Tuesday, October 25, 2016

मुल्ला नसीरूदीन और भारतीय राजनीति

           
                मुल्ला नसीरूदीन की एक पुरानी कहानी है जो आज के राजनैतिक हालात पर एकदम फिट बैठती है। बात इस तरह है की मुल्ला नसीरूदीन अपने पडौस के राज्य में व्यापार करने जाते थे। एक बार उस राज्य के राजा ने दूसरे राज्यों से आने वाले कुछ सामान पर प्रतिबन्ध लगा दिया। और उस प्रतिबन्ध को लागु करने के लिए बड़ी मात्रा में सैनिको को राज्य के दरवाजे पर तैनात कर दिया। सैनिक पूरी ईमानदारी और मेहनत से बाहर से आने वाले व्यापारियों की तलाशी लेते की कहीं कोई प्रतिबन्धित वस्तु तो लेकर नही जा रहा। उन्हें मुल्ला नसीरूदीन पर पूरा शक था इसलिए उसके साथ वो अतिरिक्त सतर्कता से पेश आते। मुल्ला नसीरूदीन हररोज अपने गधों पर घास के बड़े बड़े गटठर लाद कर आते। सैनिक उनके गटठर खोल कर पूरी सतर्कता से तलाशी लेते लेकिन उन्हें कुछ नही मिलता। इस तरह काफी समय बीत गया। इस दौरान व्यापार से मुल्ला नसीरूदीन ने काफी पैसा कमाया। सैनिक हैरान थे। वो अच्छी तरह तलाशी लेते थे लेकिन उसकी घास में उन्हें कभी कुछ नही मिला। वो सोच रहे थे की आखिर मुल्ला नसीरूदीन इतना पैसा कैसे बना रहे हैं।
                   एक दिन वहां के दरोगा ने मुल्ला नसीरूदीन को कोई भी कार्यवाही ना करने और उन्हें आने जाने की पूरी छूट देने का भरोसा दिलाते हुए उससे पूछा की वो घास के गटठर में क्या छुपा कर ले जाते हैं ?
                   मुल्ला ने हंसते हुए बताया की वो घास का नही बल्कि गधों का व्यापार करते हैं। सैनिक घास की तलाशी में लगे रहते हैं और वो हररोज अपने साथ लाये गए गधे बेच कर वापिस आ जाता है।
                      यही हाल हमारी राजनीति का हो गया है। पूंजीपति वर्ग अपने गधे बेच रहा है और हम घास की तलाशी में लगे हुए हैं। सरकार ने सरकारी कम्पनियां बेच दी, किसानों और आदिवासियों की जमीने पूजीपतियों को थमा दी, रक्षा सौदों में दलाली को क़ानूनी कर दिया, बैंको का पैसा धन्ना सेठों को देकर माफ़ कर दिया और हम बीफ पर, तीन तलाक पर, सर्जिकल स्ट्राइक पर, समान सिविल कोड पर और राम मन्दिर पर बहस कर रहे हैं। हमे ये दिखाई ही नही देता की इन सब की आड़ में पूंजीपति वर्ग अपने गधे बेच रहा है और आराम से है।

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