खबरी -- क्या तुम समझते हो की #SelfieWithDaughter महिला सुरक्षा में कुछ योगदान करेगी ?
गप्पी -- हमारा भारत देश महान है। हमे इस बात का बड़ा गर्व है की हम ऋषियों की संतान हैं। पता नही ऐसी ऐसी चीजे कहाँ से ढूढ़ कर लाते हैं। हमने दुनिया में कुछ बड़े कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इसमें एक ये भी है। क्या कभी किसी ने सोचा की महिला सुरक्षा के नाम पर ये जो इस तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं उनका मतलब क्या है। ये #SelfieWithDaughter का जो अभियान है उसका मतलब क्या है। ये अभियान बेटियों की सुरक्षा के लिए चलाया जा रहा है। पर सुरक्षा किससे ? उसके खुद के माँ बाप से ! उसके अपने माँ बाप उसे पैदा होने से पहले ही गर्भ में ही ना मार दें इसलिए। वाह ! कितने महान हैं हम और हमारी संस्कृति। जब कोई हमारे देश में महिलाओं की दयनीय स्थिति की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश करता है तो हम एक स्वर में चिल्लाते हैं। ये हम पर आरोप है, हमारी महान संस्कृति को बदनाम करने की साजिश है। बिना पढ़े लिखे और बिना अक्ल के लोगों का गिरोह टूट पड़ता है उस पर। लेकिन बन्धु , सच्चाई तो यही है।
जब हम महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का सवाल उठाते हैं तो उसका उदगम तो हमारे घर से होता है। हमने कभी भी इस भेदभाव के खिलाफ ईमानदारी से काम नही किया। केवल नारे लगाये की हमारे ग्रन्थों में लिखा है की हमारे यहां नारी की पूजा होती है। हमने ओरतों को देवी का दर्जा दिया है। लेकिन केवल नारे लगा देने से कभी समस्याएं हल हुई है। हम समस्या की आँख में आँख डालने को तैयार नही हैं। महान जो हैं।
हमने गावों में पहले इस बात को बहुत बार सुना था की दूध पीने से लड़कियों को मूंछे आ जाती हैं। लड़कियों को दूध ना देने का कितना बढ़िया इलाज निकाला था हमने। और लोग हैं की हमारी काबिलियत पर शक करते रहते हैं। हम हमेशा समस्या से ध्यान हटाने के लिए नारे लगाते हैं। और #SelfieWithDaughter भी नारा है। अगर हमे काम ही करना होता तो क्या महिला आरक्षण बिल सालों से लटका रहता। किसी की भी सरकार रही हो सबने इस पर आम सहमति ना होने का बहाना किया। जैसे संसद में सारे काम आम सहमति के द्वारा ही होते हों। क्या लैंड बिल पर आम सहमति है। क्या बीमा बिल पर आम सहमति थी। नही थी। सो बहाने मत बनाओ। या तो सच का सामना करो या इस तरह के नाटक करना बंद करो।
अब हमे लड़कियां नही चाहियें। लड़कियों को पालते हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी की बेगार कर रहे हों। हमे तो बस बहुएँ चाहियें। बहुएँ भी ऐसी की शादी करके आएं तो इतना दहेज लाएं की घर भर जाए। सुबह चार बजे उठकर रात को ग्यारह बजे तक पूरे परिवार की सेवा करें। नजर ऊपर ना उठाएँ। शराब पीकर कभी पिट जाएं तो भी चुप रहें। केवल बेटों को जन्म दें। अब ये कोई बड़ी मांग तो है नही। कोई उनसे ये पूछ ले की भाई लड़कियां नही होंगी तो बहुएं कहाँ से आएंगी तो कहेंगे की बहुएँ तो दूसरे के घर से आती हैं उसका हमारे यहां बेटियों के होने से क्या संबंध है।
अब सरकार नारे लगा रही है की बेटी बचाओ। हम भी लगा रहे हैं। दूसरों से कह रहे हैं की तुम अपनी बेटी बचाओ वरना हमारे यहां बहुएँ कहाँ से आएंगी । कैसे बचाओ , ये तो सरकार बताएगी। बेटियों के लिए शिक्षा मुफ्त होगी ? नही होगी। उसके लिए इस गरीब देश के पास साधन कहाँ हैं। विज्ञापनों के लिए हैं। उन्हें रोजगार में प्राथमिकता मिलेगी ? क्यों मिलेगी ? ये तो हुई बेटियों की बात। अब बाकि महिलाओं की बात करते हैं।
हम रोज बयान देते हैं की बलात्कार की सजा मौत होनी चाहिए। फिर भी लोगों को क्यों लगता है की हम महिला सुरक्षा के लिए गम्भीर नही हैं। इसीलिए तो लगता है भैया की आप गंभीर नही हैं। क्योंकि फांसी की सजा भी नारा है। अगर नारा नही होता तो महिलाओं के संगठन इसका विरोध क्यों करते। अब कोई महिला संगठनो को तो महिला विरोधी नही कह सकता। उनका कहना है की बलात्कार के केसों में खुद महिला मुख्य गवाह होती है। अगर खून और बलात्कार दोनों की सजा फांसी हो जाएगी तो कोई बलात्कारी लड़की को जिन्दा क्यों छोड़ेगा। बलात्कार के लिए फांसी की सजा का मतलब होगा पीड़ित लड़कियों की हत्या सुनिश्चित करना। महिला संगठन चाहते हैं की इसके लिए मुकदमा दर्ज करने और जाँच के लिए निश्चित नियम बनाये जाएँ। और जो पुलिस ऑफिसर इन नियमो का उल्लंघन करे उसके खिलाफ गुनाह में शामिल होने का केस दर्ज किया जाये।
छोडो यार कहाँ का पचड़ा ले बैठे। अभी तो एकबार अभियान हो गया। बाद में चुनाव आएगा तब देखेंगे। यहां इन चीजों को कौन पूछता है। ये तो नारी की पूजा करने वाला देश है। यहां नारी के लिए कुछ और करने की जरूरत ही कहाँ है।
guppi doesn't suits in this role of serious discussion he is there to justify the wrong deeds. pl see to it.
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