Tuesday, June 2, 2015

लोकतंत्र की अगली मंडी बिहार में

खबरी -- चुनाव आयोग ने सितम्बर -अक्टूबर में बिहार चुनाव की सम्भावना जाहिर की। 


गप्पी -- हाँ , और ऐसा सुनते ही लोकतंत्र की मण्डी के लिए तैयारियां शुरू हो गयी हैं। राजनीति के बड़े-बड़े दुकानदार पटना के गांधी मैदान में स्टाल बुक करवा रहे हैं। सजावट के लिए झंडे-बैनर बनवाने शुरू हो गए हैं। खरीददारों के लिए डिस्काउंट की घोषणाएं की जा रही हैं। नारे खोजे जा रहे हैं , गठबंधन तलाशे जा रहे है। जातियों के सम्मेलन हो रहे हैं। महापुरुषों की जातियां पता लगाने का काम इतिहासकारों को सौपां जा रहा है। इलेक्शन में अपने आप को बिकने योग्य समझने वाले उम्मीदवार मोल-भाव के लिए अलग-अलग दुकानो के चककर लगा रहे हैं। कुल मिलाकर मेले का माहौल बन रहा है। इस मौके पर बिहार की दो बड़ी पार्टियों के अघोषित प्रवक्ता मेरे साथ हैं। इनमे एक बीजेपी के है जो जरूरत पड़ने पर संघ के प्रवक्ता का रोल भी निभा लेते हैं , और दूसरे राजद के प्रवक्ता हैं जो गली के नुक्क्ड़ पर रहने वाले पानवाले से लेकर सयुंक्त राष्ट्र संघ के महासचिव तक, सबके कामो पर आधिकारिक राय रखते हैं। 

          मैंने पहले बीजेपी के प्रवक्ता से बात शुरू की ( प्रधानमंत्री उनका है तो पहला हक भी उनका ही बनता है ) सुना है बीजेपी इस बार जीतनराम मांझी के सवाल पर महादलित को लुभाने की कोशिश में है ?

         कोशिश का क्या सवाल है , जिस तरह नितीश कुमार ने एक महादलित को मुख्यमंत्री नही रहने दिया वो हम बिहार की जनता को बता रहे हैं।  प्रवक्ता ने जवाब दिया। 

          लेकिन जीतनराम मांझी ने कहा है ही बीजेपी चुनाव के बाद मुझे मुख्यमंत्री बनाएगी इसकी घोषणा करे। क्या बीजेपी मांझी को मुख्यमंत्री बनाएगी ? मैंने पूछा। 

            क्या बात करते हो ! आपने देखा नही जब मांझी मुख्यमंत्री थे तब उनके काम और बयान कितने मजाक का कारण बनते थे।  प्रवक्ता ने हैरानी जताई। 

              फिर आप नितीश को मांझी को हटाने पर दोष क्यों देते हो ?

              क्योंकि वो हमारी विरोधी पार्टी के नेता हैं। जब वो हमारे साथ थे हम उन्हें विकास का अवतार बताते थे , जब वो हमसे अलग हुए हमने अगले ही दिन उन्हें बिहार को पाताल में पहुंचाने का जिम्मेदार ठहरा दिया। भला दो दिन में कोई प्रदेश आकाश से पाताल में कैसे पहुंच सकता है ? लेकिन हम पहुंचा सकते हैं। जैसे हमने कह दिया की अच्छे दिन आ गए हैं तो आ गए हैं। 

               पप्पू यादव के बारे में आपकी क्या योजना है ? मैंने पूछा। 

              अगर पप्पू यादव  हमारे साथ नही आये तो हम बिहार की जनता को बताएंगे की राजद ने कैसे-कैसे लोगों को सांसद बना दिया है। 

                 और अगर वो आपके साथ आ गए तो ? मैंने जानना चाहा। 

तो बिहार की जनता जानती है की पप्पू यादव यादवों के कितने बड़े नेता हैं। वैसे हमने पप्पू यादव को कह दिया है की वो अलग मोर्चा बनाएं। अगर राजद और जदयू का गठबंधन होता है तो दोनों पार्टियों के आधे लोगों को टिकट नही मिलेगा। और उसी दिन उनका पार्टी से मोहभंग हो जायेगा। उनमे राजद वालों को लालू का परिवारवाद नजर आना शुरू हो जायेगा और जदयू के लोगों को नितीश तानाशाह लगने शुरू हो जायेंगे।  और इन सब मोहभंग लोगों को साथ लेकर पप्पू यादव चुनाव में उतरें। उनकी गठबंधन में जगह उनके वोट काटने की हैसियत से हम चुनाव के बाद तय कर देंगे उद्धव ठाकरे की तरह। 

                  वैसे जातियों के आधार पर आप कोनसा गठबंधन बनाने की सोच रहे है? मैंने बात आगे बढ़ाई। 

                   इस बार हम स्वर्ण दलित मोर्चा बनाने की सोच रहे हैं। 

                 ये कोनसा मोर्चा है और इसमें कौन-कौन शामिल होंगे ? मैंने आश्चर्यवश पूछा!

                 देखिये इसमें वो स्वर्ण शामिल होंगे जिनके पास जाति  के अहंकार के सिवाय कुछ बचा नही है। न काम है, न नौकरी है और न जमीन है। दूसरे इसमें वो दलित शामिल होंगे जो जाति  के नाम पर ली गयी सुविधाओं और लाभों को अकेले हजम करके स्वर्ण की तरह चमक रहे हैं। और हम दलितों और पिछड़ों को मुद्दा बनायेगे। 

                   लेकिन लोग आपसे ये नही पूछेंगे की आप ने केंद्र में बिहार से जो मंत्री अपनी पार्टी से बनाये हैं उनमे एक भी दलित या पिछड़ा नही है सब ऊंची जाती के क्षत्रिय हैं ? मैंने शक जाहिर किया। 

                    नही पूछेंगे। प्रवक्ता ने आत्मविश्वास से कहा। 

                    क्यों नही पूछेंगे ? मैंने हैरानी जताई। 

                 हमने सभी इवेंट मैनजमेंट कम्पनियों को साफ तौर पर कह  दिया है की टीवी शो और सवाल जवाब के किसी भी कार्यक्रम में उनका कोई भी आदमी ये सवाल नही पूछेगा।  प्रवक्ता ने बात साफ की। 

                   मेरे पास और कुछ पूछने को नही था सो मैंने राजद के प्रवक्ता की तरफ रुख किया। 

                  इस चुनाव में आप लोगों का क्या रुख होगा ? मैंने शुरुआत की। 

                  हमारे नेता लालू जी ने तो पहले ही कह दिया है की इस बार बड़े त्याग के लिए तैयार रहना चाहिए . उसने इत्मीनान से जवाब दिया। 

                    तो इस बार सीट बटवारे पर या पदों पर लालूजी कोई मांग नही रखेंगे ? मुझे आश्चर्य हुआ। 

                   आप गलत समझ रहे हैं। बड़ा त्याग बड़े पद के लिए होता है। और बड़ा पद किसके पास है ? हमने नितीश जी को साफ इशारा कर दिया है की उन्हें इस त्याग के लिए तैयार रहना चाहिए।  उसने बात साफ की। 

                 लेकिन अगर नितीश जी मुख्यमंत्री नही होंगे तो आपके गठबंधन का मुख्यमंत्री कौन होगा ? मैंने असमंजस में पूछा। 

                 आप लोगों ने बिहार को समझ क्या रक्खा है ? क्या बिहार में योग्य लोग नही हैं ? बिहार में महात्मा बुद्ध से लेकर सम्राट अशोक तक और राजेन्द्र प्रशाद से लेकर राहुल सांकृत्यायन तक एक से एक महापुरुष हुए हैं। जब दुनिया को लोकतंत्र की परिभाषा भी मालूम नही थी तब वैशाली और मगध जैसे जनपदों में लोकतंत्र लागु था। प्रवक्ता तमतमा गया। 

                      देखिये मुझे बिहार के इतिहास और बिहार के लोगों की योग्यता पर कोई शक नही है। मैं तो केवल जानकारी के लिए पूछ रहा था।  मैंने अपनी सफाई दी। 

                      पहले हमारी सरकार बनने दो। मुख्यमंत्री कोई भी हो सकता है , राबड़ी देवी हो सकती हैं , तेजस्वी हो सकता है, और मीसा भी हो सकती हैं। प्रवक्ता ने सभी महापुरुषों के नाम उदघाटित कर दिए। 

                    मुझे लगा जैसे कोसी का पानी धीरे-धीरे बढ़ रहा है और पूरा बिहार उसकी चपेट में आ रहा है। मैं जान बचाने के लिए सुरक्षित जगह की तरफ दौड़ा।

        

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