भारत, चीन और अमेरिका ये तीन देश आर्थिक मामलों में हमेशा एक दूसरे की तुलना में उदाहरण के तौर पर पेश किये जाते रहे हैं। यहां भारत में जब भी किसी आर्थिक गतिविधि पर चर्चा होती है तो उसकी तुलना या तो चीन से की जाती है या अमेरिका से। हम आर्थिक स्थिति के अनुसार तो अमेरिका के आसपास नही हैं लेकिन दोनों की तुलना इसलिए की जाती है की दोनों विश्व के बड़े लोकतंत्र हैं और दोनों ने विकास का पूंजीवादी तरीका अपनाया है। चीन से हमारी तुलना इसलिए की जाती है, क्योंकि दोनों जनसंख्या के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े देश है, दोनों एशियाई देश हैं, दोनों विकासशील देश हैं और दोनों ने विकास के अलग अलग रास्ते अपनाये हैं। उदारीकरण के दौर के बाद जब चीन ने अपनी व्यवस्था को दुनिया के लिए खोला और कुछ बदलाव किये जो बाजार के अनुकूल हैं तो बहुत से विशेषज्ञों ने उदारीकरण की कुछ बुरी प्रवृतियों और उनके नकारात्मक प्रभाव को तूल ना देने की बात करते हुए चीन के उदाहरण दिए। उन्होंने ये साबित करना चाहा, खासकर भारत के संदर्भ में की उदारीकरण के दुष्प्रभाव एकदम सामान्य किस्म के हैं और उनको एक समय के बाद खत्म किया जा सकता है।
उन्होंने ये बताया की उदारीकरण के कारण अमीर और गरीब के बीच बढ़ती हुई खाई एक सामान्य बात है और उदारीकरण से जो फायदा गरीबों को होगा उससे इसके दुष्प्रभाव कम हो जायेंगे। साथ ही उन्होंने ऐसा आभास भी दिलाने की भरपूर कोशिश की जैसे आय और सम्पत्ति का ये असमान बंटवारा एक सामान्य और ना रोकी जा सकने वाली प्रकिर्या है। लेकिन पिछले 15 सालों के आंकड़ों का अध्ययन किया जाये तो तस्वीर एकदम अलग नजर आती है। भारत में सम्पत्ति का बंटवारा -----
भारत के आंकड़े देखें जाएँ तो ये पता चलता है की सबसे अमीर 10 % लोगों का देश की कुल सम्पत्ति में हिस्सा सन 2000 में 65 . 90 % था जो 2014 तक आते आते 74 % गया। जो इस बढ़ती हुई खाई को साफ तौर पर दिखाता है। साथ ही ये खाई इतनी चौड़ी और गहरी है की ये ऊपर के 10 % लोग बाकि लोगों से इतने आगे हैं की अगर दूसरे 10 % यानि 10 से 20 % वाले लोगों का सम्पत्ति में हिस्सा देखा जाये तो वो भी केवल 9 . 4 % ही है। और देश के बाकि बचे कुल 90 % लोगों का देश की सम्पत्ति में हिस्सा केवल 26 % ही बैठता है। दूसरा आंकड़ा इससे भी भयावह है। इससे तो एकदम साफ हो जाता है की किस तरह उदारीकरण ने अमीरों की सम्पत्ति में अनाप शनाप बढ़ौतरी की है और इस खाई को किस कदर चौड़ा किया है। ये आंकड़ा है देश के अति अमीर 1 % लोगों का। इन 1 % लोगों का देश की कुल सम्पत्ति में हिस्सा जो 2000 में 36 . 80 % था, 2014 में बढ़कर 49 % हो गया। यानि देश की आधी सम्पत्ति के मालिक केवल 1 % लोग हैं।
अब इसकी एक दूसरी तुलना है जो पुरे विश्व की सम्पत्ति में और उसके हिसाब से दुनिया में गरीब, मध्यम और अमीर लोगों में हमारे देश की हिस्सेदारी पर है। पूरी दुनिया में जो सबसे गरीब 10 % लोग हैं उनमे भारतियों का हिस्सा 18 . 34 % है जबकि जो बीच के 50 से 60 % के लोग हैं उनमे हमारे केवल 12 . 5 % लोग हैं। जो सबसे ऊपर के 10 % लोग हैं उनमे भारतियों का हिस्सा केवल 1/2 % ही है।
चीन का विश्व सम्पत्ति में हिस्सा -----------
चीन में हालत इससे बिलकुल उलटी है। वहां दुनिया के सबसे नीचे के 10 % लोगों में उसका कोई नागरिक नही है। जबकि बीच के 50 से 60 % के लोगों में चीनियों की संख्या 42 % है। और सबसे ऊपर के 10 % लोगों में उसका हिस्सा 6 . 8 % का है। उसके आंकड़े बताते हैं की उसमे मिडल क्लास के लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है और आय और सम्पत्ति का इतना असमान बंटवारा नही है। नीचे इसकी टेबल दी गयी है जिसमे भारत चीन और अमेरिका के तुलनात्मक आंकड़े दिए गए हैं।
अमेरिका का विश्व सम्पत्ति में हिस्सा ----------
अमेरिका इस मायने में बहुत अमीर देश है। उस हिसाब से वहां अति गरीबों की संख्या तो नही ही होनी चाहिए जो की चीन में भी नही है। लेकिन ऐसा नही है। सबसे नीचे के 10 % लोगों में अमेरिकियों का हिस्सा 7 . 8 % है। क्या ये हैरानी की बात नही है। क्योंकि बीच के 50 से 60 % के लोगों में उसका हिस्सा केवल 2 % से भी कम है और ऊपर के 10 % लोगों में उसका हिस्सा 22 . 26 % है। इतनी अमीरी के बावजूद अमेरिका में गरीबों की बड़ी संख्या है। क्योंकि उसका विकास का रास्ता भेदभाव पर आधारित है।
ये सभी आंकड़े THE HINDU के DATA सेक्शन से लिए गए हैं। इस टेबल से भारत, चीन और अमेरिका की तुलना को ठीक तरह से समझा जा सकता है।
INDIA | CHINA | US | ||
BOTTOM 10% | 18.34 | 0 | 7.8 | |
10-20% | 32.31 | 3.49 | 0 | |
20-30% | 34.81 | 10.9 | 0 | |
30-40% | 30.17 | 8.94 | 0.97 | |
40-50% | 19.89 | 25.38 | 2.12 | |
50-60% | 12.49 | 42.04 | 1.72 | |
60-70% | 8.18 | 43.68 | 2.42 | |
70-80% | 5.14 | 43.14 | 4.02 | |
80-90% | 2.96 | 29.9 | 10.2 | |
UPPER 10% | 0.5 | 6.79 | 22.26 |
आंकड़े बहुत ही निराशाजनक है।हम अपनी तुलना चीन से करते हैं लेकिन चीन तो अमेरिका से भी कई मायनों में अमीर है।क्या भारत में लोकतन्त्र की वजह से ये खाई बढ़ी है क्योंकि तमाम राजनैतिक दल वोट के लालच में देश की सम्पदा लोक लुभावन योजनाओं में लूटा रही है?बिहार चुनाव के नतीजे भी साबित करते हैं कि जनता हो सिर्फ फ्री का माल चाहिए लोग मेहनत करने के बजाय नकदी चाहते हैं।लोकतन्त्र से अच्छा तो तानाशाही ही ठीक लगती है लोगों की मुफ़्त की रेवड़ी खाने की आदत देखके।
ReplyDelete