Friday, June 5, 2015

ये बेलन किसके सिर में लगा ?

खबरी -- दिल्ली सरकार और LG की लड़ाई का नुकसान किसको होगा ? 


गप्पी -- मैंने किसी फिल्म के या सीरियल के एक सीन में देखा था की एक मनुष्य की पत्नी उसे बेलन फेंक कर मारती है।  आदमी खुद को बचाने के लिए सिर नीचे करता है और बेलन पीछे रक्खे कांच के फूलदान से टकराता है। फूलदान टूटने के लिए पत्नी पति को जिम्मेदार ठहराती है। लगभग वैसा ही आरोप केंद्र सरकार और LG मिलकर केजरीवाल पर लगा रहे हैं। 

                 हमारा बाजारू मीडिया इसे केजरीवाल और LG के बीच की लड़ाई दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। पूरी रिपोर्टिंग में सच्चाई को भोंडे तरीके से तोड़मोड़ कर इसी मुद्दे पर लेन की कोशिश होती है। असल में झगड़ा केजरीवाल और LG का है ही नही, झगड़ा है दिल्ली की जनता के अधिकारों का, जो वो केंद्र सरकार से मांग कर रही है। दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग केजरीवाल की नही है , दिल्ली की जनता की है जिसका केजरीवाल समेत सभी राजनैतिक पार्टियों ने समर्थन किया था। इस मुद्दे पर व्यावहारिक अड़चने हो सकती हैं, बहस की गुंजाइश हो सकती है , पुलिस और जमीन के अधिकार दिल्ली सरकार रक्खे या केंद्र रक्खे इस पर विचार हो सकता है , परन्तु दिल्ली की जनता को अपनी सरकार चुनकर रोजमर्रा का काम करने से रोकना कोनसे मतभेद की श्रेणी में आता है। लोकतंत्र का मतलब ये नही होता की आप तकनीकी मुद्दों में उलझा कर चुनी हुई सरकार को काम ही न करने दें। 

                   केंद्र की सरकार दिल्ली की जनता को थप्पड़ मरती है और दिल्ली की जनता का एक हिस्सा ताली पहले बजाता है और गाल बाद में सहलाता है। लोकतंत्र में दूसरों को काम करने देने का मौका देना पहली शर्त होता है, अगर केवल तकनीकी आधार पर चुनी हुई सरकार को काम करने से रोका  जाता है तो इसे राजनीती की भाषा में तानाशाही कहते हैं। केवल तकनीकी आधार पर फैसले लेने के मतलब इस तरह भी हो सकते हैं की विपक्ष को अधिकार है की वो संसद में एक भी बिल पास न होने दे , पुलिस को अधिकार है की वो हर गाड़ी को तरपाल खुलवाकर और माल नीचे उतरवाकर चैक करे भले ही 10 किलोमीटर लम्बी लाइन लग जाये, सेल टैक्स के अधिकारी हर तीसरे दिन आपको पूरी दुकान का स्टॉक मिलवाने को कहे , बैंक के अधिकारी साइन न मिलने का बहाना करके आपके चैक रिटर्न कर दे, अदालते कोई भी फैसला 20 साल से पहले न करे , आपकी सोसायटी का चौकीदार आपको हररोज ये साबित करने को कहे की आप आप ही हो। इसलिए मेहरबानी करके तकनीकी सवाल मत उठाओ। 

                       एक बार महात्मा बुद्ध से उनके शिष्य आनन्द ने पूछा था की मूर्ख की पहचान क्या होती है, तो महात्मा बुद्ध ने कहा था की आनन्द मूर्ख वो है जो दूसरों को मुर्ख बनाते हुए ये समझता है की वो मुर्ख बन भी रहे हैं।  बीजेपी को ये समझ में क्यों नही आता की लोग हर चीज को समझते हैं और केवल टीवी चैनलों के सहारे सारा झूठ लोगों के गले नही उतारा जा सकता।   लोगों ने उसके इसी रुख के कारण तीन सीटों पर पहुंचा दिया और रोज LG के पक्ष में बयान देने वाली कांग्रेस को तो इस लायक भी नही समझा की वो रजिस्टर में साइन कर सके। 

                    लेकिन मुझे एक बात समझ नही आ रही की कुछ लोग अपनी ही पिटाई पर तालों क्यों पीटते हैं। उन्हें ये समझ क्यों नही आता की जब भी LG दिल्ली सरकार के किसी फैसले को ख़ारिज करते हैं वो तुम्हारे सरकार चुनने के अधिकार पर सवालिया निशान लगाते हैं। LG का फेंका हुआ बेलन दरअसल दिल्ली की जनता के सर में लग रहा है।

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