Monday, October 24, 2016

विदेशी कानूनों पर सलेक्टिव रवैया और राजनितिक दावपेंच


                   जिस तरह बाजार विज्ञापनों के जरिये पहले बिना जरूरत की वस्तुओं की मांग खड़ी करता है और फिर उन वस्तुओं को बेच कर मुनाफा कमाता है। ठीक उसी तरह राजनीती पहले समस्याएं पैदा करती है, उन्हें प्रचारित करती है और फिर उन्हें हल करने के वायदे के साथ वोट मांगती है। 
                   जिन देशों को दुश्मन घोषित करना होता है उनके बारे में रवैया और तर्क दूसरी तरह के होते हैं और जिनके साथ भागीदारी करनी होती  है उनके बारे में तर्क दूसरी तरह के होते हैं। 
                   बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई कुछ घटनाओं का जिक्र करना जरूरी है। क्रिकेट की सट्टेबाजी से जुड़े मामलों में आरोप झेल रहे ललित मोदी भारत छोड़ कर चले गए। जब वो देश छोड़कर गए थे तब कांग्रेस का शासन था। उसके बाद ये सामने आया की विदेश मंत्री शुष्मा स्वराज ने उन्हें वीजा दिलाने में मदद की। इस पर संसद में बहुत हंगामा हुआ। ललित मोदी को वापिस लाने के लिए दबाव बढ़ा तो भारत सरकार को उसके लिए कुछ प्रयास करने पड़े। आखिर में मामला ये कह कर ठंडे बस्ते में चला गया की ब्रिटेन के कानून ललित मोदी को तुरन्त वापिस भेजने की इजाजत नही देते। इसके बारे में खुद अरुण जेटली ने संसद में बयान देकर ये बात बताई। बात खत्म।
                     उसके बाद विजय माल्या बैंको का 9000 करोड़ रुपया लेकर ब्रिटेन भाग गए। इस पर भी संसद में खूब हो हल्ला हुआ। उसके बाद फिर ये कहा गया की ब्रिटेन कानून इस तरह विजय माल्या को वापिस भारत भेजने की इजाजत नही देते। बात खत्म।
                      हररोज ये खबर आती है की डॉन दाऊद इब्राहिम दुबई में रहता है और वहीं से अपने कारोबार का संचालन करता है। उसके खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस भी है। लेकिन भारत सरकार कभी भी दुबई सरकार पर इसका दबाव नही डाल पाई की वो दाऊद को हमारे हवाले करे। दबाव डालना तो दूर, कभी बयान तक नही आया। दाऊद वहां बैठा है, बात खत्म।
                      अभी एक हफ्ते पहले ये खबर आयी भारत की अदालतों में वांटेड मोईन कुरैशी हवाई अड्डे पर अधिकारियों को चकमा देकर दुबई फरार हो गया। ( हम इस बहस में नही पड़ना चाहते की वो चकमा देकर फरार हुआ या उसे निकाला गया ) क्या आप में से किसी ने सरकार का कोई बयान सुना की दुबई की सरकार उसे गिरफ्तार करके भारत के हवाले करे। नही। बात खत्म।
                      लेकिन वही भारत सरकार पाकिस्तान की सरकार को हररोज कोसती है की वो हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत के हवाले नही कर रही। पाकिस्तान के ये कहने पर की उसकी अदालतें बिना किसी ठोस सबूत के उसके किसी नागरिक को दूसरे देश को सौंपने की इजाजत नही देंती , हम इसे उसकी ड्रामेबाजी कहते हैं। और उसे हररोज मुद्दा बनाते हैं। हमारी सरकार का ये भी कहना है की पाकिस्तान की सरकार जानबूझकर वहां की अदालत में पुख्ता सबूत नही रखती ताकि उन्हें बचाया जा सके। इस बात में दम हो सकता है। लेकिन हम ये क्यों भूल जाते हैं की हम खुद कश्मीर में मसर्रत आलम को जेल में नही रख पाए और जम्मू कष्मीर हाई कोर्ट में उसे जेल में रखने की जरूरत पर पुख्ता सबूत नही पेश कर पाए।
                      इसके पीछे बीजेपी की पाकिस्तान विरोधी हवा को मजबूती देने की राजनीती भी है और हमारे देश के लोगों का करोड़ों, अरबों रुपया चाउ कर जाने वाले आर्थिक अपराधियों को बचाने और उनके साथ मिलीभगत भी एक कारण है। हमारी सुप्रीम कोर्ट जब रिलायन्स को दोषी ठहराते हुए उस पर करोड़ों का जुरमाना करती है तब उसे वसूल करने और कानून का उलँघन करने के लिए उसे लताड़ने की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी खुद जिओ के विज्ञापन में नजर आते हैं।
                     ये सलेक्टिव नजरिया है जो अपनी राजनितिक जरूरतों और अपने लोगों की तरफदारी से संचालित होता है। पता नही लोग इसे कब समझेंगे।
                 

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