Wednesday, June 3, 2015

आखिर अम्बेडकर क्या चाहते हैं

खबरी -- इन दिनों डॉ. अम्बेडकर पर कुछ ज्यादा मंथन नही हो रहा है ?


गप्पी -- अरे, इस मंथन पर याद आया।  मैं तुम्हे आज सुबह की बात बताता हूँ।  सुबह-सुबह मुझे ऐसा लगा जैसे मैं दिल्ली के इंडिया गेट पर खड़ा हूँ। वहां बड़ी तादाद में लोग जमा हैं। गेट के बिलकुल सामने एक स्टेज बनी हुई है।  उसके एक सिरे पर एक आदमी खड़ा है हाथ में एक किताब पकड़े, चश्मा लगाये और नीले रंग का कोट पहने। मैंने तुरंत पहचान लिया की ये तो डॉ. भीमराव अम्बेडकर हैं। मैंने इनकी बिलकुल इसी तरह की फोटो हजारों बार किताबों और अख़बारों में देखी है। उनकी आँखों में अजीब किस्म की बेचैनी और गुस्सा था और वो स्टेज के सिरे पर आगे पीछे टहल  रहे थे। स्टेज के दूसरे सिरे पर एक दूसरा आदमी खड़ा था जो पहनावे से तो बड़ा आदमी लग ही रहा था उसके साथ अंगरक्षकों का एक पूरा दस्ता था। लेकिन एक अजीब बात थी की उसकी शक्ल बार बार बदल रही थी। कभी वो इंदिरा गांधी जैसा लगता तो कभी वाजपेयी जैसा, कभी राजीव गांधी जैसा तो कभी नरेंद्र मोदी जैसा।  ओह, अब समझ में आया की ये भारत सरकार थी। दोनों के बीच में किसी मामले पर तीखी बहस चल रही थी। मैंने जिज्ञासावस आगे जा कर सुनने की कोशिश की। 

         मुझे हर दलित के लिए इंसान का दर्जा चाहिए।  अम्बेडकर चिल्लाये। 

         सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है।   सरकार ने थोड़ा झुकते हुए कहा। 

         लेकिन कब तक इंतजार करें, आजादी को 65 साल हो गए। तुमने वादा  किया था।  अम्बेडकर ने  तीखे स्वर में पूछा। 

          जब तक दर्जा  मिल नही जाता तब तक इंतजार कीजिए। सरकार एक बार फिर अपना वादा दोहराती है।   सरकार ने अपने स्वर को थोड़ा और नरम किया। 

        लोग अब भी सिर पर मैला ढो रहे हैं।  अम्बेडकर ने आष्चर्य व्यक्त किया। 

         हम पूरे देश में शौचालयों का निर्माण कर रहे हैं, जैसे ही वो काम पूरा होगा हम इस प्रथा पर रोक लगा देंगे।  सरकार ने आश्वासन दिया। 

        हमे गावों कस्बों में आज भी अछूत माना जाता है।  अम्बेडकर ने शिकायत की। 

        हम इस साल भी देश के दो मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश की योजना बना रहे हैं। सरकार ने पूरे इत्मीनान से कहा। अब सरकार की शक्ल राजीव गांधी जैसी लग रही थी। 

        हमे मंदिरों में प्रवेश नही, पानी के कुओं पर प्रवेश चाहिए।  अम्बेडकर ने एतराज किया।

        उसके लिए समाज में परिवर्तन लाना होगा , लोगों की सोच बदलनी होगी। सरकार ने लगभग असमर्थता दिखाई। 

          लेकिन जो लोग सोच बदलने की कोशिश कर रहे हैं उन पर तुम प्रतिबंध लगा रहे हो।  अम्बेडकर ने अख़बार की प्रति लहराई। 

           उन्हें सरकार की आलोचना नही करनी चाहिए।  सरकार ने सफाई दी। सरकार की शक्ल बदल कर नरेंद्र मोदी जैसी हो गयी। 

           मैंने सविंधान में अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी दी है। अम्बेडकर ने बगल से सविधान की प्रति निकाल कर दिखाई। 

            सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है।  सरकार ने झुक कर कहा। 

            तुमने खेतमजदूरों के रोजगार के कार्यक्रम मनरेगा में कटौती कर दी।  अम्बेडकर ने कहा। 

            नही , ये  बात गलत है, हमने उसके लिए बजट में  प्रावधान किया है। सरकार सही समय पर उसे खर्च करने का फैसला लेगी। सरकार खेतमजदूरों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।  सरकार ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा। 

             तुमने भूमि बिल से मजदूरों पर पड़ने वाले प्रभाव के अध्धयन करने वाले क्लाज को निकाल  दिया।  अम्बेडकर अब बहुत परेशान लग रहे थे। 

               सरकार एक बिल में एक ही वर्ग का ध्यान रख सकती है, वैसे सरकार मजदूरों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।  सरकार ने आश्वासन की मुद्रा बनाई। 

               तुमने राशन में मिलने वाले अनाज तक में कटौती कर दी, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो। मालूम है कितने लोग भूख से मर जायेंगे।  अम्बेडकर से बोलना मुश्किल हो रहा था। 

               सरकार देश के गरीबों के सिर से सब्सिडी का बोझ कम करना चाहती है, वरना हम किसी को भी भूख से नही मरने देना चाहते, आप चाहें तो विश्व बैंक से पूछ सकते है।  सरकार ने जवाब दिया।

           सरकार न तो संविधान, न सविधान की भावना और न ही संविधान के निर्माताओं का सम्मान कर रही है।  अम्बेडकर ने फिर एतराज किया। 

             नही ये आरोप गलत है, हम अभी सविधान में कुछ संशोधन ल रहे हैं, अगर वो पास हो जाते हैं तो हम सविधान की भावना को भी संशोधित करने की कोशिश करेंगे। जहां तक सविधान निर्माताओं के सम्मान का सवाल है हमने आपके जन्मदिन पर छुट्टी की घोषणा की है।  सरकार ने भीड़ की तरफ देखते हुए कहा। 

            हमे छुट्टी की नही, बराबरी की जरूरत है।  अम्बेडकर जोर से चिल्लाये। 

            सरकार ने सर्वे करवाया है और हम बराबरी के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए हमने 99 करोड़ की लागत से आपका स्मारक बनाने का फैसला किया है। सरकार ने ये बात अम्बेडकर को नही बल्कि लोगों को सम्बोधित करते हुए कही। तभी भीड़ में से किसी ने नारा लगाया , बाबासाहेब की जय !

              दूसरे  लोगों ने भी जोर से जवाब दिया , बाबासाहेब जिंदाबाद।   उसके बाद बाबासाहेब जिंदाबाद और जय हो के नारों से आसमान गूँजने लगा। मैंने देखा की अम्बेडकर कुछ कहने  कोशिश कर रहे हैं परन्तु जिंदाबाद के शोर में उनकी बात कोई सुन नही रहा है। सरकार स्टेज के बीच में आ गयी है और रहस्यमय ढंग से मुस्कुरा रही है। 


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