Tuesday, April 12, 2016

व्यंग -- गुरुग्राम, महाभारत और हरियाणा सरकार।

                   हरियाणा सरकार ने गुडग़ांव का नाम बदलकर गुरुग्राम कर दिया। इस तरह सरकार ने एक ऐतिहासिक भूल का सुधार कर दिया। पिछले 850 साल की गुलामी के दौरान जो जो भूलें देश ने की हैं, ये सरकार उन सब को सुधारने के लिए कटिबद्ध है। इसमें 1947 में की गई आजादी नाम की भूल भी शामिल है।
                   गुडग़ांव नाम का ये ऐतिहासिक नगर हरियाणा में दिल्ली से सटा हुआ है। हमारी कमनसीबी देखिये की हमे दिल्ली शब्द का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। कितना अच्छा लगता की दिल्ली का नाम इन्द्रप्रस्थ या हस्तिनापुर होता। तब हम सर उठकर कहते की गुरुग्राम इन्द्रप्रस्थ से सटा हुआ है। तब कोई हमसे पूछता की ये हरियाणा के किस हिस्से में है तो हम बताते की ये करुक्षेत्र से इतने किलोमीटर दूर है। लेकिन पिछली केंद्र सरकारों ने देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने के कोई कदम नहीं उठाये। अब हम 850 साल के बाद देश की पहली हिन्दू सरकार से निवेदन करेंगे की वो दिल्ली का नाम बदल दे।
                      बात गुरुग्राम की चल रही थी सो हम आपको बताना चाहते हैं की ये वही नगर है जो कुरु शासकों ने अपने राजकुमारों को शिक्षा देने की एवज में गुरु द्रोणाचार्य को भेंट किया था। उस समय इसे विद्या का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता था। जहां कई देशो और विदेशों से राजकुमार पढ़ने के लिए आते थे। विदेशों से हमारा मतलब मगध और सिंध आदि देशों से है। तब इन्हे विदेश कहा जाता था। उस समय महान हिन्दू राष्ट्र हस्तिनापुर की सीमाएं एक अनुमान के अनुसार एक तरफ मथुरा को छूती थी और दूसरी तरफ पटना तक जो उस समय पाटलिपुत्र कहलाता था फैली हुई थी। इस विशाल साम्राज्य के महान योद्धा गुरुग्राम से ही शिक्षा प्राप्त करते थे।राजकुमारों से अलग आम आदमी के लिए यहां शिक्षा प्राप्त करना महाभारत काल में भी असम्भव था और आज भी असम्भव है। उस समय ब्र्ह्मास्त्र का निर्माण भी हो चूका था लेकिन लड़ाई के दौरान तीरों और गदा का इस्तेमाल किया जाता था।
                       खैर बात गुरुग्राम और शिक्षा की चल रही थी। उस समय विद्या के इस महान केंद्र में केवल क्षत्रियों को ही शिक्षा दी जाती थी। वैसे तो इस बात का ध्यान रखा जाता था की कोई शुद्र गलती से भी शिक्षा प्राप्त ना कर ले, लेकिन फिर भी दुष्टात्माओं की कमी तो किसी भी काल में नहीं रही और कोई शुद्र छिप छिपाकर शिक्षा प्राप्त भी कर ले तो उससे निपटने के उपाय भी तैयार होते थे। इसमें सभी गुरुकुलों के बीच एक साझा समझ थी और एकमत था। एकलव्य और कर्ण दोनों के उदाहरण सामने हैं।
                     इसलिए मौजूदा हरियाणा सरकार भी 850 साल के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठी पहली हिन्दू सरकार का ही गौरवपूर्ण हिस्सा है इसलिए वो भारत खण्ड को उसका खोया हुआ गौरव वापिस दिलवाने का प्रयास करती रहेगी। इस सरकार ने ये भी नॉट किया है की मौजूदा समय में शूद्रों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकने के लिए कुछ विशेष प्रयास करने की जरूरत है। इसलिए सरकार ने हरियाणा के 350 सरकारी स्कूलों को बंद करने का फैसला किया है। सरकार को उम्मीद है की इससे शूद्रों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होगी। और इससे हमारी महान संस्कृति की रक्षा हो सकेगी।
                 इसके साथ ही हरियाणा सरकार पुरे देश में दिल्ली सरकार द्वारा विश्व विद्यालयों में की जा रही पुराने गौरव को वापिस दिलाने वाले सभी कदमो का पुरजोर समर्थन करती है। जिन विश्व विद्यालयों में एकलव्य और कर्ण जैसे शिष्यों की संख्या ज्यादा हो गई है उनको या तो बंद करने की कोशिश की जाएगी या फिर कम से कम अध्यापन कार्य को बाधित करने को कोशिश तो अवश्य की जाएगी। सरकार द्वारा सत्ता सम्भालते ही इस तरह के प्रयास पुरे जोर शोर से किये जा रहे हैं।
                   हरियाणा सरकार का मानना है की जल्दी ही महान आर्यावर्त के इस भूभाग को जिसे अब हरियाणा कहा जाता है उसका खोया हुआ गौरव फिर से हासिल होगा। हमने एक ही परिवार को दो पक्षों में बांटकर आपस में लड़ाने की पुराणी प्रथा को भी पुनर्जीवित किया है और अभी अभी हरियाणा में उसका सफल प्रयोग भी किया है। कुछ लोग जनता को एक ही परिवार के दो पक्षों द्वारा लड़े गए महाभारत के युद्ध के नतीजों को याद करवा रहे हैं। ऐसे लोग प्राचीन भारतीय संस्कृति के दुश्मन हैं इसलिए उन्हें देशद्रोही करार दिया जा चूका है। ये सरकार अपने एजेंडे पर कायम है और किसी को भरम में रहने की जरूरत नहीं है।

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