अयलान कुर्दी और अविनाश एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज उनकी मौत पर रोने वालों का ताँता लगा हुआ है। पूरी दुनिया के अख़बार अयलान की तस्वीरों से और पुरे भारत के अख़बार अविनाश की तस्वीरों से भरे पड़े हैं। लोग मातम करके अपना फर्ज निभा रहे हैं। सहायता की पेशकश हो रही हैं। परन्तु कौन थे ये अयलान और अविनाश ?
अयलान कुर्दी -- तीन साल की उम्र का बच्चा जो अपनी शरण ढूढ़ने के लिए भागती हुई माँ की गोद में छुपे छुपे और उसके साथ ही समुद्र में समा गया। अयलान एक कुर्दी था। कुर्द, एक ऐसी कौम जो सीरिया,इराक और तुर्की नाम के तीन देशों में बंटे क्षेत्र में और तीनो ही देशों में अल्पसंख्यक है। जिस पर इराकी फौजें भी हमले कर रही हैं, तुर्की फौजें भी और ISIS भी। कुर्द एक बहादुर कौम है। जब ISIS ने पुरे इराक और आधे सीरिया को रौंद दिया, और जो अमेरिकी अनिच्छा से किये गए हमलों के बावजूद आगे बढ़ते रहे, जिस पर अपने आप को शक्तिशाली कहलाने वाले और नाटो के सदस्य देश तुर्की के हमलों का कोई असर नही हुआ, उसे कुर्दों ने रोका। कुर्दों के क्षेत्र में घुसने पर ISIS को एक एक इंच जमीन के लिए नाक रगड़नी पड़ी। पूरी दुनिया में ISIS को किसी ने टककर दी तो केवल कुर्दों ने दी। परन्तु एक तरफ ISIS, दूसरी तरफ तुर्की और तीसरी तरफ अमेरिकी और योरोपीय देशों के हमलों ने कुर्दों के क्षेत्र को तबाह कर दिया। योरोपीय और अमेरिकी हमलों ने सीरिया को खंडहर में बदल दिया। लीबिया और इराक के बाद पश्चिमी लोकतंत्र का स्वाद अब सीरिया और यमन के हिस्से आ रहा है। और इस लोकतंत्र स्थापित करने के पश्चिमी तरीके ने लाखों लाख लोगों को अपनी जान बचाकर भागने पर मजबूर कर दिया। लोग हजारों मील का समुद्री रास्ता छोटी छोटी किश्तियों के सहारे तय करने निकल पड़े। इनमे से हजारों लोग बीच समुंद्र में समा गए। इन्ही में से एक अयलान कुर्दी भी था। उसकी लाश की फोटो जब अख़बारों में छपी तो योरोप के लोगों ने शरणार्थियों को शरण देने की मांग की। योरोप की सरकारों ने अपने उच्च मानवीय मूल्यों का हवाला दिया और उन लोगों को शरण देने की घोषणा की जो उनके ही कारण शरणार्थी बने हैं। इराक और सीरिया के विकसित देशों के लोगों को शरणार्थी बनने पर आखिर तो योरोप और अमेरिका ने ही तो मजबूर किया। और अब वही अयलान की मौत पर आंसू बहा रहे हैं।
युरोप और अमेरिका के लोग , जो इस मानवीय त्रासदी को पैदा करने वाली अपनी सरकारों के समर्थन में खड़े हैं उन्हें क्या हक है अयलान की मौत पर आंसू बहाने का। असल में तो ये लोग उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हैं। उनकी जिन सरकारों ने ये सब किया उनको इन्होने ही तो चुना था। उनकी सारी अमानवीय और अंतर राष्ट्रिय नियमों को ताक पर रख कर की जाने वाली कार्यवाहियों को इनका समर्थन प्राप्त है।
अविनाश ------ दूसरी तरफ अविनाश है जो दिल्ली की सड़कों पर अपने माँ बाप की गोद में भागते भागते डेंगू का इलाज ढूढंते ढूंढते मारा गया। उसकी मौत पर भी बहुत से लोग आंसू बहा रहे हैं। आखिर अविनाश क्यों मरा ? स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में भी घटते हुए सरकारी खर्च और मुनाफाखोरी को बढ़ावा दिए जाने के कारण अविनाश की मौत हुई। उसके माँ बाप कई दिन उसे उठाए उठाए हस्पतालों के चककर लगाते रहे परन्तु अपने बेटे के लिए इलाज नही खरीद पाये। अपने बेटे की मौत के बाद दोनों को ख़ुदकुशी इस मुनाफाखोर व्यवस्था के खिलाफ उनका विरोध है। उन्होंने इस व्यवस्था को ख़ारिज कर दिया है। अब केजरीवाल से लेकर नरेंद्र मोदी तक और सत्येन्द्र जैन से लेकर जे पी नड्डा तक, सब लोग इस पर घड़ियाली आंसू बहाते रहें उससे क्या हो जाने वाला है। घड़ियाली इसलिए की क्या अब ये लोगों के स्वास्थ्य पर मुनाफा कमाने वाली प्रथा बदल दी जाएगी ? नही.. और इन सरकारों के समर्थन में खड़े बुद्धिविहीन तकनीकी रोबोट जो दुर्घटना का शिकार हुए आदमी की मदद करने से पहले उसका विडिओ बनाना जरूरी समझते हैं उनको भी इस पर आंसू बहाने का क्या हक है। सही मायने में तो वही लोग जिम्मेदार हैं इन घटनाओं के लिए जो इस मनुस्य विरोधी व्यवस्था का पोषण करने वालों के साथ सेल्फ़ी लेकर अपने आप को धन्य समझती है।
अयलान और अविनाश एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिन्हे मानव विरोधी व्यवस्था ने एक को घर के अंदर मार दिया और दूसरे को घर के बाहर।
अयलान कुर्दी -- तीन साल की उम्र का बच्चा जो अपनी शरण ढूढ़ने के लिए भागती हुई माँ की गोद में छुपे छुपे और उसके साथ ही समुद्र में समा गया। अयलान एक कुर्दी था। कुर्द, एक ऐसी कौम जो सीरिया,इराक और तुर्की नाम के तीन देशों में बंटे क्षेत्र में और तीनो ही देशों में अल्पसंख्यक है। जिस पर इराकी फौजें भी हमले कर रही हैं, तुर्की फौजें भी और ISIS भी। कुर्द एक बहादुर कौम है। जब ISIS ने पुरे इराक और आधे सीरिया को रौंद दिया, और जो अमेरिकी अनिच्छा से किये गए हमलों के बावजूद आगे बढ़ते रहे, जिस पर अपने आप को शक्तिशाली कहलाने वाले और नाटो के सदस्य देश तुर्की के हमलों का कोई असर नही हुआ, उसे कुर्दों ने रोका। कुर्दों के क्षेत्र में घुसने पर ISIS को एक एक इंच जमीन के लिए नाक रगड़नी पड़ी। पूरी दुनिया में ISIS को किसी ने टककर दी तो केवल कुर्दों ने दी। परन्तु एक तरफ ISIS, दूसरी तरफ तुर्की और तीसरी तरफ अमेरिकी और योरोपीय देशों के हमलों ने कुर्दों के क्षेत्र को तबाह कर दिया। योरोपीय और अमेरिकी हमलों ने सीरिया को खंडहर में बदल दिया। लीबिया और इराक के बाद पश्चिमी लोकतंत्र का स्वाद अब सीरिया और यमन के हिस्से आ रहा है। और इस लोकतंत्र स्थापित करने के पश्चिमी तरीके ने लाखों लाख लोगों को अपनी जान बचाकर भागने पर मजबूर कर दिया। लोग हजारों मील का समुद्री रास्ता छोटी छोटी किश्तियों के सहारे तय करने निकल पड़े। इनमे से हजारों लोग बीच समुंद्र में समा गए। इन्ही में से एक अयलान कुर्दी भी था। उसकी लाश की फोटो जब अख़बारों में छपी तो योरोप के लोगों ने शरणार्थियों को शरण देने की मांग की। योरोप की सरकारों ने अपने उच्च मानवीय मूल्यों का हवाला दिया और उन लोगों को शरण देने की घोषणा की जो उनके ही कारण शरणार्थी बने हैं। इराक और सीरिया के विकसित देशों के लोगों को शरणार्थी बनने पर आखिर तो योरोप और अमेरिका ने ही तो मजबूर किया। और अब वही अयलान की मौत पर आंसू बहा रहे हैं।
युरोप और अमेरिका के लोग , जो इस मानवीय त्रासदी को पैदा करने वाली अपनी सरकारों के समर्थन में खड़े हैं उन्हें क्या हक है अयलान की मौत पर आंसू बहाने का। असल में तो ये लोग उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हैं। उनकी जिन सरकारों ने ये सब किया उनको इन्होने ही तो चुना था। उनकी सारी अमानवीय और अंतर राष्ट्रिय नियमों को ताक पर रख कर की जाने वाली कार्यवाहियों को इनका समर्थन प्राप्त है।
अविनाश ------ दूसरी तरफ अविनाश है जो दिल्ली की सड़कों पर अपने माँ बाप की गोद में भागते भागते डेंगू का इलाज ढूढंते ढूंढते मारा गया। उसकी मौत पर भी बहुत से लोग आंसू बहा रहे हैं। आखिर अविनाश क्यों मरा ? स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में भी घटते हुए सरकारी खर्च और मुनाफाखोरी को बढ़ावा दिए जाने के कारण अविनाश की मौत हुई। उसके माँ बाप कई दिन उसे उठाए उठाए हस्पतालों के चककर लगाते रहे परन्तु अपने बेटे के लिए इलाज नही खरीद पाये। अपने बेटे की मौत के बाद दोनों को ख़ुदकुशी इस मुनाफाखोर व्यवस्था के खिलाफ उनका विरोध है। उन्होंने इस व्यवस्था को ख़ारिज कर दिया है। अब केजरीवाल से लेकर नरेंद्र मोदी तक और सत्येन्द्र जैन से लेकर जे पी नड्डा तक, सब लोग इस पर घड़ियाली आंसू बहाते रहें उससे क्या हो जाने वाला है। घड़ियाली इसलिए की क्या अब ये लोगों के स्वास्थ्य पर मुनाफा कमाने वाली प्रथा बदल दी जाएगी ? नही.. और इन सरकारों के समर्थन में खड़े बुद्धिविहीन तकनीकी रोबोट जो दुर्घटना का शिकार हुए आदमी की मदद करने से पहले उसका विडिओ बनाना जरूरी समझते हैं उनको भी इस पर आंसू बहाने का क्या हक है। सही मायने में तो वही लोग जिम्मेदार हैं इन घटनाओं के लिए जो इस मनुस्य विरोधी व्यवस्था का पोषण करने वालों के साथ सेल्फ़ी लेकर अपने आप को धन्य समझती है।
अयलान और अविनाश एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिन्हे मानव विरोधी व्यवस्था ने एक को घर के अंदर मार दिया और दूसरे को घर के बाहर।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.