ने अमेरिकी पैटन्ट टैंको की इज्जत पर वो बट्टा लगाया था तो कभी धुल नही पाया। लोगों में ये कहावत शुरू हो गयी थी की हवलदार अब्दुल हमीद के सामने आने पर अमेरिकी पैटन्ट टैंक गत्ते के डब्बे में बदल जाता है। ये उस समय की बात है जब आप केवल दस साल के थे। और आज उन्ही अब्दुल हमीद का परिवार भुखमरी की हालत में है।
मैंने पहले ही कहा की सेना की बहादुरी की कहानिया लिखना मेरी हैसियत से बाहर हैं। मैं तो केवल आपको कुछ उदाहरण दे रहा था।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.