शुरू से ही बीजेपी मनरेगा के खिलाफ रही है और उसने ये बात कभी छुपाई भी नहीं है। उसका मानना है की ये केवल पैसों की बर्बादी है क्योंकि इससे कोई सम्पत्ति निर्माण नहीं होता। उसने इसे कांग्रेस सरकार की विफलता का स्मारक बताया है।
दूसरी तरफ देश का बहुत बड़ा तबका प्रबल समर्थक है। गावों में स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए इससे बड़ा कोई प्रोग्राम नहीं है। गांव के स्तर पर बेरोजगार लोगों को कम से कम 100 का रोजगार वहीं मिल जाये इसके लिए इस स्कीम को लाया गया था। उसके बाद देश में रोजगार गारंटी कानून भी आया। इस कार्यक्रम ने देहाती हलकों में काम उपलब्ध करवा कर बहुत बड़े पैमाने पर विस्थापन को रोकने में सफलता पाई है। इसके लाभ और असर इतने व्यापक हैं की अपनी सारी नकारात्मक समझ के बावजूद बीजेपी सरकार इसको बंद नहीं कर पाई।
लेकिन मनरेगा पर सरकार की जो समझ है उसने इसके रास्ते में कई समस्याएं भी खड़ी की हैं। बीजेपी ना तो इसे बंद करने का जोखिम मोल लेना चाहती और ना इसे चालू रखना चाहती। इसलिए उसने बीच का रास्ता निकाल लिया। वो रास्ता है मनरेगा को विफल करने का रास्ता। उसने पुरे देश के स्तर पर इसके लिए फण्ड जारी करने की कोई कोशिश नहीं की। जिसका परिणाम ये हुआ और अपेक्षित भी था की जब मनरेगा में काम करने वाले लोगों को मजदूरी ही नहीं मिली उन्होंने गाँवो से पलायन शुरू कर दिया। सूखे के हालात में जब लोगो को भूखे मरने की नौबत थी उस समय भी सरकार ने इसके लिए रकम जारी नहीं की। लोगों की बकाया मजदूरी लगभग 9000 करोड़ तक पहुंच गई।
इसके बाद बारी आई सूखा राहत के सवाल की। सरकार ने उस पर भी आँखे बंद करके बारिश का इंतजार करने का फैसला किया। बड़ी तादाद में भूख से मौतें हुई। लोग घरबार छोड़कर काम और रोटी की तलाश में निकल पड़े। लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा। तब लोग उच्च्त्तम न्यायालय में गए। एक PIL पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने इस पर ना केवल हैरानी जताई बल्कि सरकार को स्प्ष्ट चेतावनी भी दी की अदालत इस हालात में आँखे बंद करके नहीं बैठ सकती। न्यायालय ने साफ शब्दों में कहा की जब मजदूरी का भुगतान ही नहीं होगा तो लोग काम क्यों करेंगे। उच्च्त्तम न्यायालय सरकार को पूरी जानकारी और बकाये के भुगतान के बारे में शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया। उसके बाद अदालत का सख्त रुख देखते हुए सरकार ने माना की 9000 करोड़ रुपया मजदूरी बकाया है और वो एक हफ्ते के अंदर उसके लिए रकम जारी करेगी।
उससे पहले हम हररोज सरकारी प्रवक्ताओं के बयान सुनते थे की मनरेगा के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है। और अगर कोई रकम बकाया है तो तकनीकी कारणों से बकाया हो सकती है। सरकार कितनी बेशर्म और जनविरोधी हो सकती है ये उसका केवल एक नमूना है।
दूसरी तरफ देश का बहुत बड़ा तबका प्रबल समर्थक है। गावों में स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए इससे बड़ा कोई प्रोग्राम नहीं है। गांव के स्तर पर बेरोजगार लोगों को कम से कम 100 का रोजगार वहीं मिल जाये इसके लिए इस स्कीम को लाया गया था। उसके बाद देश में रोजगार गारंटी कानून भी आया। इस कार्यक्रम ने देहाती हलकों में काम उपलब्ध करवा कर बहुत बड़े पैमाने पर विस्थापन को रोकने में सफलता पाई है। इसके लाभ और असर इतने व्यापक हैं की अपनी सारी नकारात्मक समझ के बावजूद बीजेपी सरकार इसको बंद नहीं कर पाई।
लेकिन मनरेगा पर सरकार की जो समझ है उसने इसके रास्ते में कई समस्याएं भी खड़ी की हैं। बीजेपी ना तो इसे बंद करने का जोखिम मोल लेना चाहती और ना इसे चालू रखना चाहती। इसलिए उसने बीच का रास्ता निकाल लिया। वो रास्ता है मनरेगा को विफल करने का रास्ता। उसने पुरे देश के स्तर पर इसके लिए फण्ड जारी करने की कोई कोशिश नहीं की। जिसका परिणाम ये हुआ और अपेक्षित भी था की जब मनरेगा में काम करने वाले लोगों को मजदूरी ही नहीं मिली उन्होंने गाँवो से पलायन शुरू कर दिया। सूखे के हालात में जब लोगो को भूखे मरने की नौबत थी उस समय भी सरकार ने इसके लिए रकम जारी नहीं की। लोगों की बकाया मजदूरी लगभग 9000 करोड़ तक पहुंच गई।
इसके बाद बारी आई सूखा राहत के सवाल की। सरकार ने उस पर भी आँखे बंद करके बारिश का इंतजार करने का फैसला किया। बड़ी तादाद में भूख से मौतें हुई। लोग घरबार छोड़कर काम और रोटी की तलाश में निकल पड़े। लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा। तब लोग उच्च्त्तम न्यायालय में गए। एक PIL पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने इस पर ना केवल हैरानी जताई बल्कि सरकार को स्प्ष्ट चेतावनी भी दी की अदालत इस हालात में आँखे बंद करके नहीं बैठ सकती। न्यायालय ने साफ शब्दों में कहा की जब मजदूरी का भुगतान ही नहीं होगा तो लोग काम क्यों करेंगे। उच्च्त्तम न्यायालय सरकार को पूरी जानकारी और बकाये के भुगतान के बारे में शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया। उसके बाद अदालत का सख्त रुख देखते हुए सरकार ने माना की 9000 करोड़ रुपया मजदूरी बकाया है और वो एक हफ्ते के अंदर उसके लिए रकम जारी करेगी।
उससे पहले हम हररोज सरकारी प्रवक्ताओं के बयान सुनते थे की मनरेगा के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है। और अगर कोई रकम बकाया है तो तकनीकी कारणों से बकाया हो सकती है। सरकार कितनी बेशर्म और जनविरोधी हो सकती है ये उसका केवल एक नमूना है।
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