खबरी -- चुनाव आयोग ने " मन की बात " पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।
गप्पी -- असल में ये मांग ही गलत थी। चुनाव आयोग ने एकदम सही फैसला किया है। विपक्षी दलों का कहना था की प्रधानमंत्री की " मन की बात " से बिहार चुनाव में मतदाताओं पर असर पड़ेगा। लेकिन ये बात तथ्यों से परे है।
मुझे नही लगता की " मन की बात " का कोई प्रभाव मतदाताओं पर पड़ता है। मतदाताओं पर केवल मुद्दे की बात का प्रभाव पड़ता है। और प्रधानमंत्रीजी का तो ये रिकार्ड रहा है की उन्होंने कभी मुद्दे की बात ही नही की। बल्कि अब तो ये भी साफ हो गया है की लोग जिन बातों को मुद्दे की बात समझ रहे थे वो भी मुद्दे की बात नही थी। अब इस बात का शक जताना की प्रधानमंत्री अपनी " मन की बात " में मुद्दे की बात कर सकते हैं ये विपक्षी दलों की गलत धारना है। इस बात के समर्थन में मैं और भी हजारों सबूत पेश कर सकता हूँ।
जैसे संसद के पुरे सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने अपनी सारी कोशिशें कर ली, लेकिन क्या वो प्रधानमंत्री से मुद्दे की बात पर एक शब्द बुलवा पाये। प्रधानमंत्री ने ना तो मुद्दे की बात की और ना ही मुद्दे पर बात की। फिर भी प्रधानमंत्री पर इस बात का शक करना तो चुनावी रणनीति ही माना जायेगा।
दूसरा चुनाव से पहले प्रधानमंत्रीजी ने जो जो बातें कहि थी आज इतने दिन के बाद भी उनमे से किसी में कोई मुद्दा निकला। सारे देश की जनता ने बारीक़ से बारीक़ छलनी लेकर सारी बातों को कई कई बार छान लिया की एकाध मुद्दा निकल ही जाये, लेकिन नही निकला।
एक और सबूत है जिसके बाद तो आपको मानना ही पड़ेगा की विपक्ष की मांग गलत थी। और यही सबसे महत्त्वपूर्ण बात है। जिन मुद्दों पर प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी काम कर रही है क्या उनका जिक्र उन्होंने कभी किया। मैं तो कहता हूँ की पुरे विपक्ष ने उन पर वो बात कहने के लिए दबाव डाला, जो वो कर रहे हैं लेकिन उन्होंने नही माना। दूसरी बात ये है की प्रधानमंत्री जी जिस संगठन यानि आरएसएस से आये हैं, उसका तो इतिहास रहा है की उसने उन बातों को कभी नही माना जिनके लिए वो सारी जिंदगी काम करता रहा। और जिन बातों का जिक्र वो अपनी बातों में करते रहे हैं उनको कभी उस तरह लागु नही किया। जैसे वो बात राष्ट्रवाद और देशभक्ति की करेंगे और काम देश तोड़ने के करेंगे। एकता के नाम पर उनके द्वारा किये गए किसी भी काम में अगर कुछ नही था तो बस एकता ही नही थी। वो देश की सुरक्षा के लिए कार्यक्रम घोषित करेंगे और देश जलने लगेगा। प्रधानमंत्री लोकतंत्र और कांग्रेस मुक्त भारत दोनों की बात एक साथ करते हैं। वो सहकारी संघवाद ( Cooperative Federalism ) की बात और नीतीश मुक्त बिहार की बात एक साथ करेंगे। अब कोई ये तो नही कह सकता की प्रधानमंत्री को इन बातों के मायने नही मालूम होंगे, बाकी तो फिर नियत की बात ही बचती है।
इसलिए चुनाव आयोग का फैसला एकदम सही है। और विपक्ष को इस बात पर प्रधानमंत्री पर आरोप लगाने बंद कर देने चाहियें।
गप्पी -- असल में ये मांग ही गलत थी। चुनाव आयोग ने एकदम सही फैसला किया है। विपक्षी दलों का कहना था की प्रधानमंत्री की " मन की बात " से बिहार चुनाव में मतदाताओं पर असर पड़ेगा। लेकिन ये बात तथ्यों से परे है।
मुझे नही लगता की " मन की बात " का कोई प्रभाव मतदाताओं पर पड़ता है। मतदाताओं पर केवल मुद्दे की बात का प्रभाव पड़ता है। और प्रधानमंत्रीजी का तो ये रिकार्ड रहा है की उन्होंने कभी मुद्दे की बात ही नही की। बल्कि अब तो ये भी साफ हो गया है की लोग जिन बातों को मुद्दे की बात समझ रहे थे वो भी मुद्दे की बात नही थी। अब इस बात का शक जताना की प्रधानमंत्री अपनी " मन की बात " में मुद्दे की बात कर सकते हैं ये विपक्षी दलों की गलत धारना है। इस बात के समर्थन में मैं और भी हजारों सबूत पेश कर सकता हूँ।
जैसे संसद के पुरे सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने अपनी सारी कोशिशें कर ली, लेकिन क्या वो प्रधानमंत्री से मुद्दे की बात पर एक शब्द बुलवा पाये। प्रधानमंत्री ने ना तो मुद्दे की बात की और ना ही मुद्दे पर बात की। फिर भी प्रधानमंत्री पर इस बात का शक करना तो चुनावी रणनीति ही माना जायेगा।
दूसरा चुनाव से पहले प्रधानमंत्रीजी ने जो जो बातें कहि थी आज इतने दिन के बाद भी उनमे से किसी में कोई मुद्दा निकला। सारे देश की जनता ने बारीक़ से बारीक़ छलनी लेकर सारी बातों को कई कई बार छान लिया की एकाध मुद्दा निकल ही जाये, लेकिन नही निकला।
एक और सबूत है जिसके बाद तो आपको मानना ही पड़ेगा की विपक्ष की मांग गलत थी। और यही सबसे महत्त्वपूर्ण बात है। जिन मुद्दों पर प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी काम कर रही है क्या उनका जिक्र उन्होंने कभी किया। मैं तो कहता हूँ की पुरे विपक्ष ने उन पर वो बात कहने के लिए दबाव डाला, जो वो कर रहे हैं लेकिन उन्होंने नही माना। दूसरी बात ये है की प्रधानमंत्री जी जिस संगठन यानि आरएसएस से आये हैं, उसका तो इतिहास रहा है की उसने उन बातों को कभी नही माना जिनके लिए वो सारी जिंदगी काम करता रहा। और जिन बातों का जिक्र वो अपनी बातों में करते रहे हैं उनको कभी उस तरह लागु नही किया। जैसे वो बात राष्ट्रवाद और देशभक्ति की करेंगे और काम देश तोड़ने के करेंगे। एकता के नाम पर उनके द्वारा किये गए किसी भी काम में अगर कुछ नही था तो बस एकता ही नही थी। वो देश की सुरक्षा के लिए कार्यक्रम घोषित करेंगे और देश जलने लगेगा। प्रधानमंत्री लोकतंत्र और कांग्रेस मुक्त भारत दोनों की बात एक साथ करते हैं। वो सहकारी संघवाद ( Cooperative Federalism ) की बात और नीतीश मुक्त बिहार की बात एक साथ करेंगे। अब कोई ये तो नही कह सकता की प्रधानमंत्री को इन बातों के मायने नही मालूम होंगे, बाकी तो फिर नियत की बात ही बचती है।
इसलिए चुनाव आयोग का फैसला एकदम सही है। और विपक्ष को इस बात पर प्रधानमंत्री पर आरोप लगाने बंद कर देने चाहियें।
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