गप्पी -- मैं ये सवाल बहुत ही संजीदगी से पूछ रहा था और मेरा पड़ौसी मजाक के मूड में था। उसने तुरंत उत्तर दिया की जब आप दूध नही देते तो भेड बकरी कैसे हो सकते हो। अब मुझे कहना पड़ा की हम यानि आम जनता सदियों से ऊपर के वर्ग के लिए बाकायदा दूध देते रहे हैं। और इतना देते रहे हैं की उनकी सन्ताने इतनी मोटी हो गयी हैं की उन्हें डाइटिंग करनी पड़ रही है। भेड़ की तरह ही वो हर साल हमे मूँड़ कर ऊन उतार लेते है। और हम सचमुच भेड़ की तरह चुपचाप बिना कोई एतराज किए ऊन उतरवाते रहते हैं।
लेकिन मैं ये सवाल और भेड़ बकरियों से हमारी तुलना एक मुहावरे के अनुसार कर रहा था। मेरा संदर्भ दूसरा था।
आजकल हम कोई सामान लेने जाते हैं या सिनेमा देखने जाते हैं, बिजली का बिल जमा करवाने जाते हैं या राशन लेने जाते हैं तो क्या देखते हैं की भीड़ बहुत होती है। हर आदमी सबसे पहले काम करवाना चाहता है। शोर गुल होता है, कभी कभी गाली गलौच भी होता है। लेकिन हम इन्सानो की तरह लाइन से बारी बारी ये काम नही करते हैं। अचानक एक वाचमैन आता है या सिक्योरिटी गार्ड आता है और डण्डा हिला कर सबको लाइन में कर देता है बिलकुल भेड़ बकरियों की तरह। लाइन हम खुद भी लगा सकते थे लेकिन नही इसके लिए हमे एक गार्ड या पुलिस वाला चाहिए। जिस तरह भेड़ बकरिओं को हांकने के लिए एक रखवाला चाहिए।
चौराहे पर ट्रैफिक जाम है। एम्बुलेंस तक फंसी हुई है। चूँकि हर आदमी पहले निकलना चाहता है इसलिए कोई भी नही निकल पा रहा है। तभी एक पुलिस वाला आता है और सब लाइन में हो जाते हैं। हिं हिं करते हैं और चले जाते हैं। मैं इसलिए पूछ रहा था की हम भेड़ बकरियां हैं क्या ?
आदमी घर में बैठा है। टीवी देख रहा है। टीवी पर कार्यक्रम आ रहा है की सरकार सफाई के लिए कुछ नही करती। टीवी में जगह जगह कूड़े कचरे के ढेर दिखाए जा रहे हैं। टीवी देखने वाला पूरी सरकार को गालियां दे रहा है। कोस रहा है सारे अधिकारीयों और नेताओं को। कर्मचारी काम ही नही करना चाहते। कहता है इस देश का चरित्र बिलकुल गिर गया है। यहाँ मिल्ट्री राज की जरूरत है तब सुधरेंगे लोग और तब काम करेंगे कर्मचारी। फिर काम पर जाने के लिए घर से निकलता है। हाथ में कचरे की थैली है जो गली के मोड़ पर रखी कचरापेटी में डालनी है। वह वहां तक जाता है और कचरे की थैली कचरापेटी के अंदर नही डालता उसके पास फेंक कर आगे निकल जाता है। पूरे मुहल्ले का कूड़ा कचरापेटी के पास पड़ा है और पेटी खाली रखी है।
शाम को आदमी घर पर आता है। पार्किंग में गाड़ियाँ इस तरह खड़ी हुई हैं की ना तो दूसरी लगाने की जगह है और ना निकालने की जगह है। वह पूरी सोसाइटी को गालियां देता है। फिर अपनी गाड़ी इस तरह खड़ी कर देता है की चार गाड़ियों का रास्ता बंद हो जाता है।
सार्वजनिक परिवहन की बस जा रही है। सवारियों से पूरी भरी हुई है। एक आदमी एक लड़की के साथ छेड़खानी करता है। लड़की उसका विरोध करती है। झगड़ा होता है। पूरी बस की सवारियां देख रही हैं। कोई नही बोलता। साठ सवारियों के मुंह में दही जमा हुआ है। घर पर पहुंच कर इस बात पर सरकार को सौ गालियां देते हैं की एक गार्ड नही है बस में। भरी बस में एक लड़की को छेड़खानी से बचाने के लिए गार्ड चाहिए। इन सारे किस्सों में सरकार की जिम्मेदारी से कोई इनकार नही करता। लेकिन समाज और व्यक्ति की कोई जिम्मेदारी नही है। हमारी कोई जिम्मेदारी नही है। क्योंकि हम तो घर परिवार वाले शरीफ लोग हैं। तुम घर परिवार वाले शरीफ लोग हो तभी तो तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है की समाज ऐसा रहे जिसमे घर परिवार इज्जत और सम्मान के साथ रह सके।
लेकिन नही, हम तो भेड़ बकरियां हैं। कोई हमारा दूध निकाल ले जाये, ऊन उतार ले जाये हम नही रोकेंगे। हमे चलना कैसे है खड़ा कैसे होना है रहना कैसे है, इस सब के लिए हमे एक डण्डे वाला गार्ड चाहिए।
खबरी -- जब तक लोग भेड़ बकरी रहेंगे, सरकारें और बदमाश उन्हें हांकते रहेंगे ।
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