Sunday, July 12, 2015

Vyang -- गंगा की गन्दगी और व्यापम घोटाला

गप्पी -- गंगा को हमारे देश की सबसे पवित्र नदी माना जाता है। इसको पाप-विमोचनी, मोक्ष-दायिनी कहा गया है। मुझे लगता है की यही प्रशंसा उसे भारी पड़ी है। देश में जितने भी पाप करने वाले लोग हैं वे एक अंतराल के बाद गंगा में पाप धोने जाते है। अपने सभी पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए भी सारा देश अस्थियां लेकर गंगा में विसर्जित करने जाता है। और गंगा का ये हाल हो गया की उसको साफ करने का स्पेशल प्रोग्राम चलना पड रहा है। और गंगा है की साफ होने का नाम ही नही लेती। हजारों करोड़ रूपये खर्च हो गए और आगे होने वाले हैं लेकिन परिणाम नही आ रहा। 

                       दूसरा सवाल ये है की जब गंगा को हम इतना पवित्र मानते हैं तो उसे गन्दा क्यों करते हैं। इसका जवाब हमारी परम्परा में है। हम अपनी सारी  पवित्र चीजों को गन्दा करते हैं फिर चाहे वो नदी हो ,पहाड़ हों, तीर्थस्थान हों , पार्क हों, शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थाएं हों। गंदगी हमारी सांस्कृतिक धरोहर है सो इसे हम कैसे छोड़ सकते हैं। जब तक हमारे आसपास गन्दगी ना हो हमे अजीब अजीब लगता है। हमे लगता है की हम दूसरे देश में हैं। घर जैसा महसूस ही नही होता। इसलिए हम पहला काम गन्दगी फ़ैलाने का ही करते हैं। 

                        इसलिए हमे केवल गंगा को साफ करने का अभियान नही चलाना पड़ता बल्कि सारे देश में स्वच्छता अभियान चलाना पड़ता है। अगर हम ये देखें की गंगा में गन्दगी फ़ैलाने वाले लोगों में कौन कौन शामिल हैं तो मालूम पड़ेगा की पाप धोने वाले लोगों के अलावा और भी बहुत से लोग हैं जो ये काम करते हैं। इनमे गंगा के किनारे बसे हुए शहरों की म्युनिसिपल कमेटियां भी शामिल हैं जो सारे शहर की गन्दगी गंगा में डाल देती हैं। इसके अलावा वो सारे उद्योग जो गंगा के किनारे स्थित हैं अपनी गन्दगी गंगा में डाल देते हैं। सोचते होंगे इससे गंदगी के निकाल के साथ पाप भी धुल जायेंगे। 

                         दूसरी तरफ हमारी सरकार है जो शहरों और उद्योगों की गन्दगी की उपयुक्त सफाई का प्रबन्ध करने की बजाए केवल प्रतिबंध लगाने में विश्वास रखती है। आज ये चीज गंगा में डालने पर प्रतिबंध लगा दिया, कल दूसरी चीज गंगा में डालने पर। अब सवाल ये है की वो इस गंदगी को लेकर कहां जाएँ। जब तक वैकल्पिक व्यवस्था नही होगी तब तक या तो वो गन्दगी घुमाफिरा कर गंगा में गिरेगी या फिर वो उद्योग बंद हो जायेंगे। लेकिन सरकारों को इन चीजों से कभी सरोकार ही नही रहा। उसको केवल एक काम ही करना आता है और वो हैं प्रतिबंध लगाना। सरकार ने गंदगी से लेकर कालेधन तक, और रेप से लेकर टैक्स चोरी तक, हर चीज पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। 

                    अब एक दूसरी समस्या खड़ी हो गयी है। मध्यप्रदेश के एक बीजेपी नेता ने कहा है की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उतने ही पवित्र हैं जितनी गंगा है। मुझे अब तक समझ में नही आया की ये बयान शिवराज सिंह के समर्थन में है की विरोध में। कुछ लोग कह रहे हैं की समर्थन में है और इसमें वो गंगा की आध्यत्मिक पवित्रता की बात कर रहे हैं। दूसरा पक्ष कहता है की विरोध में है क्योंकि मंत्री को मालूम है की गंगा ही सबसे प्रदूषित नदी है। और व्यापम की गंदगी कोई गंगा में गिरने वाली गंदगी से कम थोड़े ना है, बल्कि उससे ज्यादा ही व्यापक है। और की मंत्री ने ये बयान इस संभावना को ध्यान में रखकर दिया है की व्यापम की सफाई में भी उतना ही समय लगने वाला है जितना गंगा की सफाई में लगने वाला है। अब वाराणसी और इलाहबाद से चुनाव लड़ने वाले भाजपा के नेता मुरली मनोहर जोशी तो कहते हैं की जिस तरह सरकार गंगा की सफाई कर रही है उससे तो गंगा सौ साल में भी साफ नही हो सकती। उसी तरह मध्यप्रदेश के कुछ लोग कह रहे हैं की जिस तरह से व्यापम की जाँच हो रही है उस हिसाब से तो ये सौ साल में भी पूरी नही हो सकती। गजब का साम्य है दोनों में। दूसरी जो बात उन्होंने कही की बीजेपी को व्यापम घोटाले का कोई अफ़सोस नही है। ये बात कहने की कोई जरूरत नही थी। देश की जनता ये बात पहले से ही जानती है की सरकारों को घोटालों के अफ़सोस कभी नही रहे। आप कांग्रेस से पूछ लीजिये की क्या उसे 2G या कोयला घोटाले का कोई अफ़सोस है तो कहेगी बिलकुल नही। आप तृणमूल कांग्रेस से पूछ लीजिये की क्या उसे श्रद्धा चिट फण्ड घोटाले का कोई अफ़सोस है तो कहेगी की अफ़सोस किस बात का, बल्कि हमे तो गर्व है।

                     मेरे पड़ौसी को इस बात पर बहुत एतराज है की अब नेताओं की गन्दगी भी गंगा में डाली जा रही है। उनका कहना है की इससे तो गंगा की सफाई की रही सही सम्भावना भी खत्म हो जाएगी। उसका कहना है की कम से कम गंगा को तो राजनीति से दूर रक्खो , क्योंकि गंगा की स्वीकार्यता सभी धर्मों से परे है। हर धर्म और सम्प्रदाय के लोग गंगा को जीवन दायिनी मानते हैं। इसका एक उदाहरण मैं नीचे दे रहा हूँ जिसमे गंगा के किनारे रहने वाला एक मुसलमान शायर गंगा को सम्बोधित करते हुए कहता है ,

                                        बहुत नमाजें पढ़ी हैं हमने,

                                                              अ गंगा तेरे पानी में वजू करके। 

खबरी -- शायद हमारा यही सामूहिक जज्बा ही गंगा को बचा ले जाये। 


 

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