कालेधन का मुद्दा भारत में एक ज्वलंत मुद्दा है। इतना ज्वलंत की केंद्र और राज्य, दोनों दिल्ली की सरकारें इसी मुद्दे पर बनी हैं। बीजेपी द्वारा कालेधन पर देश के लोगों से किये गए वायदे और बाद में उनसे पीछेहठ उसकी साख को ले डूबा। बीजेपी ने कालेधन पर दो प्रमुख वायदे किये थे। पहला ये की 100 दिन में कालाधन वापिस लाया जायेगा और दूसरा सरकार के पास जो कालेधन वालों के नाम हैं उन्हें उजागर किया जायेगा। बाद में सरकार दोनों से पलट गई। अब ये पनामा पेपर लीक सामने आ गया।
पनामा पेपर लीक पर कई बातें सामने आई हैं। जो संस्था इस लीक के लिए जिम्मेदार मानी जाती है, कहते हैं की उसे अमेरिका फण्ड मुहैया करवाता है। लीक पर जो पहला विवाद सामने आया है वो ये है की इसमें केवल अमेरिका विरोधी नेताओं का नाम है। जैसे रुसी राष्ट्रपति पुतिन, चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग, लीबिया के मरहूम राष्ट्रपति ,गद्दाफी, सीरिया के राष्ट्रपति असद इत्यादि। मध्य पूर्व के कुछ पत्रकार इस पर आष्चर्य व्यक्त कर रहे हैं की इसमें एक भी अमेरिकी, सऊदी अरेबिया, इजराइल और तुर्की के किसी नेता का नाम नहीं है। जबकि तुर्की, सऊदी अरब, इजराइल और अमेरिकी कम्पनियों पर हररोज 4 बिलियन डॉलर तेल की खरीद के बदले में ISIS को भुगतान करने का आरोप है।
भारत के मामले में भी लोगों को इस पर हैरानी है की एक भी भारतीय नेता का नाम इसमें नहीं है जबकि लोग नेताओं को कालेधन के मुख्य खिलाडी मानते हैं। खैर ये पेपर सुविधा के हिसाब से लीक किये हो सकते हैं या कुछ नाम इनमे जान बूझकर डाले हो सकते हैं। लेकिन भारत के जिन लोगों के नाम इसमें सामने आये हैं उनमे कुछ लोग नरेंद्र मोदी और बीजेपी के करीबी माने जाते हैं। इसलिए अरुण जेटली के सारे स्वागत के बावजूद लोगों को शक है की लीपापोती शुरू होने वाली है। अगर निकट अवधि में जाँच किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती है तो ये सरकार की गिरती हुई साख को रसातल में पहुंचा देगा। इसलिए सरकार के सामने बड़ी चुनौती है।
पनामा पेपर लीक पर कई बातें सामने आई हैं। जो संस्था इस लीक के लिए जिम्मेदार मानी जाती है, कहते हैं की उसे अमेरिका फण्ड मुहैया करवाता है। लीक पर जो पहला विवाद सामने आया है वो ये है की इसमें केवल अमेरिका विरोधी नेताओं का नाम है। जैसे रुसी राष्ट्रपति पुतिन, चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग, लीबिया के मरहूम राष्ट्रपति ,गद्दाफी, सीरिया के राष्ट्रपति असद इत्यादि। मध्य पूर्व के कुछ पत्रकार इस पर आष्चर्य व्यक्त कर रहे हैं की इसमें एक भी अमेरिकी, सऊदी अरेबिया, इजराइल और तुर्की के किसी नेता का नाम नहीं है। जबकि तुर्की, सऊदी अरब, इजराइल और अमेरिकी कम्पनियों पर हररोज 4 बिलियन डॉलर तेल की खरीद के बदले में ISIS को भुगतान करने का आरोप है।
भारत के मामले में भी लोगों को इस पर हैरानी है की एक भी भारतीय नेता का नाम इसमें नहीं है जबकि लोग नेताओं को कालेधन के मुख्य खिलाडी मानते हैं। खैर ये पेपर सुविधा के हिसाब से लीक किये हो सकते हैं या कुछ नाम इनमे जान बूझकर डाले हो सकते हैं। लेकिन भारत के जिन लोगों के नाम इसमें सामने आये हैं उनमे कुछ लोग नरेंद्र मोदी और बीजेपी के करीबी माने जाते हैं। इसलिए अरुण जेटली के सारे स्वागत के बावजूद लोगों को शक है की लीपापोती शुरू होने वाली है। अगर निकट अवधि में जाँच किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती है तो ये सरकार की गिरती हुई साख को रसातल में पहुंचा देगा। इसलिए सरकार के सामने बड़ी चुनौती है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और सुचित्रा सेन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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