Tuesday, June 16, 2015

बिहार चुनाव और चेहरे की जरूरत

खबरी -- अभी-अभी खबर आई है की बिहार में बीजेपी मोदीजी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। 


गप्पी -- खबर तो सही है। अभी-अभी कोई मुझसे पूछ रहा था की कोनसे मोदी के चेहरे पर , ललित मोदी या नरेंद्र मोदी। मैंने उसे समझाया की बेवकूफ आदमी नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी न। क्योंकि बिहार में उसके पास दूसरा कोई चेहरा नही है। 

                  उसने मुझसे पूछा की पूरे बिहार में एक भी आदमी बीजेपी के पास ऐसा नही है जिसे लोग एक ठीक- ठाक मुख्यमंत्री मान लें। और जिस तरह मोदी जी चेहरे की लाली उत्तर रही है उससे तो ये भी हो सकता है की बिहार चुनाव तक ये चेहरा रंगहीन हो जाए। और फिर ललित मोदी को जनता मानवीय आधार पर जीता भी सकती है। कम से कम बीजेपी ने ये तो कह ही दिया है की ललित मोदी पर कोई ऐसे गंभीर आरोप नही हैं। दूसरा ललित मोदी चुनाव में पैसा भी खूब खर्च कर सकते हैं। पहले पीछे से करते रहे होंगे अब सामने से करेंगे। और इसका सबसे बड़ा फायदा तो ये होगा की फिर बिहार में बीजेपी के पास तीन मोदी हो जाएंगे। नरेंद्र मोदी, सुशील मोदी और ललित मोदी। तीन मोदी तो मिलकर चुनाव जीत ही सकते हैं। 

                   मैंने उसे समझाया की मोदीजी का चेहरा आगे रखने के कई फायदे हैं। आरएसएस की यह पुरानी नीति रही है की वो हजार मुँह से बोलती है और अलग अलग बोलती है। लोग मजाक में ये भी कहते हैं की आरएसएस हजार मुंह वाला साँप है। खैर मैं ये तो नही कहता परन्तु अलग अलग मुँह से बोलने के फायदे तुम्हे बता देता हूँ। 

                     आरएसएस का एक नेता मुसलमानो के खिलाफ जहर उगलता है तो दूसरा उसका खंडन कर देता है। इससे ये फायदा होता है की मंदिर आंदोलन के कार्यकर्ताओं की मीटिंग होती है तो संघ पहले बयान को अपनी आधिकारिक लाइन बता देता है और जब बाकि देश को या कानून को जवाब देना होता है तो दूसरे बयान को आगे कर देता है पहले बयान को निजी राय बता देता है। 

                       उसी तरह बीजेपी बिहार में जब ठाकुरों के बीच में जाएगी तो किसी ठाकुरों के नेता के कंधे पर हाथ रखकर जाएगी। उसे मंच पर प्रधानमंत्री के बगल वाली सीट पर बिठाया जायेगा। ठकुरों को लगेगा की ही मुख्यमंत्री बनने वाला है। इसी तरह यादवों के बीच में यादव नेता को लेकर, पिछड़ों के बीच में पिछड़े नेता को लेकर, दलितों के बीच में दलित नेता को लेकर, इस तरह हर जाती और वर्ग को विश्वास दिल दिया जायेगा की मुख्यमंत्री तो उनमे से ही बनने वाला है। अगर चुनाव से पहले नेता घोषित कर दिया जायेगा तो ये सुविधा खत्म हो जाएगी। और अगर जनता का ज्यादा ही दबाव पड़ा तो तब तक किरण बेदी की तरह कोई चेहरा ढूंढ लिया जायेगा। 

                      
                     

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