बिहार सुंदरी का स्वयंबर हो रहा है। पुरे देश से महारथी अपने पुरे जोश के साथ, मूछों को खिजाब लगाकर बिहार पहुंच रहे हैं। बिहार सुंदरी को लुभाने के लिए अलग अलग तोहफे और वायदों की भरमार लगी हुई है। मुझे महाभारत में द्रोपदी का स्वयंबर याद आ रहा है। उसमे ही आधा महाभारत तो हो गया था। इसमें भी आधा तो जरूर होगा। कुछ विशेषज्ञ तो पुरे महाभारत की उम्मीद कर रहे हैं।
लोकतंत्र की सुंदरी वरमाला लिए बिहार के आँगन में खड़ी है।
ऊपर मछली घूम रही है। नीचे बड़े बड़े धनुर्धारी लक्ष्यवेध को तैयार खड़े हैं। एक बार फिर महारथी कर्ण अपने धनुष के साथ मौजूद हैं। पिछला घटनाक्रम उन्हें याद है इसलिए इस बार अर्जुन को सबक सिखाने की पूरी तैयारी है। धनुष लेकर आगे बढ़ते हैं। तभी पीछे से आवाज आती है, " पहला अवसर मेरा है। " अर्जुन व्यवस्था का प्रश्न उठाते हैं। दादी सफेद हो गयी है। पूरा परिवार साथ में मौजूद है लेकिन कृष्ण नही दिखाई दे रहे।
" क्योंकि मैं सूत पुत्र हूँ इसलिए ?" कर्ण मुस्कुराते हैं। क्योंकि कर्ण जानते हैं की समय बदल चूका है। अब सूत पुत्र होना अयोग्यता का नही बल्कि योग्यता का परिचायक माना जाता है। और कर्ण इस बात को दोहराने का कोई मौका नही छोड़ते।
" नही, सूत पुत्र तो मैं भी हूँ। गुजरात में हमारी जाती को सूत मन जाता है। और उससे भी आगे की बात ये है की मैंने तो चाय भी बेचीं है। सो एक गरीब के पुत्र को पहला अवसर मिलना ही चाहिए। " अर्जुन ने प्रतिवाद किया।
" लेकिन इससे ये पूछा जाये की ये स्वयंबर में किसके लिए भाग ले रहे हैं। खुद तो ये शादी कर नही सकते। और जिस तरह पिछली बार हुआ था की इनकी माता ने तुम्हे पांच-पांच पतियों की पत्नी बना दिया था। इस बार तो 20-25 दावेदार हैं। इसलिए इन्हे तो मौका ही नही मिलना चाहिए। इनसे कहा जाये की ये पहले दूल्हे का नाम बताये। " कर्ण ने ठीक वहां चोट की जो सबसे कमजोर जगह थी।
" लेकिन ये कर्ण तो विश्वास घाती है। मैंने इसे अंगदेश का राजा बनाया। ये सोचकर की ये पिछली बार की तरह मेरा साथ देगा। लेकिन इसने पाला बदल लिया। ऐसे विश्वास घाती को तो तुम किसी भी तरह नही चुन सकती। " अर्जुन ने अगला पासा फेंका।
" तुमने मुझे अंगदेश का राजा बनने में मेरी सहायता की लेकिन तुमने पिछली बार इस एक अहसान की कितनी बड़ी कीमत वसूल की थी मुझे याद है। तुमने मुझे मेरे ही भाइयों के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूर किया। उस समय तुम दुर्योधन के रूप में थे। इस बार तो तुमने मुझे अंगदेश के राज्य से हटाने का पूरा प्रयास किया लेकिन वो तो अच्छा हुआ यादव मेरी मदद को आ गए। सो अब तुम्हारा कोई अहसान बचता नही है। इस बार यादव पिछली बार की तरह तुम्हारे साथ नही मेरे साथ हैं। " कर्ण ने हिसाब चुकता किया।
अब अर्जुन के पास दूसरा कोई बहाना बचता नही था सो उसने एकाएक कुछ याद करते हुए कहा ," हम तुम्हारे लिए लाखों करोड़ के गहने और दूसरी सामग्री लेकर आये हैं। अगर तुम हमारा वरण करोगी तो हम तुम्हे सोने से लाद देंगे। " अर्जुन के साथ आए राज्य के लेखाकार ने तुरंत एक सूची सामने कर दी।
" इन पर भरोसा मत करना द्रोपदी। ये जो लिस्ट लेकर आये हैं उसमे तुम्हारे पुश्तैनी गहनो को भी शामिल कर लिया है। ये वो गहने हैं जो सालों पहले तुम्हे उपहार में देने की घोषणा की जा चुकी है लेकिन दिए नही गए थे। इन पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। ये धोखेबाजी अब नही चलेगी। " कर्ण ने सख्ती से इसका विरोध किया।
लोकतंत्र की सुंदरी परेशान है। सभी तरफ से दावे किये जा रहे हैं। लेकिन कोई मछली पर निशाना नही लगा रहा। सारा फैसला बातों से ही करना चाहते हैं। उसने सिर ऊपर उठाया और घोषणा की। आप लोग इधर उधर की बातें मत करिये और मछली पर निशाना लगाइये। इसमें पहले पीछे का कोई सवाल नही है। अब हमारी समझ में सब आ चूका है। सबको मौका मिलेगा और जरूरी हुआ तो इसके कई दौर भी हो सकते हैं। हमने टेनिस में फैसले के लिए पांच-पांच दौर भी देखे हैं। हमने आयोग बनाया है और वो पूरी प्रतियोगिता संचालित करेगा। और ये मत समझना की इस प्रतियोगिता में तुम दोनों ही हो। बाहर और भी लोग है जो प्रतियोगिता में भाग लेने आये हैं। हो सकता है की उनमे एकलव्य भी हो।
एकलव्य का नाम सुनकर अर्जुन और कर्ण दोनों के माथे पर पसीने की बुँदे छलछला आई।
खबरी -- मुझे साठ के दशक की एक फिल्म याद आ रही है " आये दिन बहार के " और उसके एक गाने को यों भी गाया जा सकता है। " ये वादे जब तलक हकीकत बने, इंतजार, इंतजार, इंतजार करो "
लोकतंत्र की सुंदरी वरमाला लिए बिहार के आँगन में खड़ी है।
ऊपर मछली घूम रही है। नीचे बड़े बड़े धनुर्धारी लक्ष्यवेध को तैयार खड़े हैं। एक बार फिर महारथी कर्ण अपने धनुष के साथ मौजूद हैं। पिछला घटनाक्रम उन्हें याद है इसलिए इस बार अर्जुन को सबक सिखाने की पूरी तैयारी है। धनुष लेकर आगे बढ़ते हैं। तभी पीछे से आवाज आती है, " पहला अवसर मेरा है। " अर्जुन व्यवस्था का प्रश्न उठाते हैं। दादी सफेद हो गयी है। पूरा परिवार साथ में मौजूद है लेकिन कृष्ण नही दिखाई दे रहे।
" क्योंकि मैं सूत पुत्र हूँ इसलिए ?" कर्ण मुस्कुराते हैं। क्योंकि कर्ण जानते हैं की समय बदल चूका है। अब सूत पुत्र होना अयोग्यता का नही बल्कि योग्यता का परिचायक माना जाता है। और कर्ण इस बात को दोहराने का कोई मौका नही छोड़ते।
" नही, सूत पुत्र तो मैं भी हूँ। गुजरात में हमारी जाती को सूत मन जाता है। और उससे भी आगे की बात ये है की मैंने तो चाय भी बेचीं है। सो एक गरीब के पुत्र को पहला अवसर मिलना ही चाहिए। " अर्जुन ने प्रतिवाद किया।
" लेकिन इससे ये पूछा जाये की ये स्वयंबर में किसके लिए भाग ले रहे हैं। खुद तो ये शादी कर नही सकते। और जिस तरह पिछली बार हुआ था की इनकी माता ने तुम्हे पांच-पांच पतियों की पत्नी बना दिया था। इस बार तो 20-25 दावेदार हैं। इसलिए इन्हे तो मौका ही नही मिलना चाहिए। इनसे कहा जाये की ये पहले दूल्हे का नाम बताये। " कर्ण ने ठीक वहां चोट की जो सबसे कमजोर जगह थी।
" लेकिन ये कर्ण तो विश्वास घाती है। मैंने इसे अंगदेश का राजा बनाया। ये सोचकर की ये पिछली बार की तरह मेरा साथ देगा। लेकिन इसने पाला बदल लिया। ऐसे विश्वास घाती को तो तुम किसी भी तरह नही चुन सकती। " अर्जुन ने अगला पासा फेंका।
" तुमने मुझे अंगदेश का राजा बनने में मेरी सहायता की लेकिन तुमने पिछली बार इस एक अहसान की कितनी बड़ी कीमत वसूल की थी मुझे याद है। तुमने मुझे मेरे ही भाइयों के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूर किया। उस समय तुम दुर्योधन के रूप में थे। इस बार तो तुमने मुझे अंगदेश के राज्य से हटाने का पूरा प्रयास किया लेकिन वो तो अच्छा हुआ यादव मेरी मदद को आ गए। सो अब तुम्हारा कोई अहसान बचता नही है। इस बार यादव पिछली बार की तरह तुम्हारे साथ नही मेरे साथ हैं। " कर्ण ने हिसाब चुकता किया।
अब अर्जुन के पास दूसरा कोई बहाना बचता नही था सो उसने एकाएक कुछ याद करते हुए कहा ," हम तुम्हारे लिए लाखों करोड़ के गहने और दूसरी सामग्री लेकर आये हैं। अगर तुम हमारा वरण करोगी तो हम तुम्हे सोने से लाद देंगे। " अर्जुन के साथ आए राज्य के लेखाकार ने तुरंत एक सूची सामने कर दी।
" इन पर भरोसा मत करना द्रोपदी। ये जो लिस्ट लेकर आये हैं उसमे तुम्हारे पुश्तैनी गहनो को भी शामिल कर लिया है। ये वो गहने हैं जो सालों पहले तुम्हे उपहार में देने की घोषणा की जा चुकी है लेकिन दिए नही गए थे। इन पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। ये धोखेबाजी अब नही चलेगी। " कर्ण ने सख्ती से इसका विरोध किया।
लोकतंत्र की सुंदरी परेशान है। सभी तरफ से दावे किये जा रहे हैं। लेकिन कोई मछली पर निशाना नही लगा रहा। सारा फैसला बातों से ही करना चाहते हैं। उसने सिर ऊपर उठाया और घोषणा की। आप लोग इधर उधर की बातें मत करिये और मछली पर निशाना लगाइये। इसमें पहले पीछे का कोई सवाल नही है। अब हमारी समझ में सब आ चूका है। सबको मौका मिलेगा और जरूरी हुआ तो इसके कई दौर भी हो सकते हैं। हमने टेनिस में फैसले के लिए पांच-पांच दौर भी देखे हैं। हमने आयोग बनाया है और वो पूरी प्रतियोगिता संचालित करेगा। और ये मत समझना की इस प्रतियोगिता में तुम दोनों ही हो। बाहर और भी लोग है जो प्रतियोगिता में भाग लेने आये हैं। हो सकता है की उनमे एकलव्य भी हो।
एकलव्य का नाम सुनकर अर्जुन और कर्ण दोनों के माथे पर पसीने की बुँदे छलछला आई।
खबरी -- मुझे साठ के दशक की एक फिल्म याद आ रही है " आये दिन बहार के " और उसके एक गाने को यों भी गाया जा सकता है। " ये वादे जब तलक हकीकत बने, इंतजार, इंतजार, इंतजार करो "
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भाव-बोध (ब्लॉग बुलेटिन) में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteघोषणा करने का यही तो समय होता है .....एक-दो महीने के मेहनत फिर ५ साल अपने....
ReplyDeleteबहुत सार्थक चिंतन