इस बात पर तो कोई बहस नहीं है की एक विभाजित समाज कभी भी मजबूत राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता। भारत एक बहुजातीय, बहुधार्मिक और उससे भी आगे बहुसांस्कृतिक समाज है। लेकिन हमारे कर्णधारों का प्रयास रहा की इस विविधता को ही भारत की एकता का आधार बनाया जाये। इसके लिए जरूरी था सभी को सम्मान और न्याय मिले। हर तरह की संस्कृति और विचारों को मानने वाले यहां अपने को सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें। इसके लिए हमने हमेशा दो धर्मो और जातियों में एकता के सूत्र खोजे। चाहे भक्ति आंदोलन हो या सूफी मत हो, सबकी कोशिश हमेशा विभाजनकारी प्रतीकों के खिलाफ एकता के प्रतीक ढूढ़ने की रही। अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते हुए लोगों ने कुछ मूल्यों की स्थापना की और वही मूल्य ना केवल आजादी का आधार बने बल्कि उन्ही मूल्यों को आधार बना कर एक मजबूत देश का निर्माण शुरू हुआ। इस तरह सदियों में ये देश एक मजबूत देश के रूप में उभरा।
लेकिन कुछ ताकतों को ये बात रास नहीं आई। उन्होंने हमेशा किसी ना किसी बहाने इसकी विविधताओं को विभाजन में परिभासित करने की कोशिशें की। उन्होंने हमेशा विविध धर्म और संस्किर्तिओं को मानने वाले लोगों के बीच में टकराव पैदा करने की कोशिश की। धर्म इसमें मुख्य कारक रहा। अंग्रेजों ने इस बिभाजन को चौड़ा करने की सारी कोशिशें की। क्योंकि वो एक विदेशी सत्ता थी और उसे देश की एकता से खतरा था। इसलिए उसने फूट डालने और राज करने की नीति अपनाई।
लेकिन अब तो कोई विदेशी सत्ता नहीं है। फिर भी कुछ संगठन इस एकता को विभाजन में बदलने पर क्यों उतारू हैं। खासकर आरएसएस पुरे जोर शोर से इस बिभाजन को टकराव तक ले जाने की पूरी कोशिश कर रहा है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद, सरकार के सक्रिय सहयोग से उसकी ये कोशिशें खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई हैं। आज विभिन्न धर्मों, जातियों, राज्यों और संस्कृतियों के बीच में जो भी विविधता है, आरएसएस उसे विभाजन के रूप में पेश कर रही है। देश में जितने भी टकराव के आधार हो सकते थे उन सबको सक्रिय कर दिया गया है। उसमे हिन्दू बनाम मुस्लिम है, हिन्दू बनाम ईसाई है, दलित बनाम स्वर्ण है, कश्मीरी बनाम गैर कश्मीरी है, आदिवासी बनाम गैर आदिवासी है, ऐसे सभी पक्षों को टकराव में धकेला जा रहा है।
इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल ये है की जो लोग समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं, समुदायों में फूट डाल रहे हैं वो देशभक्त कैसे हो सकते हैं। समाज की दरारों को चौड़ा करना देशभक्ति है? हररोज नया बहाना ढूंढ कर कुछ लोगों को गद्दार घोषित करना और पुरे देश को इस तरह के सवालों पर तनाव में रखना आखिर देशभक्ति कैसे है ? अगर ये देशभक्ति है तो फिर गद्दारी की क्या परिभाषा होगी ? लोगों को इस बात को समझना होगा की समाज में विभाजन पैदा करने वाले लोग देशभक्त नहीं हैं बल्कि देश के दुश्मन हैं।
लेकिन कुछ ताकतों को ये बात रास नहीं आई। उन्होंने हमेशा किसी ना किसी बहाने इसकी विविधताओं को विभाजन में परिभासित करने की कोशिशें की। उन्होंने हमेशा विविध धर्म और संस्किर्तिओं को मानने वाले लोगों के बीच में टकराव पैदा करने की कोशिश की। धर्म इसमें मुख्य कारक रहा। अंग्रेजों ने इस बिभाजन को चौड़ा करने की सारी कोशिशें की। क्योंकि वो एक विदेशी सत्ता थी और उसे देश की एकता से खतरा था। इसलिए उसने फूट डालने और राज करने की नीति अपनाई।
लेकिन अब तो कोई विदेशी सत्ता नहीं है। फिर भी कुछ संगठन इस एकता को विभाजन में बदलने पर क्यों उतारू हैं। खासकर आरएसएस पुरे जोर शोर से इस बिभाजन को टकराव तक ले जाने की पूरी कोशिश कर रहा है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद, सरकार के सक्रिय सहयोग से उसकी ये कोशिशें खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई हैं। आज विभिन्न धर्मों, जातियों, राज्यों और संस्कृतियों के बीच में जो भी विविधता है, आरएसएस उसे विभाजन के रूप में पेश कर रही है। देश में जितने भी टकराव के आधार हो सकते थे उन सबको सक्रिय कर दिया गया है। उसमे हिन्दू बनाम मुस्लिम है, हिन्दू बनाम ईसाई है, दलित बनाम स्वर्ण है, कश्मीरी बनाम गैर कश्मीरी है, आदिवासी बनाम गैर आदिवासी है, ऐसे सभी पक्षों को टकराव में धकेला जा रहा है।
इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल ये है की जो लोग समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं, समुदायों में फूट डाल रहे हैं वो देशभक्त कैसे हो सकते हैं। समाज की दरारों को चौड़ा करना देशभक्ति है? हररोज नया बहाना ढूंढ कर कुछ लोगों को गद्दार घोषित करना और पुरे देश को इस तरह के सवालों पर तनाव में रखना आखिर देशभक्ति कैसे है ? अगर ये देशभक्ति है तो फिर गद्दारी की क्या परिभाषा होगी ? लोगों को इस बात को समझना होगा की समाज में विभाजन पैदा करने वाले लोग देशभक्त नहीं हैं बल्कि देश के दुश्मन हैं।
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