Sunday, June 21, 2015

बन गया वर्ल्ड रिकार्ड, चलो अब काम करो।

खबरी -- सुना है योग दिवस पर कई वर्ल्ड रिकार्ड बन गए। 


गप्पी -- इसी लिए तो सारा देश लगा हुआ था। वरना योग की किसको पड़ी है। हम वर्ल्ड रिकार्डों से बहुत प्रेम करते हैं। और जहां भीड़ इक्क्ठी करने से वर्ल्ड रिकार्ड बन सकता हो वहां तो हम टूट पड़ते है। ये हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। हमे महान होने में नही, महान दिखने में बहुत मजा आता है, सन्तोष मिलता है गर्व होता है। लेकिन अगर कोई जरा सा छेड़ दे तो सारी  असलियत सामने आ जाती है। 

                कुछ वर्ल्ड रिकार्ड ऐसे भी हैं जो हमारे नाम पर अपने आप बनते जाते हैं। हम उन पर भी गर्व महसूस करते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चों का रिकार्ड , सबसे ज्यादा भूखों का रिकार्ड, सबसे ज्यादा अनपढ़ों का रिकार्ड और शायद सबसे ज्यादा अनैतिक होने का रिकार्ड भी। कुछ रिकार्ड ऐसे भी हैं जिनको कभी भी कोई चुनौती नही हैं। ये हमेशा हमारे ही नाम पर रहने वाले हैं। जैसे दहेज के लिए बहुओं को जलाने का रिकार्ड, स्त्री भ्रूण हत्या का रिकार्ड। 

                  हम अपनी महानता का ढिंढोरा भी खूब पीटते हैं। हमारी क्रिकेट टीम बंगलादेश गयी तो हमने अपनी महानता के विज्ञापन अख़बारों में दिए। " बाप बाप होता है बेटा बेटा होता है " .क्रिकेट के विशेषज्ञ टीवी चैनलों पर हमारी महानता का प्रचार कर रहे थे। पर बेटा बताई जाने वाली बांग्लादेश की टीम ने हमें ऐन फादर्स डे के दिन पीट दिया। जब हारने  लगे तो हमारी सारी महानता खुल कर सामने आ गयी। मिस्टर कूल कहलाने वाले धोनी को धक्का मारते  हुए सबने देखा। हमारी टीम के सदस्यों को गाली  गलौच करते हुए भी सबने देखा। इसे खेल की भाषा में हारते हुए रोना कहते हैं। हम जीत नही पाये कोई बात नही लेकिन सम्मान से हार भी नही पाये। ये हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। 

                   लेकिन हमने विश्व रिकार्ड तो बना लिया। आगे का क्या होगा। हम इस बात पर गर्व करते हुए की हमने विश्व को जीरो दिया गणित में जीरो हो गए। हम इस बात पर गर्व करते रहे की हमने दुनिया को सभ्यता सिखाई, सारी असभ्यता के रिकार्ड बनाते चले गए। महिलाओं के खिलाफ हिंसा, दलितों के खिलाफ भेदभाव शायद असभ्यता नही माना जाता। क्योंकि इसके उदाहरण तो राम राज्य में भी मिलते हैं। शम्बूक की हत्या और सीता का त्याग इसके क्लासिक उदाहरण हैं। इस तरह के काम करने के बावजूद अगर राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहला सकते हैं तो हमने क्या गुनाह किया है। हमारी संस्कृति में पूर्ण पुरुषोत्तम होने के लिए चोरी और बेईमानी का शामिल होना पूर्व  शर्त है। इसीलिए कृष्ण को पूर्ण पुरुषोत्तम कहा गया है। हम गुरु हो कर शिष्य का अँगूठा काट सकते है हमारा अधिकार है। हम धर्मराज होते हुए पत्नी को जुए में हार सकते हैं। इन छोटी छोटी घटनाओं से हमारी महानता पर पहले भी फर्क नही पड़ता था अब भी नही पड़ता। 

                       खैर अब हमने विश्व रिकार्ड बना ही लिया है तो अब इस देश का सामान्य जन ये अपेक्षा करता है की अब थोड़ा काम भी कर लिया जाये। उन चीजों पर ध्यान दिया जाये जो महान होने के लिए नही लेकिन जीने के लिए जरूरी होती हैं।

1 comment:

Note: Only a member of this blog may post a comment.