Monday, June 15, 2015

सरकार की बकरी अण्डा देती है।

खबरी -- आखिर बकरी अंडा कैसे दे सकती है ?


गप्पी -- इसका अनुभव मुझे अभी हाल  ही में हुआ। मेरे एक मित्र मेरे पास बैठे थे। उसने कहा की सरकार श्रम कानूनो में सुधार करने जा रही है, इस पर तुम्हारा क्या विचार है ? मैंने कहा ये तो अच्छी बात है। भारत का मजदूर बेचारा बहुत बुरी स्थितियों में काम करता है। उसे सरकार द्वारा तय वेतन तक नही मिलता। उसकी हाजरी का भी रिकार्ड नही होता। बुढ़ापे में जब वो मजदूरी करने लायक नही रहता उसकी हालत बहुत दयनीय हो जाती है। उसे न पेन्शन मिलती है ना ईलाज की कोई सुविधा है। उसे बारह -बारह घंटे काम करना पड़ता है। बोनस वगैरा का तो उसने कभी नाम भी नही सुना होगा। अगर देर से ही सही सरकार श्रम कानूनो में सुधार करना चाहती है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। 

                     मेरे मित्र ने मुझे इस तरह देखा जैसे मेरे सर पर कौवा बैठा हो। तुम्हारा तो दिमाग खराब है। श्रम सुधारों का मतलब है की जो थोड़े बहुत भी कानून हैं या तो उन्हें समाप्त कर दिया जाये या उनमे इस तरह फेरबदल कर दिया जाये की उनका कोई मतलब ही नही बचे। 

                    लेकिन तुम तो कह रहे थे की सुधार कर रहे हैं। मैं हैरान हुआ। 

                     बेवकूफ इसे ही सुधार कहते हैं। पब्लिक सैक्टर में सुधार का मतलब है उसे बेच देना। करों में सुधार का मतलब है अमीरों पर टैक्स कम करना और गरीबों पर बढ़ाना। आर्थिक सुधारों का मतलब होता है जो कुछ भी आम जनता के लिए है चाहे वह राशन के अनाज पर सब्सिडी ही क्यों न हो, उसे खत्म कर देना और उन लोगों को बेलआउट पैकेज देना जो बेचारे लाख दो लाख रूपये रोज किराये के होटल में ठहरते हैं। सरकार कह रही है की वो आर्थिक सुधारों की गति को और तेज करेगी क्योंकि उसके बिना कॉर्पोरेट को उद्योग चलाने  मुश्किल हो रहे है। 

                           धन्य है हमारा कॉर्पोरेट जो बैंक कर्जा वापिस मांग ले तो दिवालिया हो जाता है, मजदूरों को वेतन देना पड़ जाये तो वायबल नही रहता और टैक्स देना पड़ जाये लुट जाता है। बाकि सब तो ठीक है पर सरकार इस बर्बादी को सुधार क्यों कहती है कम से कम शब्दों का तो सही इस्तेमाल करे। मैंने कहा। 

                          मेरे मित्र ने मुस्कुराते हुए मुझे एक किस्सा सुनाया। एक बार कुछ लोग गांव के चबूतरे पर बैठे थे। एक आदमी बोला की उसकी बकरी रोज एक अंडा देती है। लोगों को  बड़ा अजीब लगा। उन्होंने कहा भले आदमी कभी बकरी भी अंडा देती है ? वह आदमी बोला की उसकी बकरी रोज एक अंडा देती है अगर किसी को यकीन नही होता है तो सुबह मेरे घर आकर देख ले। हैरान हुए लोगों ने सुबह उसके घर जाने की ठानी।  सभी लोग इक्क्ठे हो कर सुबह उसके घर पहुंचे। वह आदमी उन्हें एक कोने में ले गया और बोला की देख लो। वहां एक मुर्गी अंडे के साथ बैठी थी। लोगों ने कहा की ये तो मुर्गी है। 

               तो वह आदमी बोला की हाँ , हमने अपनी मुर्गी का नाम बकरी रक्खा हुआ है। 

         मेरे मित्र ने एक जोर का ठहाका लगाया और मुझसे बोला की आया कुछ समझ में। अब बताओ की सरकार की बकरी अंडा दे सकती है की नही। 

                     मैंने सहमति में सर हिलाया।

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