Saturday, October 29, 2016

व्यंग -- UNHRC चुनाव, कुछ चुनिंदा लोगों के मानवाधिकार।


                    अभी अभी खबर आयी है की सयुंक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के लिए हुए चुनाव में रूस को परिषद में दूसरी बार स्थान नही मिला, जबकि सऊदी अरब और अमेरिका को चुन लिया गया। इस पर कुछ मानवाधिकार संगठनों ने सन्तोष व्यक्त किया और इस बात पर अफ़सोस भी प्रकट किया की क्यूबा को फिर चुन लिया गया। मैं भी इस ख़ुशी और अफ़सोस में शामिल होने ही वाला था की मैंने सोचा की पहले ये तो पता कर लूँ की मैं ह्यूमन ( मानव ) की श्रेणी में आता भी हूँ या नही। ऐसा न हो मेरा अफ़सोस किसी काम का ही ना हो।
                    सो मैंने अपने सभी पहचान पत्र निकाले। इनमे ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, पैन कार्ड और कुछ दूसरी संस्थाओं के पहचान पत्र भी शामिल थे। मैंने एक एक कर सबको ध्यान से और दो दो - तीन तीन बार पढ़ा, लेकिन किसी पर भी ये नही लिखा था की मैं ह्यूमन यानि मनुष्य हूँ। उन पर ये जरूर लिखा था की मैं male हूँ। लेकिन male होने से क्या होता है ? Male तो सभी प्राणियों में होते हैं। मेरा पता, उम्र, और फोटो भी थी लेकिन ह्यूमन लिखा हुआ नही था। मैं अंदर ही अंदर काँप उठा, फिर मैंने अलमारी के सभी कागज बाहर निकाल लिए, लेकिन किसी पर भी ह्यूमन लिखा हुआ नही मिला। तभी मुझे याद आया की पिछले दिनों मैंने एक टी शर्ट दुगने दाम पर खरीदी है और उसपे ये लिखा हुआ है। मैंने जल्दी जल्दी उसे निकाला। लेकिन उसपर भी Human Being लिखा होने की बजाय , Being Human लिखा हुआ था। यानि ये लोग भी मुझे Human Being नही मानते। मैं निराशा के अंतिम छोर पर था की मेरे पड़ोसी आ गए।
                       उन्होंने चारों तरफ देखा, और प्रश्नसूचक मुद्रा में हाथ हिलाया। मैंने कहा की मुझे अपने Human होने का कोई सबूत नही मिल रहा। उन्होंने हंसते हुए कहा की होंगे तो मिलेगा न।
                     " क्या मतलब ? " मैंने कहा।
                  " भई देखो, किसी के Human होने के कुछ खास लक्षण होते हैं। जैसे हमारे देश में ये लक्षण हैं, उच्च जाती का हिन्दू होना और वो भी सत्ताधारी पार्टी के किसी संगठन का सक्रिय सदस्य होना। बोलो तुम हो ? " उन्होंने मुझसे पूछा।
                     " नही। " मैंने कहा।
                    " लो, फिर क्यों अलमारी बरबाद कर रहे हो। तुम तो पहली शर्त ही पूरी नही करते। उसके बाद वाली शर्तें, जैसे पैसे वाला होना, पुलिस से रसूख रखना, किसी अपराध में वांटेड होना इत्यादि तो तुम क्या खाकर पूरी करोगे।  खैर ये बताओ की आज अचानक Human होने की क्या जरूरत आ पड़ी ?" वो सोफे पर बैठ गए।
                " कुछ नही, बस आज सयुंक्त राष्ट्र महासभा में UNHRC के लिए वोटिंग हुई थी। सुना है उसमे रूस दूसरी बार उसका सदस्य चुने जाने में असफल रहा। कहा गया है की उसके सीरिया में हस्तक्षेप करने और बमबारी करने के कारण उसने जो मानवाधिकारों का उलँघन किया है उसके लिए ऐसा हुआ। सो मैं ये देख रहा था की सयुंक्त राष्ट्र में Human किस किस को माना जाता है। " मैंने जवाब दिया।
                 " बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की व्याख्या एकदम स्पष्ट है। या तो आप अमेरिकी हों, वरना अमेरिकी खेमे में हों या कम से कम नाटो के सदस्य तो जरूर हों तो आपको Human मान लिया जायेगा। " पड़ोसी ने मुझे व्याख्या समझाई।
                  " लेकिन सीरिया में बमबारी तो तुर्की, सऊदी अरब, अमेरिका, फ़्रांस इत्यादि बहुत से देश कर रहे हैं। फिर उन पर सवाल क्यों नही उठाये जाते ?" मैंने कहा।
                   " अभी तुम्हे बताया गया था की अगर तुम अमेरिकी खेमे में हो तो तुम्हे मानवाधिकारों का रक्षक मान कर चला जायेगा। अब अगर रूस सीरिया में हस्तक्षेप नही करता तो अमेरिका अब तक सीरिया के लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करने में कामयाब हो चूका होता। जैसे उसने लीबिया और इराक के लोगों के अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा की थी। अब रूस की वजह से सीरिया के लोगों के अधिकारों की रक्षा नही हो पा रही। इसलिए रूस मानवाधिकारों का दुश्मन हुआ या नही ? "
                   " मानवाधिकारों की रक्षा का दावा करने वाली एक संस्था UN Watch ने कहा है की रूस को दुनिया ने बता दिया है की वो मानवाधिकारों का हनन बर्दाश्त नही करेगी। UNHRC के चुनाव में हुई वोटिंग, रूस के मुंह पर करारा तमाचा है। 193 देशों की संस्था में रूस के समर्थन में केवल 112 वोट गिरे। और जीतने वाले क्रोएशिया को पुरे 114 वोट मिले। अब इससे ज्यादा फजीहत रूस की और क्या होगी। उसने ये भी कहा है की अफ़सोस है की क्यूबा जैसे मानवाधिकारों के घोर विरोधी अभी भी इस संस्था में बैठे हैं। वो तो शुक्र है की सऊदी अरब और अमेरिका इसके सदस्य हैं वरना दुनिया में मानवाधिकारों की रक्षा कैसे होती । "
                  " हाँ, जहां तक क्यूबा का सवाल है वहां कई तरह के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। जैसे, वहां मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था है जो दवा कम्पनियों के मालिकों के अधिकारों का उलंघन है, इसी तरह मुफ्त शिक्षा व्यवस्था , शिक्षा की दुकान खोल कर रोटी रोजी कमाने वालों के अधिकारों का उलंघन है। और तो और, वहां पर भिखारियों तक के अधिकारों का उलंघन होता है। और वो बेचारे इतने परेशान हैं की आपको पुरे क्यूबा में एक भी भिखारी दिखाई नही देगा। अब ऐसा देश इस संस्था की परिषद में बैठा है तो ये शर्म की ही बात है। "
                   तभी टीवी पर खबर आयी की विकीलीक्स ने हिलेरी क्लिंटन की वो ईमेल छाप दी हैं जिसमे उसने कहा है की हमे इजराइल के लिए सीरिया को खत्म करना ही होगा। उसके बाद मानवाधिकारों के सवाल पर अमेरिका की प्रतिबद्धता एक बार फिर स्थापित हो गयी।

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