Wednesday, September 30, 2015

RBI द्वारा ब्याज दर में कमी और विकास के दावे


 RBI ने ब्याज दरों में 50 पैसे की कटौती कर ही दी। कई दिनों से सरकार और खासकर वित्त मंत्री अरुण जेटली रिजर्व बैंक के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे थे। इस नाराजगी में सरकार ऐसा आभास दे रही थी जैसे इस देश का विकास रिजर्व बैंक ने रोक हुआ हो। ब्याज दरों में कमी से मांग में बढ़ौतरी होती है ये बात तो सही है लेकिन रिजर्व बैंक द्वारा की गयी कमी का उपयोग किस चीज के लिए होता है सब कुछ इस पर निर्भर करता है।
                    रिजर्व बैंक अब तक एक रूपये पच्चीस पैसे की कटौती कर चूका है लेकिन बैंकों ने मुस्किल से पचास पैसे घटाए हैं। RBI के गवर्नर रघुराम राजन इस पर आपत्ति भी प्रकट कर चुके हैं। इस बार की कटौती के बाद भी एकाध बैंक ने बीस पैसे की कटौती की घोषणा की है। केंद्रीय बैंक की दरों में कटौती का प्रयोग बैंको ने अपने मुनाफे बढ़ाने के लिए कर लिया। जब तक बैंक आम उपभोक्ता तक ब्याज दरों में कटौती का लाभ नही पहुंचाएंगे उससे मार्किट में तेजी कैसे आएगी। लेकिन हमारे वित्त मंत्री जो बार बार गवर्नर से अपनी नाराजगी प्रकट करते रहे हैं, उन्होंने बैंकों के लिए एक शब्द नही बोला। हमारे बैंकों की और पुरे प्राइवेट सैक्टर की हालत ये है की वो किसी की नही सुनता। और सरकार की इच्छा भी उससे कुछ कहने की नही है। अब तक पॉलिसी के रूप में जो भी निर्णय लिए गए हैं वो सभी निजी सैक्टर ने अपने मुनाफे के लिए उपयोग कर लिए हैं।
                    बैंक जैसे ही ब्याज दर में कमी होती है डिपॉज़िट पर ब्याज दर घटा देते हैं। इससे पेंशन और जमापूंजी के ब्याज पर गुजर करने वाले लोगों के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है। दूसरी तरफ बैंक लोन की ब्याज दरों में कोई कटौती नही करते हैं या नाम मात्र की कमी करते हैं जिससे मांग पर कोई असर नही पड़ता है। इसके लिए बैंक गुंजाइश ना होने का बहाना बनाते हैं। इस गुंजाइश ना होने का सबसे बड़ा कारण ये है की निजी क्षेत्र इन बैंको का लाखों करोड़ रुपया खाकर बैठ गया है। हर साल NPA का स्तर बढ़ता जाता है। बैंक हर साल निजी क्षेत्र का लाखों करोड़ रुपया माफ़ कर देते हैं जिससे उनके मुनाफे और बैलेंस सीट पर असर पड़ता है। और इस सारी स्थिति का बिझ वो आम आदमी पर डाल देते हैं चाहे वो बैंक में जमा कराने वाला हो या लोन लेने वाला हो। इस लालची और जन विरोधी तरीके को जब तक बदला नही जायेगा उसका मार्किट पर कोई असर पड़ने वाला नही है। और सरकार इस बारे में कुछ बोलती नही है या उसका समर्थन इनके साथ है।
                    दूसरा सवाल ब्याज दरों में कटौती का विदेशी पूंजी पर पड़ने वाला असर है। मार्किट के विशेषज्ञ ये मानते हैं की पिछले दिनों में विदेशों से भारत के DEBT में निवेश के बढ़ते आंकड़े का मुख्य कारण हमारे यहां की ऊँची ब्याज दरें हैं। जैसे ही रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती करता है हमारे यहां से वो निवेश वापिस जाने की प्रकिर्या शुरू हो जाती है। इससे रूपये की कीमत गिरती है और हमारे आयत और महंगे हो जाते हैं। हमारा देश कच्चे मॉल का और पट्रोलियम पदार्थों का मुख्य आयात करता है। इनके महंगे होने से हमारा तैयार माल दूसरे देशों के मुकाबले महंगा हो जाता है और निर्यात और कम हो जाते हैं। इसलिए ये जरूरी नही है की ब्याज दरों में कटौती का लाभ ही हो।
                     अगर सरकार ब्याज दरों में कटौती को मांग बढ़ने के सायकिल के साथ जोड़ना चाहती है तो उसे ये सुनिश्चित करना होगा की ब्याज दरों में कटौती का लाभ निचे मार्किट तक पहुंचे और इसका इस्तेमाल बैंक अपने मुनाफे बढ़ाने के लिए ना करें। वरना ये सारी कवायद बेकार हो जाएगी।

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