कल सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सुरक्षा परिषद के विस्तार से संबंधित एक प्रस्ताव को मंजूरी दी। इस प्रस्ताव के सवाल पर भारतीय मीडिया में बहुत ही भ्रामक खबरें आ रही हैं और ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे भारत को स्थाई सदस्यता मिलने जा रही है। जबकि इस मामले में दिल्ली ( न्यूयार्क ) अभी बहुत दूर है। कल जो प्रस्ताव पास हुआ है उसके मायने आखिर क्या हैं ?
भारत सहित कई देश दुनिया की बदली हुई परिस्थिति में सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की मांग कर रहे थे। इन देशों में मुख्य रूप से चार देश शामिल हैं, भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील। परन्तु सुरक्षा परिषद के विस्तार का मुद्दा किसी निर्णय पर नही पहुंच पा रहा था। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य जिसमे अमेरिका, रूस, चीन, फ़्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं इस को लटकाये रखना चाहते थे। ये देश हर रोज अपने भाषणो में अलग अलग बातें कहते रहे हैं। इस बातचीत को जिसे एक अंतर सरकार ग्रुप ( IGN ) चला रहा था 2008 से कोई प्रगति नही हो पा रही थी। इसलिए भारत सहित कई देशों ने इस बातचीत के लिए एक लिखित बातचीत ( पाठ आधारित ) का प्रस्ताव रक्खा। इस प्रस्ताव के अनुसार तय किये गए पांच मुद्दों पर, ( जिसमे वीटो पावर का मुद्दा भी शामिल है ) हर देश द्वारा लिखित पक्ष रखने को जरूरी किया गया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बातचीत को भाषणो और आश्वासनों से आगे बढ़ाने का था। P -5 के देशों ने इस प्रस्ताव पर नकारात्मक रुख रखा। उनके अलावा 13 देशों का एक समूह जिसमे पाकिस्तान. इटली और दक्षिणी कोरिया शामिल हैं, ने भी इसके खिलाफ रुख अपनाया।
सयुंक्त राष्ट्र महासभा के नए अध्यक्ष सैम कुटेसा के आने के बाद और उनके प्रयासों से इसमें तेजी आई। सैम कुटेसा ने इस मामले पर अमेरिका, चीन और रूस द्वारा लिखे गए पत्रों को आम जनता के लिए जारी कर दिया जिसमे इस मामले पर उनका रुख साफ होता है।
अमेरिका का रुख -
अमेरिका ने इस विस्तार में किसी भी नए सदस्य को वीटो पावर का विरोध किया और पुराने सदस्यों की वीटो पावर जैसे की तैसे रखने की बात कही। अमेरिका का मानना है की कई देशों के पास वीटो पावर होने से सुरक्षा परिषद में किसी भी प्रस्ताव को पास करना मुश्किल हो जायेगा।
रूस का रुख ----
रूस ने रुख अपनाया की पहले के स्थाई सदस्यों के किसी भी अधिकार में ( वीटो पावर सहित ) कोई भी कटौती ना की जाये।
चीन का रुख -----
चीन ने सुरक्षा परिषद के विस्तार पर तो सहमति दिखाई परन्तु उसने कहा की नए स्थाई सदस्य बनाने की बजाए अस्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ा दी जाये ताकि छोटे और मध्यम देशों को बारी बारी भूमिका निभाने का मौका मिल सके। व्यवहारिक रूप से चीन को भारत की सदस्यता की बजाय जापान की सदस्यता पर ज्यादा एतराज है जो उसका पारम्परिक विरोधी है।
लेकिन सैम कुटेसा के प्रयासों से इस प्रस्ताव पर सहमति बन गयी और सभी देशों ने सर्व सम्मति से ये प्रस्ताव पास कर दिया। अब आगे की बातचीत पाठ आधारित होगी और किसी नतीजे पर पहुंचना आसान होगा। इस प्रस्ताव के बाद ये उम्मीद बढ़ गयी है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का लम्बे समय से लटका हुआ मुद्दा जल्दी हल होगा।
भारत की स्थिति ----
अभी जो बातचीत चल रही है वो इस मामले पर है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का क्या रूप हो। उसमे कितने देशों को शामिल किया जाये। जो नए देश शामिल किये जाएँ वो स्थाई सदस्य हों या अस्थाई हों। अगर स्थाई सदस्य शामिल किये जाएँ तो उनके अधिकार क्या होंगे और क्या उनको वीटो का अधिकार दिया जायेगा या नही। एक बार इस मुद्दे पर सहमति बनने के बाद और विस्तार का फार्मूला तय हो जाने के बाद देशों की दावेदारी पर विचार करने का नंबर आएगा। इसलिए अभी इसे इस रूप में पेश करना की सयुंक्त राष्ट्र महासभा में भारत की दावेदारी पर विचार हो रहा है, गलत होगा। बात एक कदम आगे जरूर बढ़ी है लेकिन भारत के लिए अभी न्यूयार्क बहुत दूर है।
भारत सहित कई देश दुनिया की बदली हुई परिस्थिति में सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की मांग कर रहे थे। इन देशों में मुख्य रूप से चार देश शामिल हैं, भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील। परन्तु सुरक्षा परिषद के विस्तार का मुद्दा किसी निर्णय पर नही पहुंच पा रहा था। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य जिसमे अमेरिका, रूस, चीन, फ़्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं इस को लटकाये रखना चाहते थे। ये देश हर रोज अपने भाषणो में अलग अलग बातें कहते रहे हैं। इस बातचीत को जिसे एक अंतर सरकार ग्रुप ( IGN ) चला रहा था 2008 से कोई प्रगति नही हो पा रही थी। इसलिए भारत सहित कई देशों ने इस बातचीत के लिए एक लिखित बातचीत ( पाठ आधारित ) का प्रस्ताव रक्खा। इस प्रस्ताव के अनुसार तय किये गए पांच मुद्दों पर, ( जिसमे वीटो पावर का मुद्दा भी शामिल है ) हर देश द्वारा लिखित पक्ष रखने को जरूरी किया गया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बातचीत को भाषणो और आश्वासनों से आगे बढ़ाने का था। P -5 के देशों ने इस प्रस्ताव पर नकारात्मक रुख रखा। उनके अलावा 13 देशों का एक समूह जिसमे पाकिस्तान. इटली और दक्षिणी कोरिया शामिल हैं, ने भी इसके खिलाफ रुख अपनाया।
सयुंक्त राष्ट्र महासभा के नए अध्यक्ष सैम कुटेसा के आने के बाद और उनके प्रयासों से इसमें तेजी आई। सैम कुटेसा ने इस मामले पर अमेरिका, चीन और रूस द्वारा लिखे गए पत्रों को आम जनता के लिए जारी कर दिया जिसमे इस मामले पर उनका रुख साफ होता है।
अमेरिका का रुख -
अमेरिका ने इस विस्तार में किसी भी नए सदस्य को वीटो पावर का विरोध किया और पुराने सदस्यों की वीटो पावर जैसे की तैसे रखने की बात कही। अमेरिका का मानना है की कई देशों के पास वीटो पावर होने से सुरक्षा परिषद में किसी भी प्रस्ताव को पास करना मुश्किल हो जायेगा।
रूस का रुख ----
रूस ने रुख अपनाया की पहले के स्थाई सदस्यों के किसी भी अधिकार में ( वीटो पावर सहित ) कोई भी कटौती ना की जाये।
चीन का रुख -----
चीन ने सुरक्षा परिषद के विस्तार पर तो सहमति दिखाई परन्तु उसने कहा की नए स्थाई सदस्य बनाने की बजाए अस्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ा दी जाये ताकि छोटे और मध्यम देशों को बारी बारी भूमिका निभाने का मौका मिल सके। व्यवहारिक रूप से चीन को भारत की सदस्यता की बजाय जापान की सदस्यता पर ज्यादा एतराज है जो उसका पारम्परिक विरोधी है।
लेकिन सैम कुटेसा के प्रयासों से इस प्रस्ताव पर सहमति बन गयी और सभी देशों ने सर्व सम्मति से ये प्रस्ताव पास कर दिया। अब आगे की बातचीत पाठ आधारित होगी और किसी नतीजे पर पहुंचना आसान होगा। इस प्रस्ताव के बाद ये उम्मीद बढ़ गयी है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का लम्बे समय से लटका हुआ मुद्दा जल्दी हल होगा।
भारत की स्थिति ----
अभी जो बातचीत चल रही है वो इस मामले पर है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का क्या रूप हो। उसमे कितने देशों को शामिल किया जाये। जो नए देश शामिल किये जाएँ वो स्थाई सदस्य हों या अस्थाई हों। अगर स्थाई सदस्य शामिल किये जाएँ तो उनके अधिकार क्या होंगे और क्या उनको वीटो का अधिकार दिया जायेगा या नही। एक बार इस मुद्दे पर सहमति बनने के बाद और विस्तार का फार्मूला तय हो जाने के बाद देशों की दावेदारी पर विचार करने का नंबर आएगा। इसलिए अभी इसे इस रूप में पेश करना की सयुंक्त राष्ट्र महासभा में भारत की दावेदारी पर विचार हो रहा है, गलत होगा। बात एक कदम आगे जरूर बढ़ी है लेकिन भारत के लिए अभी न्यूयार्क बहुत दूर है।
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