हम आगे तो बढ़ रहे हैं भले ही पीछे की तरफ
गप्पी -- मैं शिक्षा के क्षेत्र की बात कर रहा हूँ। इसमें बहुत तेजी से तरक्की हो रही है। जैसा सरकार चाहती थी वैसी ही हो रही है। हमारे प्रधानमन्त्री डिजिटल इंडिया की बात करते थे। अभी अभी जो AIPMT की परीक्षा रद्द की गयी है उसके बारे में कहा गया है की उसमे एक चिप के द्वारा जो परीक्षा देने वाले के अंडरवियर में लगाई गयी थी, के द्वारा नकल की जा रही थी। किसी ने फोन करके इसकी सूचना पुलिस को दे दी और पुलिस ने छापा मारकर इस स्कैंडल को पकड़ लिया। परन्तु इससे ये बात तो साबित होती ही है की हम डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहे हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात जो शिक्षा के क्षेत्र हो रही है वो सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास हैं जो शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही दूरगामी भूमिका निभा सकते हैं। हम शिक्षा के क्षेत्र में हमारी 5000 साल पुरानी संस्कृति की तरफ बढ़ रहे हैं। इसकी शुरुआत तब हुई जब हमारे प्रधानमन्त्री ने एक बारहवीं पास सांसद को इस क्षेत्र का मंत्री बना दिया। उसको ये जिम्मेदारी दी गयी है की वो विश्वविद्यालयों के कुलपति और उपकुलपति नियुक्त करें। ऐसा करने से पहले वो उनकी योग्यता की जाँच जरूर करेंगी। लेकिन कोई कह रहा था की किसी कुँए की गहराई मापने लिए डंडे की लम्बाई कुँए से ज्यादा होनी चाहिए। खैर ये पुरानी और दकियानूसी बात है। उन्होंने इस क्षेत्र में काम भी करना शुरू कर दिया है। पूना फिल्म इंस्टिट्यूट में गजेन्द्र चौहान को चेयरमैन नियुक्त कर दिया गया है। उनकी कुल योग्यता ये है की वो पिछले बहुत सालों से भाजपा से जुड़े रहे हैं। इस पर वहां हड़ताल हो गयी। वहां के छात्र कह रहे हैं की जिस पद पर कभी गिरीश कर्नाड , श्याम बेनेगल , अडूर गोपालकृष्णन जैसे ख्याति प्राप्त लोग रहे हो वहां सरकार ऐसी नियुक्ति कैसे कर सकती है। सरकार का कहना है की उनका तीस साल का फिल्म इन्डस्ट्री का अनुभव है। अब लोगों को ये बात समझ नही आ रही की क्या तीस साल सब्जी की रेहड़ी लगाने से कोई व्यक्ति बागवानी अनुसंधान का निदेशक होने की योग्यता प्राप्त कर सकता है। उसके बाकी निदेशक भी इसी तरह की योग्यताओं के अनुसार नियुक्त किये गए हैं।
इससे पहले इतिहास अनुसंधान से जुडी एक पत्रिका का निदेशक मण्डल भंग कर दिया गया, जिसमे रोमिला थापर जैसे अंतरराष्ट्रीय श्रेणी के लोग थे। बाकि संस्थाओं के लिए भी योग्य लोगों की तलाश चल रही है।
मैं कल्पना करता हूँ की मान लीजिये किसी विज्ञानं एवं तकनीकी संस्थान के निदेशक के पद के लिए इन्टरव्यू चल रहा हो तो उसका दृश्य कैसा होगा। साक्षात्कार चल रहा है। सामने बैठे उम्मीदवार से प्रसन्न पूछा जाता है, " आपकी विज्ञानं के क्षेत्र की जानकारी को अपडेट करने के लिए आप क्या करते हैं ?"
" मैं उसके लिए पिछले तीस साल से "कल्याण" पढ़ रहा हूँ। " उम्मीदवार जवाब देता है।
" आपके विचारों का श्रोत क्या है और आप विज्ञानं के इतिहास के बारें में क्या जानते हैं ?" दूसरा प्रश्न पूछा जाता है।
" मैं मानता हूँ की विज्ञानं का उदय और अन्त हमारे वेदों में ही है। जो तरक्की हमने अस्त्र-शस्त्रों के क्षेेत्र में महाभारत काल में कर ली थी उसके बाद हमे और कुछ करने की जरूरत नही है। जहां तक विचारों का सवाल है तो गुरु जी ने जो "बंच ऑफ़ थॉट्स " लिखा था मैं नही समझता की उससे बाहर विचारों अस्तित्व है। "
उम्मीदवार ने जवाब दिया।
इन्टरव्यू कमेटी के सदस्यों के चेहरे पर सन्तोष के साथ मुस्कान उभरी। उन्होंने बाकि बचे लोगों को वापिस भेज दिया। उपयुक्त उम्मीदवार मिल चूका था।
खबरी -- हे भगवान इस देश का भविष्य अब केवल तुम्हारे हाथों में है, इसे अपने अनुयायिओं से बचाइये।
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